सम्पादकीय

जीएसटी ही विकल्प


यह अवश्य राहतकारी है २५ दिनोंके बाद बुधवारको पहली बार पेट्रोलियम और डीजलके खुदरा मूल्यमें १७ पैसे प्रति लीटरकी कटौती की गयी। यह इस वर्षकी पहली कटौती है जबकि फरवरीमें पेट्रोल और डीजल १६ बार महंगा हुआ। इसके बावजूद पेट्रोल और डीजलके मूल्य अब भी रिकार्ड ऊंचाईपर है। इस वर्ष २७ फरवरीको अन्तिम बार पेट्रोल और डीजलके मूल्यमें बदलाव हुआ था। दो राज्यों राजस्थान और मध्यप्रदेशमें पेट्रोल १०१ रुपयेके पार है। जनवरीमें भी पेट्रोल और डीजलके मूल्योंमें दस बार वृद्धि हुई थी। जनवरीमें पेट्रोल सात रुपये २८ पैसे जबकि डीजल ७.४३ रुपये प्रति लीटर महंगे हुए। एक वर्षमें पेट्रोल २१ रुपयेसे अधिक महंगा हुआ और डीजलके मूल्यमें १९.०१ रुपयेकी वृद्धि हुई। अन्तरराष्टï्रीय बाजारोंमें कच्चे तेलके भावमें ५० प्रतिशत वृद्धि होनेके अतिरिक्त इसकी मूल्य वृद्धिका सबसे बड़ा कारण केन्द्र और राज्य सरकारोंका कर है। केन्द्रीय उत्पाद शुल्क, जो जनवरी २०२० में १९.३८ रुपये थी उसे बढ़कर अब ३२.९८ रुपये कर दिया गया है। इसी प्रकार डीजलपर केन्द्रीय उत्पाद शुल्क १५.८३ रुपये प्रति लीटरसे बढ़ाकर ३१.८३ रुपये कर दिया गया है। इसके अलावा केन्द्र और राज्य सरकारें वैट भी वसूलती हैं। सबसे खास बात यह है कि २००८ में अन्तरराष्टï्रीय बाजारमें जब कच्चे तेलका भाव १४७ डालर प्रति बैरल था तब पेट्रोल खुदरामें ४५ रुपये प्रति लीटर था। आज कच्चा तेल ६४ डालर प्रति बैरल है तब पेट्रोल सौ रुपये प्रति लीटर बिक रहा है। इससे स्पष्टï है कि पेट्रोल और डीजलकी मौजूदा कीमतोंमें सबसे बड़ा हिस्सा करोंका है जो जनताकी जेबसे वसूला जा रहा है। सरकारी राजस्वकी कमाईका यह प्रमुख हिस्सा बन गया है। संसदमें मंगलवारको बताया गया कि पेट्रोल और डीजलपर लगनेवाले उत्पाद शुल्कसे विगत दस महीनोंमें लगभग तीन लाख करोड़ रुपयेकी कमाई सरकारको हुई। वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुरने स्पष्टïत: कहा कि पेट्रोल और डीजलपर लगनेवाले करोंमें कोई कटौती नहीं होनेवाली है। अब बड़ा प्रश्न यह है कि जनताको पेट्रोल और डीजलके बढ़ते मूल्योंसे कैसे राहत दी जाय। इसका उत्तर असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। केन्द्र और राज्य सरकारें करोंमें कटौतीके लिए दृढ़ इच्छाशक्तिके साथ आगे आयें। जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के दायरेमें इसे लाना इसका एक रास्ता है। केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमणने मंगलवारको लोकसभामें कहा कि जीएसटी कौंसिल इसपर विचार-विमर्श करनेको तैयार है। अब इस दिशामें कदम आगे बढ़ानेकी जरूरत है, क्योंकि पेट्रोल और डीजलके बढ़े हुए मूल्योंसे जनतामें आक्रोश है। उद्योग व्यापारपर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। पांच राज्योंमें विधानसभाओंके चुनाव होनेके बाद इसकी कीमतें फिर बढ़ सकती हैं। इसलिए जीएसटीके दायरेमें इसे लाना एकमात्र विकल्प है।

नक्सली हमला

आतंकवादके साथ नक्सली हिंसा देशके लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। नक्सल प्रभावित राज्योंमें इनकी सक्रियताने राज्योंकी मुसीबत और बढ़ा दी है। झारखण्डके बाद छत्तीसगढ़में नक्सलियोंने एक बार फिर बड़ा हमला किया है। छत्तीसगढ़के नारायणपुरमें नक्सलियोंने बारूदी सुरंगमें विस्फोट कर सुरक्षाबलोंकी एक बसको बमसे उड़ा दिया। इस हमलेमें पांच जवान भी शहीद हो गये, जबकि एक दर्जनसे अधिक जवान घायल हो गये, जिनमें कुछकी हालत अत्यन्त गम्भीर होनेसे मौतका आंकड़ा अभी और बढऩेकी आशंका है। यह हमला उस समय किया गया, जब डिस्ट्रिक रिजर्व गार्डके जवाब नक्सलियोंके खिलाफ अभियानसे जिला मुख्यालय लौट रहे थे। घात लगाये नक्सलियोंने आईईडी विस्फोट कर दिया। विस्फोट इतना तगड़ा था कि बस जहां उड़ गयी, वहीं सड़कपर बड़ा और गहरा गड्ढïा हो गया। पिछले एक सालमें यह दूसरा बड़ा नक्सली हमला। पिछले वर्ष २१ मार्चको भी नक्सलियोंने सुरक्षाबलोंपर घात लगाकर हमला किया था, जिसमें कई जवान शहीद हो गये थे। छत्तीसगढ़के मुख्य मंत्री भूपेश वघेलने जवानोंकी शहादतपर दुख व्यक्त करते हुए घटनाकी कड़े शब्दोंमें निन्दा की है। उन्होंने कहा है कि सुरक्षाबलोंकी लगातार काररवाईसे नक्सलियोंके पांव उखडऩे लगे हैं। यह उनकी हताशाका परिणाम है। नक्सलियोंके खिलाफ अभियानके बावजूद नक्सलियोंकी बढ़ती गतिविधि चिन्ताका कारण बन गयी है। नक्सलियोंके खिलाफ सख्त अभियान तो चलाया ही जाना चाहिए साथ ही उन्हें मुख्यधारामें लौटनेके लिए प्रेरित करनेवाला अभियान भी चलाया जाना चाहिए। केन्द्र सरकारको नक्सल प्रभावित राज्योंको विशेष सहयोग देकर नक्सली समस्याका हाल निकालना चाहिए। उन क्षेत्रोंमें शिक्षाका महाअभियान भी चलानेकी भी जरूरत है। हिंसा किसी समस्याका हल नहीं है इसलिए नक्सलियोंको भी हिंसाका रास्ता छोडऩा होगा। देश और राज्योंके विकासके लिए नक्सली समस्याका समाधान कैसे हो, इसपर मंथनकी जरूरत है।