- नई दिल्ली, । अक्सर अपने फैसलों से सबको चौंकाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दूसरे कार्यकाल के पहले मंत्रिमंडल विस्तार में ही भारी फेरबदल करते हुए स्पष्ट संकेत दिया कि आज के बाद से सरकार का स्वरूप भी बदलेगा और कार्यशैली भी। फोकस होगा विकास। इसके संकेत प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिए भी जब उन्होंने मंत्रियों को बधाई देते हुए हैशटैग दिया, ‘गवर्नमेंट फार ग्रोथ’। यही नहीं विस्तार से पहले ही 12 मंत्रियों का इस्तीफा ले लिया गया जिनमें छह कैबिनेट मंत्री थे।
जिन मंत्रियों का इस्तीफा लिया गया उनमें कानून एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद, सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर, स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन, शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक शामिल थे। जाहिर तौर पर कुछ का पत्ता तो केवल उनके प्रदर्शन के कारण कटा, लेकिन कुछ मंत्रियों का बाहर जाना चौंकाने वाला रहा क्योंकि वे न सिर्फ अनुभवी रहे हैं बल्कि अपनी क्षमता भी साबित करते रहे हैं। सरकार अब शायद नए चेहरों और नए जोश के साथ आगे के तीन वर्ष चलना चाहती है।
15 नए कैबिनेट मंत्रियों की सूची में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया और असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल शामिल हैं, जबकि सात को उनके प्रदर्शन के आधार पर राज्यमंत्री से प्रोन्नत किया गया है। ब्यूरोक्रेट, टेक्नोक्रेट व अधिवक्ता के रूप में अनुभवी लोगों को जहां सरकार में शामिल किया गया है, वहीं ओबीसी, अनुसूचित जाति, जनजाति वर्ग को बड़ी संख्या में शामिल कर चुनावी और राजनीतिक समीकरण भी साधे गए।
बुधवार को कुल 36 नए मंत्रियों ने शपथ ली जिनमें से 28 राज्यमंत्री बनाए गए हैं। कोशिश यह रही कि सरकार में अधिकतर राज्यों के प्रतिनिधि मौजूद रहें। फिलहाल 25 राज्यों के सांसद सरकार में हैं और पूर्वोत्तर से पांच को अवसर मिला है। यह अब तक का मोदी सरकार का सबसे बड़ा मंत्रिमंडल है। पहले कार्यकाल में उनकी सरकार में 70 से कम मंत्री थे।
बुधवार सुबह प्रधानमंत्री ने चाय पर नए मंत्रियों से मुलाकात की और उन्हें सरकार चलाने के गुर दिए। शाम को हुए मंत्रिमंडल विस्तार पर राजनीतिक असर दिखा और कुछ हद तक प्रदर्शन सुधारने की कवायद। दरअसल, कोरोना काल के पिछले डेढ़ वर्ष में जहां कुछ मुद्दों पर चुनौती खड़ी हुई है, वहीं कुछ मंत्री खुद को साबित करने में असफल रहे हैं।
अगले साल की शुरुआत में ही उत्तर प्रदेश में चुनाव हैं और साल के अंत में गुजरात में। ऐसे में दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए यह जताने की कोशिश हुई कि मोदी सरकार सबको साथ लेकर चलती है। लिहाजा, प्रमुख जातियों से इस तरह प्रतिनिधित्व बढ़ा कि अब 76 सदस्यीय मंत्रिमंडल में 27 ओबीसी से हैं, 12 दलित वर्ग से और आठ आदिवासी समुदाय से। मोदी सरकार में अब पांच अल्पसंख्यक वर्ग से हैं। जाहिर तौर पर चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों को वरीयता मिली है।
यूपी से 14 मंत्री, सभी क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व
उत्तर प्रदेश से सात नए मंत्री बनाए गए हैं। यानी अब प्रधानमंत्री को छोड़कर 14 मंत्री उत्तर प्रदेश से हैं। यह भी कोशिश रही कि राज्यों के भीतर भी हर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व हो। लिहाजा पूर्वांचल, अवध, ब्रज, बुंदेलखंड, रुहेलखंड, पश्चिम प्रदेश और हरित प्रदेश के प्रतिनिधियों को मंत्रिमंडल में लिया गया है। सहयोगी दल से केवल अनुप्रिया पटेल को शामिल किया गया।
औसत आयु घटकर 61 से 58 वर्ष हुई
नए मंत्रियों में युवाओं को इतनी तरजीह दी गई है कि अब केंद्रीय मंत्रिमंडल की आयु 61 से घटकर 58 वर्ष हो गई है। बताते हैं कि कुल 14 मंत्री ऐसे हैं जिनकी आयु 50 वर्ष से कम है। इनमें से छह कैबिनेट मंत्री हैं।
राज्यों में मंत्री रह चुके हैं 18 मंत्री
अनुभव की बात करें तो मंत्रिमंडल में 46 चेहरे ऐसे हैं जिनके पास केंद्र सरकार में काम करने का अनुभव है। 23 ऐसे हैं जो कम से कम तीन बार संसद सदस्य रह चुके हैं। प्रधानमंत्री बार-बार केंद्र और राज्य की टीम की बात करते रहे हैं। अब उनकी सरकार में 18 ऐसे चेहरे हैं जिनके पास राज्यों में मंत्री के रूप में काम करने का अनुभव है।
पूर्व ब्यूरोक्रेट बढ़े, अब 11 महिला मंत्री
सरकार में पहले तीन पूर्व ब्यूरोक्रेट थे, अब उनकी संख्या बढ़कर सात हो गई है। मंत्रिमंडल में अब 13 वकील, छह डाक्टर और पांच इंजीनियरिंग पृष्ठभूमि के हैं। महिलाओं की बात करें तो तो कुल 11 मंत्री हैं जिनमें से दो कैबिनेट दर्जे की हैं।
सहयोगी दलों को मिला प्रतिनिधित्व
मंत्रिमंडल विस्तार के बाद सरकार में फिर से सहयोगी दलों की प्रतिनिधित्व बढ़ा है। शिवसेना और अकाली दल के जाने के बाद केवल आरपीआइ ही सरकार में शामिल थी। अब बिहार से जदयू, लोजपा और उत्तर प्रदेश से अपना दल सरकार में शामिल है। फिलहाल केंद्रीय मंत्रिमंडल में चार पद खाली हैं।