कोलकाता, । बंगाल में लगातार 34 वर्षो तक राज करने वाले वामपंथी दलों की स्थिति दयनीय है। वैसे केरल को छोड़ दें तो वामपंथ देश की राजनीति में हाशिये पर पहुंच चुका है। बंगाल में वामपंथियों की हालत यह है कि उनके जनाधार वाले नेता पूरी तरह से खत्म हो चुके हैं। एक भी ऐसा नेता नहीं बचा है जो अपने दम पर कोई चुनाव जीत सके या फिर पार्टी को कुछ सीटें जीता सके। इसीलिए अब वामपंथी दलों को उम्मीद संगठन से जुड़े युवाओं पर हैं जो पार्टी को पुनर्जीवित कर सके।
माकपा नेतृत्व वाले वाममोर्चा को भरोसा है कि कोलकाता नगर निगम (केएमसी) चुनाव में शहरी मतदाताओं के बीच अपनी खोई हुई जमीन को फिर से हासिल करने में उनके युवा ब्रिगेड यानी रेड वालंटियर्स मददगार साबित होंगे। पर क्या यह संभव हो पाएगा? क्योंकि अभी सात माह पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस व मुस्लिम धर्मगुरु पीरजादा अब्बास सिद्दिकी के साथ हाथ मिलाकर मैदान में उतरने के बाद भी वामदल एक भी सीट नहीं जीत पाई। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में भी ऐसा ही हुआ। अब निकाय चुनाव की बारी है। त्रिपुरा में भी वामपंथी एक भी नगर निकाय पर कब्जा नहीं कर पाए। अब बंगाल की बारी है।