नई दिल्ली। मुख्य याचिकाकर्ता और वसंत विहार निवासी पद्मश्री प्रो. डा. संजीव बगाइ (पर्यावरणविद्) और वसंत विहार वेलफेयर एसोसिएशन (वीवीडब्लूए) की जंग में आखिरकार ‘हरियाली’ की जीत हुई। हालांकि, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के रुख पर दोनों पक्षों के बीच अभी-भी रस्साकसी का खेल जारी है।
याचिकाकर्ता कोर्ट के इस रुख को अपने पक्ष की जीत बता रहा है तो दूसरा पक्ष भी अपनी हार मानने को कतई तैयार नहीं है। जी हां, यह मामला दक्षिण दिल्ली के सोसाइटी वसंत विहार के वृक्षों की छंटाई का है। हरित न्यायलय के फैसले पर दोनों पक्ष अब अपनी-अपनी दलील दे रहे हैं।
सोसाइटी में वृक्षों की छटाई का हुआ विरोध
दरअसल, वसंत विहार में यह मामला तब गरमा गया, जब जनवरी, 2023 में वीवीडब्लूए द्वारा वृक्षों की छंटाई शुरू की गई। इसके पूर्व 2021 में वसंत विहार के वृक्षों की छंटाई हुई थी। उस वक्त किसी ने इसका विरोध नहीं किया था। वीवीडब्लूए का दावा है कि एक प्रक्रिया के तहत वृक्षों की छंटाई की गई थी। हालांकि, इसके पूर्व भी वृक्षों की कटाई को लेकर वीवीडब्लूए को नोटिस मिल चुकी है, लेकिन उस वक्त बिल्डर ने वृक्षों की कटाई की थी। इसलिए उस पर इसकी आंच नहीं आई। इस बार मामला उलटा हो गया। एनजीटी ने इस मामले को संजीदगी से लेते हुए अपना रुख स्पष्ट किया तब दोनों पक्षों के बीच सोसाइटी की अंदरुनी सियासत शुरू हो गई है।
क्या है याचिकाकर्ता का पक्ष
डा. बगाइ और अन्य ने दिसंबर, 2022 में एनजीटी अधिनियम 2010 की धारा 14 और 15 के तहत याचिका दायर कर सोसाइटी के हरे वृक्षों की अवैध छंटाई करने वालों पर दंडात्मक कार्रवाई करने और इसके दिशा-निर्देश जारी करने की अपील की। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि वीवीडब्लूए द्वारा वृक्षों की अत्यधिक, असंतुलित, अवैज्ञानिक छटाई से पर्यावरण को भारी क्षति होती है। इसका सीधा प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है। इससे सोसाइटी का हरित क्षेत्र नष्ट होता है। याचिकाकर्ता ने कहा कि वह पेड़ों की छंटाई के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसके लिए कानून के तहत और वैज्ञानिक तरीके अपनाया जाना चाहिए।
वसंत विहार वीवीडब्लूए का पक्ष
गुरुप्रिति सिंह बिंद्रा (अध्यक्ष, वीवीडब्लूए) मुझे एनजीटी के फैसले पर कोई ऐतराज नहीं है। कोर्ट के फैसले में 28-29 पैराग्राफ हैं। मैं उन सभी बिंदुओं का भी पालन करूंगा, केवल एक का नहीं। मैं ट्री ऑफिसर के आदेश का पालन करूंगा। अगर मैं वृक्षों या पर्यावरण का विरोधी होता तो मैंने सोसाइटी में 900 पेड़ों का मियावाकी फारेस्ट नहीं लगता। वन विभाग भी इसे देखकर चकित था। मैं विरोधियों की परवाह नहीं करता।
उन्होंने कहा कि लड़ाई कुछ नहीं है, मामला केवल सत्ता का है। सियासत का है। उन्होंने कहा कि यह जंग पर्यावरण से संबधित कम है और व्यक्तिगत लड़ाई ज्यादा है। उन्होंने कहा कि यह हम नहीं कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है।
एनजीटी का फैसला और कानून
एनजीटी ने साफ कर दिया है कि वृक्षों की छंटाई पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए सिर्फ अधिकृत सरकारी विभाग या भू-स्वामित्व रखने वाली संस्थाएं ही संबंधितों से अनापत्ति के साथ कर सकती हैं। इनमें एमसीडी या जमीनी अधिकार रखने वाली एजेंसियां जैसे दिल्ली विकास प्राधिकरण इत्यादि हैं।
कोर्ट ने कहा है कि वीवीडब्ल्यूए को एक निजी संस्था होने के नाते उक्त अधिकार नहीं है। सोसाइटी के अंदर सरकारी जमीन पर लगे वृक्षों को सरकारी एजेंसी ही छंटाई कर सकती है। इस मामले में एनजीटी अब तक कई दौर की सुनवाई कर चुका है। 03 जनवरी को एनजीटी ने वीवीडब्ल्यूए समेत सभी जिम्मेदारों को नोटिस जारी कर हलफनामा मांगा था।