- दिल्ली के कई इलाकों में लोगों को पानी की कमी से दो-चार होना पड़ रहा है. लोग टैंकर से पानी भरने की जद्दोजहद मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना भूल जाते हैं. इससे कोरोना संक्रमण का भी खतरा बना रहता है. लोगों को टैंकर से पानी भरते समय कई बार चोट भी लग जाती है.
नई दिल्लीः कोरोना से बचाव के दो सबसे कारगर उपाय हैं मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखना. लेकिन जब बात ज़िन्दगी की जद्दोजहद की हो तो कोरोना से बचाव की हिदायतें कहीं पीछे छूट जाती हैं. राजधानी दिल्ली में भी कोरोना की दूसरी लहर ने हाहाकार मचा दिया था. अब मामले भले ही कम हुए हों लेकिन कोरोना फैलने का खतरा अभी भी कम नहीं हुआ है. ऐसा हम इसलिये कह रहे हैं क्योंकि बढ़ती गर्मी के बीच पानी की किल्लत से जूझ रहे लोग पानी के टैंकर को देखते ही उस पर चढ़ने की कोशिश में सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क भूल जाते हैं.
दिल्ली के पॉश चाणक्यपुरी इलाके में जहां एम्बेसी है, सरकारी भवन हैं और वीवीआइपी रहते हैं. वहां लोग किस तरह रोज़ जान हथेली पर लिए कोरोना के खतरे के बीच बूंद बूंद पानी की लड़ाई लड़ रहे हैं.
5.30-6 बजे से ही लग जाती है लाइन
विवेकानंद कैम्प में पानी का टैंकर सुबह 7 बजे और दोपहर 1 बजे के करीब आने का समय है. लोग सुबह 5.30-6 बजे से ही अपने डब्बे बाल्टी लेकर कतार बना लेते हैं. लेकिन लोगों का कहना है कि यहां टैंकर तय समय पर शायद ही कभी आता है. टैंकर आते ही ज़्यादातर लोग बिना मास्क के भीड़ में घुसकर पानी भरने की कोशिश में लग जाते हैं. कोरोना फैलने से डर नहीं लगता. इस पर लोगों का कहना है पानी के बिना मर जाये, उससे अच्छा कोरोना से मर जाए.
नेता सिर्फ वादे करते हैं
विवेकानंद कैम्प में रहने वाले 22 साल के संजीव का कहना है कि जल ही जीवन है तो क्या करें. अगर पानी ही नहीं मिलेगा तो जिएंगे कैसे. संजीव का कहना है कि मैं बचपन से पानी ढो रहा हूं और अब ग्रेजुएशन पूरी हो गई है. नेता आते हैं, वादे करते हैं और चले जाते हैं.