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दिल्ली-एनसीआर में बने ज्यादातर फ्लैट और घर नहीं झेल सकते तेज भूकंप के झटके


नई दिल्ली, । सिस्मिक जोन चार में शामिल दिल्ली एनसीआर में मंगलवार देर रात महसूस किए गए भूकंप के झटकों ने एक बार लोगों को हिलाकर रख दिया है। यह डर अतार्किक भी नहीं है। वह इसलिए क्योंकि भूकंप के लिहाज से दिल्ली- एनसीआर सर्वाधिक जोखिम वाली दूसरी श्रेणी यानी सिस्मिक जोन- चार में शामिल है।

केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय के अधीन आने वाली बिल्डिंग मैटीरियल एवं टेक्नालोजी प्रोमोशन काउंसिल द्वारा कोरोना काल के बाद किए गए एक सर्वेक्षण में भी यहां के लगभग 80 प्रतिशित फ्लैटों और घरों के असुरक्षित होने की आशंका जताई गई है।

सैकड़ों पुरानी इमारतें जर्जर स्थिति में

भू वैज्ञानिकों की मानें तो दिल्ली सहित एनसीआर के नोएडा, गुरुग्राम, गाजियाबाद, फरीदाबाद आदि शहरों में बड़ी संख्या में मौजूद फ्लैट और घर भूकंप के तेज झटकों को नहीं झेल सकते। वहीं दिल्ली के भी कई इलाकों में अवैध रूप से बसी कालोनियां और पहले से बनी ऐसी सैकड़ों पुरानी इमारतें हैं जो भूकंप के दौरान ढहने की कगार पर हैं।

30 साल पुरानी इमारतें सुरक्षित नहीं

सेंटर फार साइंस एंड एन्वायरनमेंट (सीएसई) में सस्टेनेबल हैबिटेट प्रोग्राम के निदेशक रजनीश सरीन बताते हैं कि पिछले दो दशकों के दौरान दिल्ली एनसीआर में निर्माण कार्य तेजी से हुआ है। यहां 30-35 मंजिला गगनचुंबी इमारतें भी बड़ी संख्या में बनी हैं। इनमें मानदंडों की अनदेखी गई है। इसके अलावा जिन बिल्डिंगों को बने 30 साल हो चुके हैं, उन्हें भी सुरक्षित नहीं कहा जा सकता।

निर्माण के दौरान नहीं किए जाते नियमों के पालन

उन्होंने बताया कि कोई भी हाइराइज इमारत अथवा पुराना घर शक्तिशाली भूकंप से कितना प्रभावित होगा, यह कई चीजों पर निर्भर करता है। जैसे उस इमारत में यदि मैटीरियल इस तरह जोड़कर लगाया गया है कि वह अलग-अलग दिशाओं में व्यवहार करता है तो इमारत में भूकंप के दौरान दरार आने या गिरने का खतरा पैदा हो जाता है। निर्माण में इस्तेमाल होने वाले सरिये की लैब में जांच न करवाए बिना उसका इस्तेमाल करना, नई या पुरानी इमारत के आसपास लंबे समय तक जलभराव की समस्या, रखरखाव का अभाव, कई सालों तक इमारत पर पेंट न होना या सीमेंट का उखड़ते रहना और खराब माल का इस्तेमाल आदि भी इमारतों को कमजोर बनाता है।

गाइडलाइंस जारी, लेकिन नहीं हो रहा पालन

रजनीश कहते हैं कि नेपाल में पहले आए भूकंप के बाद केंद्र सरकार की ओर से इमारतों या निर्माण स्थलों के रीसर्टिफिकेशन को लेकर नई गाइडलाइंस जारी की गई थीं, जिनमें पुरानी बिल्डिंगों को स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स से रीसर्टिफाई कराना अनिवार्य किया गया है। लेकिन इसके लिए पैच टेस्ट करना होता है, जिसमें कंक्रीट का सैंपल लेकर उसे लैब में भेजा जाता है।

भूकंप में हो सकता है नुकसान

रजनीश कहते हैं कि कुछ दिन पहले आई रिपोर्ट और सर्वे में बताया गया है कि दिल्ली एनसीआर में 80 प्रतिशत इमारतें भूकंप के लिहाज से रहने लायक नहीं हैं। यह सर्वे फिजिकली किया गया था या लैब पर आधारित था, कहना जरा मुश्किल है, लेकिन कहा गया है कि रिक्टर स्केल पर सात की तीव्रता का भूकंप आया तो दिल्ली में बड़ा नुकसान हो सकता है। डीडीए ने भी ऐसी 300 इमारतों की सूची तैयार की थी जो भूकंप नहीं झेल सकतीं।