नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कड़े आतंकवाद विरोधी कानून के तहत एक आरोपी व्यक्ति को जमानत देते हुए कड़ी टिप्पणी की। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि कानूनी सिद्धांत ‘जमानत नियम है,जेल अपवाद है’ सभी अपराधों पर लागू होता है। यह नियम गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम जैसे विशेष कानूनों के तहत दर्ज अपराध भी शामिल हैं।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि यदि अदालतें उचित मामलों में जमानत देने से इनकार करना शुरू कर देंगी तो यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।
जमानत के मामले पर विचार करना अदालत का कर्तव्य
पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘अभियोजन पक्ष के आरोप बहुत गंभीर हो सकते हैं, लेकिन कानून के अनुसार जमानत के मामले पर विचार करना अदालत का कर्तव्य है। जमानत नियम है और जेल अपवाद है, यह विशेष कानूनों पर भी लागू होता है। अगर अदालतें उचित मामलों में जमानत देने से इनकार करना शुरू कर देती हैं, तो यह अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन होगा।’
PFI मामले में जलालुद्दीन खान पर लगा था UAPA
कोर्ट ने यह फैसला जलालुद्दीन खान नामक व्यक्ति को जमानत पर रिहा करते हुए सुनाया। खान पर UAPA के कड़े प्रावधानों और अब समाप्त हो चुकी भारतीय दंड संहिता की अन्य धाराओं के तहत प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के कथित सदस्यों को अपने घर की ऊपरी मंजिल किराए पर देने के आरोप में मामला दर्ज किया गया था।
देश में जमानत के अभाव में देश में जमानत के अभाव में
बता दें कि ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद है’ यह अवधारणा 1977 में न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर द्वारा ‘राजस्थान राज्य बनाम बालचंद उर्फ बलिया’ मामले में लिखे गए फैसले में अस्तित्व में आई थी, और तब से अदालतों द्वारा बड़ी संख्या में मामलों में इसका उल्लेख किया गया है। देश में जमानत के अभाव में जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की संख्या बहुत बड़ी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, 31 दिसंबर, 2022 तक देश में विचाराधीन कैदियों की कुल संख्या 4,34,302 थी।