मेलबर्न, । हमारी धरती पर मानवीय गतिविधियों के कई दुष्परिणाम पड़े हैं। जलवायु परिवर्तन हो या बढ़ता प्रदूषण, ऐसे ही कई संकटों को वर्तमान में हम देख रहे हैं। इसी कड़ी में एक और चिंताजनक बात सामने आई है। एक नवीन अध्ययन के आधार पर शोधकर्ताओं ने कहा है कि विश्व में अब केवल 15 प्रतिशत तटीय क्षेत्र ही सही स्थिति में है, जो मानवीय गतिविधियों के दबाव से अब तक अछूता रहा है। यह अध्ययन वैश्विक स्तर पर तत्काल तटीय पुनर्वास और संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
आस्ट्रेलिया में यूनिवर्सिटी आफ क्वींसलैंड (यूक्यू) के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय दल ने तटीय क्षेत्रों पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव की मै¨पग की, ताकि उन क्षेत्रों की पहचान की जा सके, जिन्हें नुकसान पहुंचा है और जो अभी तक मानवीय दखल से अछूते रहे हैं। कंजर्वेशन बायोलाजी नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के निष्कर्ष धरती के तटीय पारिस्थितिक तंत्र पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव के बारे में बताते हैं।
इन पर पड़ रहा बुरा प्रभाव : शोधकर्ताओं ने कहा कि जिस तेजी से इन क्षेत्रों को नुकसान पहुंच रहा है, उससे न केवल तटीय प्रजातियों को, बल्कि विश्वभर के तटीय क्षेत्रों में निवास करने या निर्भर रहने वाले अनगिनत लोगों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और आर्थिक सुरक्षा के लिए भी खतरा है।
यह है स्थिति : शोधकर्ताओं ने पाया कि 2013 में 15.5 प्रतिशत तटीय क्षेत्र मानवीय गतिविधियों से अछूता था। इसमें सबसे बड़ा क्षेत्र कनाडा में था। इसके अलावा रूस, ग्रीनलैंड, चिली आस्ट्रेलिया और अमेरिका के क्षेत्र भी बचे हुए थे। बकौल विलियम्स तटीय क्षेत्रों में मौजूद समुद्री घास, सवाना और मूंगे की चट्टानों पर अन्य तटीय पारिस्थितिक तंत्र की तुलना में सबसे अधिक मानवीय गतिविधियों का दबाव पड़ा। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इस अध्ययन के लिए दो डाटासेट का प्रयोग किया गया है। पहला यह कि मानवीय गतिविधियों का भूमि पर क्या प्रभाव पड़ रहा है और दूसरा यह कि तटीय क्षेत्र मानवीय गतिविधियों का कितना दबाव ङोल रहे हैं। इस आधार पर शोधकर्ताओं ने आगे क्या कदम उठाए जाने चाहिए इस पर भी ध्यान केंद्रित किया।