शिवप्रसाद ‘कमल’
तीर्थोंके महत्वके सम्बन्धमें हमारे यहां पुराणोंमें विस्तारसे बताया गया है। कहा गया, तीथ्र्यते अनने वा तरन्त्यनेने वा। अर्थात्ï जिन स्थानों, सन्तों, देवालयोंके दर्शनसे मनुष्य सारे दुख रूपी सालारको पार कर जाता है अथवा तैर जाता है, उन्हें तीर्थ कहते हैं। माना गया कि जहां जानेपर मन स्वत: सांसारिक कलह, ईष्र्या-द्वेष, दम्भ, अभिमान काम-क्रोध आदिको छोड़ देता है और जिस स्थानपर साधु-सन्तों ज्ञानी महात्माओंके उपदेश सुनकर तीर्थ करनेवालेको ऐसा मनोबल मिलता है, ऐसी आध्यात्मिक शक्ति आ जाती है कि वह सांसारिक मोह-मायाको पार कर उस परलोकमें पहुंच जाता है-जहां रोग एवं शोक नहीं होता। तीर्थोंको कई भेदोंमें बांटते हुए सबसे प्रथम जंगम तीर्थ अर्थात्ï चलता-फिरता तीर्थ औरर दूसरा मानस तीर्थ कहा गया। इसमें स्नान करके तीर्थ यात्रीको परम मंगल, दान, दम, संतोषकी प्राप्ति होती है। उनके लिए सत्य, क्षमा, इन्द्रिय-निग्रह, सर्वभूत दया, सरलता आदि सहज सुलभ तीर्थ है। इन सबमें बड़ा, सबसे बड़ा तीर्थ ब्रह्मïचर्य पालन, प्रियवादिता, ज्ञान धृति माने जाते हैं। अर्थात्ï जिन गुणोंके द्वारा मानसिक शुद्धि हो जाती है। वही तीर्थके समान हैं। तीसरा तीर्थ यथावर तीर्थ है। पृथ्वीपर कभी-कभी बड़े ही पुण्यात्मा, उच्चकोटिके महात्मा अपने तयके द्वारा किसी विशेष स्थलको ऐसा पवित्र बना देते हैं कि वहां जाते ही उन ऋषि-महात्माओंकी स्मृति मात्रसे पापोंका क्षय हो जाता है। तीर्थ यात्री शुद्ध-पवित्र बन जाता है। उन स्थलोंपर पवित्र नदियोंमें स्नान करने, देवदर्शन करने, वार्ता सुनने एवं यज्ञ करनेका विशेष महत्व इसलिए माना जाता है कि वहांके वातावरणके प्रभावसे मन, बुद्धि, शरीर स्वत: निर्मल बन जाते हैं। तीर्थोंके सम्बन्ध आदि शंकराचार्यने भी उपरोक्त बातोंका वर्णन किया है। श्रीमद्भागवतमें कथा आती है कि एक बार युधिष्ठिïरने विदुरसे कहा कि जब राजा भगीरथ गंगाको लेनेके लिए गये तो भगवती गंगा बोलीं- तुम मुझे पृथ्वीपर इसलिए ले जाना चाहते हो कि तीर्थ प्रेमी मुझमें स्नान करके अपने पापोंका प्रक्षालन कर सकें। परन्तु यह तो बताओ मैं सबका पाप बटोरकर उनको कहां धोने ले जाऊंगी। तब महाराज भगीरथ बोले- आपके तटपर शांत चित्त ब्रह्मïनिष्ठï महात्मा निवास करेंगे, जिनका स्वभाव ही लोगोंका पाप हरण कर उन्हें पवित्र बना देना है। उनके हृदयमें समस्त पापोंको समूल नष्टï करनेवाले भगवान निवास करते हैं। वे जब आपके जलमें स्नान करेंगे तो उनका सारा मल संत-महात्मा स्वयं हरण कर लेंगे। ऐसी है तीर्थोंकी महिमा। इन तीर्थोंमें सप्तपुरियां सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं जहां जाते ही व्यक्तिका तन-मन निर्मल हो जाता है और उसके जीवनके सभी पाप धुल जाते हैं।