नई दिल्ली, । दिल्ली के बाद अब एनसीआर क्षेत्र में भी प्रदूषित ईंधन का इस्तेमाल करने वाले उद्योग नहीं चल सकेंगे। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान सरकार को इस बाबत स्पष्ट निर्देश जारी कर दिया है। आयोग का कहना है कि एनसीआर के उन क्षेत्रों के उद्योग जहां पीएनजी (पाइप्ड नैचुरल गैस) का बुनियादी ढांचा और आपूर्ति उपलब्ध नहीं है, वहां के उद्योगों को साल के आखिर तक पूरी तरह से बायोमास ईंधन का इस्तेमाल करना होगा।
आयोग ने यह भी कहा है कि बायोमास-ईंधन वाले बायलरों के पार्टिकुलेट मैटर के लिए अधिकतम उत्सर्जन मानक 80 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। हालांकि ऐसे उद्योग उपयुक्त प्रौद्योगिकी उन्नयन, बैग फिल्टर, साइक्लोनिक फिल्टर, वेट स्क्रबर आदि जैसे आवश्यक वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की स्थापना के जरिये 50 मिलीग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के उत्सर्जन स्तर का लक्ष्य रखेंगे, जिसका निर्णय उद्योगों की आनसाइट तकनीकी आवश्यकताओं के आधार पर लिया जाएगा।
आयोग के निर्देशों के मुताबिक नियमित आधार पर कृषि अवशेषों, बायोमास ईंधन के उपयोग पर स्विच करते समय, एनसीआर में ऐसे सभी उद्योगों को अतिरिक्त शर्तों के साथ संबंधित प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से संचालन के लिए एक संशोधित सहमति का आवेदन कर अनुमति प्राप्त करनी होगी। इससे पहले आयोग ने एनसीआर में पीएनजी अथवा स्वच्छ ईंधन का उपयोग नहीं करने वाले उद्योगों के संचालन को सप्ताह में सिर्फ पांच दिन तक सीमित रखा था। लेकिन विभिन्न संगठनों, संघों और उद्यमियों ने पीएनजी के अलावा बायोमास ईंधन के उपयोग की अनुमति के लिए अनुरोध किया।
उनका तर्क था कि बायोमास ईंधन कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन की तुलना में पर्यावरण के अधिक अनुकूल है। इस पर आयोग ने भी कहा कि वर्तमान में बायलर संचालन के लिए बायोमास ईंधन का उपयोग करने वाले उद्योगों से पीएम उत्सर्जन के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि कार्बन उत्सर्जन के मामले में बायोमास ईंधन पारंपरिक जीवाश्म ईंधन जैसे कोयला, डीजल तेल आदि की तुलना में बहुत बेहतर है।