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तो यह है चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की नीति पर तृणमूल में उठापटक की वजह


कोलकाता। बंगाल की सत्ता पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के तीसरी बार काबिज होने में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) की रणनीति अहम रही है। परंतु उसी पीके की नीतियों पर तृणमूल कांग्रेस में ऐसा घोर द्वंद्व शुरू हो गया है कि ममता को अध्यक्ष को छोड़कर पार्टी के सभी शीर्ष पदों को निरस्त कर पूरी कमान अपने हाथों में लेनी पड़ी है। यहां तक कि आठ माह पहले ही भतीजे अभिषेक बनर्जी को दिए गए पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव का पद भी उन्होंने समाप्त कर दिया। आखिर तृणमूल के लिए पीके ने कैसी नीति तैयार की है, जिससे पार्टी में ऐसा उबाल आ गया है? जिस पार्टी ने महज नौ माह पहले इतनी बड़ी जीत दर्ज की, उसमें ऐसी उठापटक क्यों? यह ऐसा प्रश्न है, जिसका उत्तर हर कोई तलाशने की कोशिश में है।

कुछ ममता और अभिषेक के बीच चुनावी रणनीतिकार की वजह से टकराव बता रहे हैं तो कुछ पीके-अभिषेक के खिलाफ तृणमूल के एक बड़े धड़ा का विरोध कह रहे हैं। परंतु इस घोर द्वंद्व का प्रमुख कारण पीके की ‘एक व्यक्ति, एक पद’ नीति मानी जा रही है, जिसे तृणमूल प्रमुख के भतीजे पार्टी में लागू करना चाह रहे हैं। दरअसल, राष्ट्रीय महासचिव बनने और पीके के साथ पार्टी के विस्तार के लिए अन्य राज्यों की जिम्मेदारी संभालने के बाद अभिषेक अघोषित रूप से ममता के बाद तृणमूल में नंबर दो नेता माने जाने लगे थे। तृणमूल के शीर्ष नेताओं का एक बड़ा वर्ग और यहां तक कि खुद ममता भी इसे लागू करने के पक्ष में नहीं हैं।