बिहारशरीफ (आससे)। नालंदा विश्वविद्यालय में 25 फरवरी को देश विदेश के पर्यावरणविद् जुटेंगे। इस मौके पर ये तमाम विशेषज्ञ पूरी दुनिया में भूजल के गिरते स्तर पर अपने विचार रखेंगे। दो दिवसीय इस कार्यशाला का केंद्र बिंदु बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया जल संसाधन प्रबंधन पर एक्विफर स्टोरेज एंड रिकवरी (एएसआर) प्रणाली होगा। आस्ट्रेलियन सेंटर फॉर इंटरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च की मदद से मेयार और नेकपुर के 7 जगहों पर तैयार किए गए इस रिचार्ज पिट का उद्देश्य भूजल के लगातार गिरते स्तर को रोकना है।
इसी महीने की 10 तारीख को नालंदा विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुनैना सिंह ने मेयार गांव में इसएक्विफर स्टोरेज एंड रिकवरी प्रणाली का लोकार्पण किया था। लोकार्पण के दौरान प्रोफेसर सुनैना सिंह ने बताया था कि आने वाले दिनों में किस तरह से ये परियोजना स्थानीय किसानों और ग्रामीणों के लिए वरदान साबित होगा। कार्यशाला में इन रिचार्ज पिट से मिले उत्साहजनक परिणामों पर विस्तार से चर्चा होगी।
स्थानीय किसानों के मुताबिक इन रिचार्ज पिट के कारण स्थानीय भूजल स्तर में धीरे-धीरे सुधार हो रहा है। किसानों ने उम्मीद जताई है कि आने वाले दिनों में इन रिचार्ज पिट के कारण उन्हे अपने खेतों में कीटनाशक रसायनों का इस्तेमाल भी नहीं करना पड़ेगा और उन्हे सिंचाई की बेहतर सुविधा प्राप्त हो सकेगी।
दो दिनों तक चलने वाले इस सेमिनार के पहले दिन ऑस्ट्रेलिया, रुढ़की, चेन्नई, नई दिल्ली, पटना और पूसा के पर्यावरणविद्द और विशेषज्ञ अपने विचार रखेंगे। जबकि दूसरे दिन विशेषज्ञों का दल राजगीर के मेयार और नेकपुर में पहुंच कर रिचार्ज पिट का अवलोकन करेगा और स्थानीय किसानों से उसके बारे में चर्चा करेगा।
एएसआर तकनीक पर आधारित इस परियोजना का संचालन कुलपति प्रोफेसर सुनैना सिंह के दिशा-निर्देशों के मुताबिक नालंदा विश्वविद्यालय की कई विषयों के शोधकर्ताओं की एक टीम कर रही है। ये प्रणाली दिनों दिन गिरते भूजल स्तर को बेहतर बनाने के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा। नालंदा विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इकोलॉजी एंड एनवायरनमेंट स्टडीज द्वारा तैयार की गई इस परियोजना का फायदा स्थानीय किसानों और ग्रामीणों को मिलना शुरू हो गया है ।
इस परियोजना का उद्देश्य दक्षिण बिहार क्षेत्र में सिंचाई की जरूरतों के समाधान के रूप में एक्विफर रिचार्ज पिट्स (एआरपी) की व्यवहारिकता को साबित करना है। एलआरपी एएसआर प्रणाली के सिद्धांतों के आधार पर स्वदेशी रूप से विकसित तकनीक है। एआरपी इस क्षेत्र में एक उन्नत तकनीक है जो सक्रिय रूप से भूमिगत एक्वीफर्स का उपयोग करता है, ताकि सिंचाई के लिए बारिश के मौसम से, अतिरिक्त वर्षा जल को स्टोर किया जा सके और सर्दियों तथा शुष्क महीनों के दौरान उसका उपयोग किया जा सके।
राजगीर में शुरू की गई इस परियोजना के माध्यम से पहाड़ी और जलोढ़ दोनों इलाकों में एएसआर तकनीक की व्यवहारिकता को साबित करने की कोशिश की जा रही है। दोनों गांवों में चलाई जा रही इस परियोजना की सफलता सर्दियों के फसल के लिए बेहतर जल संसाधनों में वृद्धि कर सकता है।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि बदलती जलवायु परिस्थितियों में एएसआर स्थानीय परिस्थितियों और चुनौतियों के अनुकूल बन सकता है। नालंदा विश्वविद्यालय एएसआर तकनीक पर आधारित अपनी इस परियोजना के माध्यम से एक भूमिगत जल बैंक बनाने की कोशिशों में जुटा हुआ है, जिसका सीधा-सीधा सरोकार जलवायु परिवर्तन में ठहराव लाकर स्थानीय किसानों के लिए कृषि को मुनाफे का सौदा बनाना है।