सामाजिक कार्यकर्ताओं ने की आलोचना
बता दें कि जामा मस्जिद के इस आदेश को कट्टरवादी मानसिकता बताकर आलोचना हो रही है। लोग कह रहे हैं कि कैसे आधी आबादी के साथ कोई ऐसा बरताव कर सकता है। इस मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता शहनाज अफजल ने कहा कि भारत जैसे देश में जहां हर किसी को बराबरी का अधिकार मिला हुआ है। उसमें इस तरह का फैसला संविधान को ताक पर रखने जैसा है। उन्होंने आगे कहा कि इस तरह का फैसला किसी भी सूरत में मान्य नहीं है। ये फैसला लेने वाले लोग उस मानसिकता के हैं जो लड़कियों को अंधकार के कुएं में रखना चाहते हैं।
इस मामले को लेकर मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के प्रवक्ता शाहिद सईद ने भी इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि यह मानसिकता गलत है। उन्होंने कहा कि इबादत की जगह हर किसी के लिए खुली होनी चाहिए। यहां महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का बरताव क्यों। अन्य धर्म के धार्मिक स्थलों में यह अंतर नहीं है।
मस्जिद के प्रवक्ता ने किया इस फैसले का बचाव
इस संबंध में जामा मस्जिद के प्रवक्ता सबीउल्लाह ने इस निर्णय का बचाव करते हुए कहा है कि जामा मस्जिद में कई सारे कपल ऐसे आ जाते हैं जिनका व्यवहार धर्म के अनुसार नहीं होता है। साथ ही उन्होंने कहा किसोशल मीडिया के लिए वीडियो बनाने के लिए भी यहा कुछ युवतियां आती हैं, जो नमाज स्थल तक आ जाती हैं जिसके कारण नमाजियों को असुविधा होती है। उन्होंने कहा कि अंदर मस्जिद में वीडियो न बनाने के संदेश भी लिखे हैं।
दिल्ली के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है जामा मस्जिद
बता दें कि दिल्ली का ऐतिहासिक जामा मस्जिद मुगलों के जमाने की है इसकी गिनती विश्व के सबसे बड़े मस्जिदों में होती है। यह दिल्ली का प्रमुख धार्मिक स्थल में से एक होने के साथ-साथ देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र भी है। रमजान के दिनों में यहां इफ्तार के वक्त रौनक देखते ही बनती है, जहां बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होकर नमाज अदा करते है।