वाशिंगटन । अमेरिका समेत लगभग दर्जन पर देशों ने अब चीन पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। दरअसल इन देशों ने चीन के उन संस्थानों के पर कतरने शुरू कर दिए हैं जो विभिन्न देशों में मौजूद हैं। इनकी फंडिंग चीन की सरकार द्वारा की जाती है और ये संस्थान इसकी आड़ में चीन की सरकार के एजेंडे पर काम करते हैं। इसके तहत ये संस्थान विभिन्न देशों में चीन की सरकार के प्रोपेगेंडा के तहत अपना काम करते हैं। इस तरह के संस्थानों पर कार्रवाई करने वाले देशों में अमेरिका के अलावा जर्मनी, नीदरलैंड समेत अन्य देश शामिल हैं।
इन देशों ने अब ऐसे ही संस्थानों को चिह्नित कर उन पर लगाम लगाना शुरू कर दिया है। इस तरह के संस्थानों में कुछ शिक्षण संस्थान और कुछ अन्य भी शामिल हैं। इस तरह के संस्थान विभिन्न कालेजों और यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर दूसरे देशों में चीन की कम्युनिस्ट सरकार का एजेंडा को आगे बढ़ाने का काम करते हैं। हाल के कुछ वर्षों में इस तरह के संस्थानों की गिनती बढ़ी है और साथ ही इन पर शिकंजा कसने वाले देशों की संख्या भी बढ़ी है। चीन की सरकार के एजेंडे की मार्केटिंग करने वाले इन संस्थानों में से कुछ पर अमेरिका पहले ही लगाम लगा चका है। फ्रांस के डिफेंस मिलिट्री इंस्टीट्यूशन की रिपोर्ट के मुताबिक, ये संस्थान पूरी तरह से चीन के नियंत्रण में रहते हुए अपने काम को अंजाम देते हैं। ये अपनी आइडियोलाजी की मार्केटिंग करने का काम बेहद खामोशी से करते हैं।
दुनिया के कई देशों में इस तरह के संस्थान काम कर रहे हैं, जिन्हें अब चीन पर लगाम लगाने की जरूरत के तहत देखा जाने लगा है। इनमें चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के दिशानिर्देशों पर ही काम होता है। ये पूरी तरह से चीन के हितों को साधने के लिए काम करते हैं। इसमें इनका साथ चीन की मीडिया से लेकर वहां के कूटनीतिज्ञ और दूसरे नेता और थिंकटैक भी देते हैं। वर्ष 2004 से चीन ने इस तरह के संस्थानों की दुनिया के कई देशों में बाढ़ सी ला दी है। इनमें अधिकतर टीचर और किताबें इनकी ही होती हैं। इसको देखते हुए चीन ने इंटरनेशनल एजुकेशन फाउंडेशन की शुरुआत की थी। वर्ष 2017 में नेशनल एसोसिएशन आफ स्कॉलर ने आउटसोर्स टू चाइना शीर्षक से एक रिपोर्ट भी जारी की थी। इसमें बताया गया था कि विश्व के करीब 113 देशों में चीन के इस तरह के संस्थान काम कर रहे हैं।