ऐसा नहीं है कि दिल्ली में पहली बार प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंचा है। पूर्व में भी कई बार ऐसा देखने को मिला है। इस बाबत पहले भी हाई कोर्ट दिल्ली सरकार एवं सिविक एजेंसियों को फटकार लगा चुकी है। जस्टीस बीडी अहमद एवं जस्टीस सिद्धार्थ मृदुल की पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए दिल्ली सरकार, नगर निगमों एवं दिल्ली जल बोर्ड से कहा था कि जीवन के लिए पानी सबसे महत्वपूर्ण है, परंतु यमुना में जिस कदर जहर घुला हुआ है, इसे ‘ड्रेन नदी’ कहना उचित होगा। जल बोर्ड ने दिल्ली में ड्रेनेज के लिए मास्टर प्लान की जानकारी देने की बात भी कही थी, परंतु आज तक किसी ठोस कार्ययोजना पर कार्य नहीं हुआ। उल्लेखनीय है कि केंद्र एवं राज्य सरकार में तालमेल का अभाव हर साल सैकड़ों जिंदगियों पर भारी पड़ता है एवं आरोप-प्रत्यारोप का दौर तब तक चलता है जब तक प्रकृति में अपेक्षित बदलाव न हो जाए और एक बार फिर सरकार को कुंभकर्णी नींद में जाने का मौका मिल सके।
विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में अग्रिम पंक्ति में खड़ी दिल्ली ने सरकार को भी हांफने पर मजबूर कर दिया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर पिछले लंबे समय से ‘गंभीर’ श्रेणी में है। अगले कुछ दिनों तक इसमें सुधार की उम्मीद कम ही दिखती है। इस कारण राजधानी दिल्ली में लोग अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। हवा में घुलते जहरीले कण लोगों में अस्थमा, बेचैनी, हृदय गति रुकना एवं थकान जैसे लक्षण पैदा कर रहे हैं जिससे अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ रही है।