नई दिल्ली । दिल्ली कांग्रेस के कार्यालय में सालों बाद पिछले तीन- चार दिनों से कतार देखने को मिल रही है। यह कतार है एमसीडी चुनाव में टिकट के दावेदारों की, जो वहां आवेदन फार्म लेने पहुंच रहे हैं। लेकिन इसे अगर ”उम्मीद” की कतार कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा। यह कतार एक उम्मीद तो जगाती ही है। फार्म लेने वालों को उम्मीद है चुनाव जीतकर पार्षद बनने की, फार्म दे रहे पार्टी स्टाफ को उम्मीद है आने वाले दिनों में प्रदेश कार्यालय के फिर से गुलजार होने की और प्रदेश नेतृत्व को उम्मीद है दोबारा से एमसीडी में कांग्रेस का वर्चस्व स्थापित होने की। अब अगले दो ढाई माह बाद किस-किस की उम्मीद पूरी होगी और किस-किस की टूटेगी, यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन फिलहाल तो यह उम्मीद ही हर किसी के चेहर पर रौनक और आंखों में चमक ला रही है। आखिर उम्मीद पर ही दुनिया कायम है।
ताकि खजाना तो भरे
एमसीडी चुनाव के लिए प्रदेश कांग्रेस ने जो आवेदन फार्म निकाला है, उसके साथ पांच हजार रुपये आवेदन शुल्क जमा कराना भी अनिवार्य है। यह है भी नान रिफंडेबल। 2002 में यह शुल्क तीन हजार रुपये था। 2007, 2012 और 2017 में टिकट मांगने वालों से कोई शुल्क नहीं लिय गया, जबकि इस बार सीधे पांच हजार रुपये तय कर दिया गया। पार्टी का तर्क है कि यह शुल्क इसलिए रखा गया है ताकि अगंभीर लोग न आएं। लेकिन परदे के पीछे का एक सच यह भी है कि पार्टी सियासी रूप से ही नहीं, हाल फिलहाल आर्थिक रूप से भी काफी कमजोर है। इसीलिए चुनावी गणित के बीच कांग्रेस ने दांव खेला कि आवेदन शुल्क के बहाने कम से कम पार्टी के ”खजाने” में ही कुछ वृद्धि हो जाए। टिकट की एवज में कुछ मांगा जाता तो उस पर सवाल खड़े होते, लेकिन आवेदन शुल्क में ऐसा कोई पेच नहीं है।