जम्मू, : जम्मू कश्मीर के डोडा जिले के एक ‘खामोश’ गांव की गलियों में भी अब बातों के कहकहे लगेंगे। ये बातें इशारों में होंगी। गांव के लोगों में खुशी है कि भारतीय सेना ने उनका हाथ थाम लिया है। उनकी चिंता दूर हो जाएगी कि उनकी पीढ़ी की जिंदगी गुमसुम रहने में नहीं गुजरेगी। कई पीढ़ियों से मूकबधिर होने का दंश झेल रहे इन इन परिवारों के बच्चे अब इशारों में अपनी बात सरकार और देश के हर व्यक्ति तक पहुंचा सकेंगे। उन्हें सांकेतिक भाषा सिखाने के लिए गांव में स्कूल खुलेगा और हास्टल भी होगा।
डोडा के गंदोह तहसील के भलेसा ब्लाक का एक गांव है-डडकाई। भारतीय सेना की राष्ट्रीय राइफल्स ने इस गांव को गोद ले लिया है। वर्तमान में इस बीमारी से ग्रसित करीब 80 लोग न तो बोल सकते हैं और न ही उनमें सुनने की क्षमता है। एक परिवार के सात बच्चों में से सिर्फ एक ही बोल व सुन सकता है। मां-बाप तनाव में हैं कि उनके बच्चों का भविष्य क्या होगा। गर्भवती महिलाओं को चिंता खाये जा रही है कि उनकी कोख से जन्म लेने वाला बच्चा बोल पाएगा भी या नहीं।
गुज्जरों का यह गांव मिनी कश्मीर कहे जाने वाले भद्रवाह से करीब 105 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ की चोटी पर स्थित है। इस गांव में 105 परिवार हैं। इनमें से 55 परिवारों का एक या इससे अधिक सदस्य मूकबधिर है। इनमें 41 महिलाएं और तीन से 15 साल तक के 30 बच्चे हैं। गांव में ऐसी बीमारी होने से इस गांव में लोग शादियां करने से कतराते हैं। जिन परिवारों में मूकबधिर हैं, उनकी शादी करना भी संभव नहीं हो पा रहा है क्योंकि वंशानुगत बीमारी होने के चलते लोग इस गांव में शादी से कतराते हैं।