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दशकों से अधर में यमुना सफाई अभियान,


केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने इसके लिए दिल्ली सरकार को जिम्मेदार ठहराया तो वहीं दिल्ली सरकार का कहना है कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश द्वारा अशोधित पानी यमुना में गिराए जाने से ऐसे हालात बने हैं।

 राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आस्था के महापर्व छठ के आरंभ से ही यमुना नदी में श्रद्धालुओं के जहरीले झाग के बीच डुबकी लगाने की तस्वीरें इन दिनों इंटरनेट मीडिया पर खूब साझा की जा रही हैं। इस वजह से यमुना में प्रदूषण को लेकर चर्चा जोरों पर है। हालांकि यह कड़वी सच्चाई है कि यमुना जैसी पवित्र नदी दिल्ली में आकर किसी गंदे नाले में तब्दील हो गई है। यमुना नदी की सफाई की देखरेख के लिए नियुक्त एक निगरानी समिति की रिपोर्ट के मुताबिक यमुना के कुल प्रदूषण में दिल्ली की हिस्सेदारी सबसे अधिक है।

इसे विडंबना ही कहेंगे कि दिल्ली के वजीराबाद से ओखला तक यमुना नदी का 22 किमी का हिस्सा (जो इस नदी की लंबाई का दो प्रतिशत से भी कम है) सबसे ज्यादा प्रदूषित है और नदी के कुल प्रदूषण में लगभग 76 प्रतिशत योगदान इस क्षेत्र का है। हर दिन राजधानी के 18 बड़े नालों के जरिये 350 लाख लीटर से अधिक गंदा पानी और असंशोधित सीवेज सीधे यमुना में बहाया जाता है। इस गंदे पानी में फास्फेट और एसिड भी होता है जिससे पानी में जहरीला झाग बनता है जो एक गंभीर चिंता का विषय है।

निगरानी समिति की रिपोर्ट के अनुसार वजीराबाद से ओखला के बीच ऐसे कई स्थान हैं जहां नदी नौ माह तक सूखी रहती है। जाहिर है, जब तक नदी में न्यूनतम प्रवाह सुनिश्चित नहीं किया जाता, तब तक इसका पुनरुद्धार संभव नहीं है। लेकिन यह विडंबना ही है कि यमुना की सफाई को लेकर राज्य से लेकर केंद्र की सरकारें बस सियासत में मशगूल हैं, आरोपों की टोपी पहनाने में व्यस्त हैं। कहा जा सकता है कि यमुना की सफाई के नाम पर सरकारों ने केवल गाल बजाकर ही अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की है और यमुना की सफाई का मुद्दा राजनीतिक वादों और चुनावी मेनिफेस्टो तक ही सिमटा रहा है।