चहनियां। दीपावली का महापर्व मात्र 4 दिन शेष रह गया है। घरों की साफ.सफाई रंग रोशन का कार्य दिन-रात युद्ध स्तर पर लोगों द्वारा किया जा रहा है। घरों की सजावट की सामग्री जहां इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों से जुड़ा है वही लोग चाइनीज झालरों के प्रति अपना प्रेम जोड़ रहे हैं फिर भी दीपों की जगमगाहट दीप पूजन का विशेष महत्व है। देवी देवताओं की पूजा मिट्टी की बनी दीपों से करने का महत्व बताया जाता है। इसी क्रम में ग्रामीण क्षेत्र में दीया बनाने का कार्य तेज गति से कर रहे हैं। जहां खासतौर पर दीयों की अग्रिम बुकिंग विभिन्न बाजारों में दुकानदारों ने करा दिया है। दीया का निर्माण कर रहे रामबली बताते हैं कि वर्तमान समय में अब दीयों की मांग कम हो गई है जो हम लोगों की रोजी.रोटी पर खास तौर पर विशेष प्रभाव पड़ा है। पूजा पाठ में दीयो की मांग होती रहती है। जो ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। वहीं चन्द्रमा प्रजापति ने कहा कि आधुनिकता की चकाचौंध ने प्राचीन सांस्कृतिक परम्परा को काफी नुकसान पहुंचाया है। जिसके कारण दीपावली पर बिकने वाले मिट्टी के दीयों, घंटी, जाता आदि की मांग कम ही नही मानो नगण्य हो गई है। खरीदारों में कोई उत्साह ही नही रह गया है। पंचम प्रजापति ने कहा कि लोगों का चाइनीज विद्युत बल्बों व झालरों पर अधिक रूझान होने के कारण पारम्परिक व्यापार पर करारा झटका लगा है जिसके कारण हम लोगों की दीपावली फीकी होने लगी है।