पटना

पटना: नहाय-खाय के साथ चैती छठ आज से


खरना कल, रवियोग में सायंकालीन अर्ध्य रविवार को

पटना (आससे)। लोक आस्था के महापर्व चैती छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान आज चैत्र शुक्ल चतुर्थी शुक्रवार को नहाय-खाय से शुरू हो रहा है। छठ पूजा मुख्य रूप से प्रत्यक्ष देव भगवान भाष्कर की उपासना का पर्व है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ सूर्यदेव की बहन हैं। मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माता प्रसन्न होती हैं तथा परिवार में सुख, शांति व धन-धान्य से परिपूर्ण करती है। इस व्रत को करनेवाले श्रद्धालु आज गंगा, पवित्र नदी, जलाशय या अपने घरों में गंगाजल मिलाकर स्नान, पूजा के बाद प्रसाद के रूप में अरवा चावल, सेंधा नमक से निर्मित चला की दाल, लौकी की सब्जी, आंवला की चटनी आदि ग्रहण करेंगे।

ग्रह गोचरों का शुभ संयोग

भारतीय ज्योतिष विज्ञान परिषद के सदस्य कर्मकांड विशेषज्ञ ज्योतिषाचार्य पंडित राकेश झा ने कहा कि आज रवियोग तथा सौभाग्य योग के युग्म संयोग में नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व का चार दिवसीय अनुष्ठान हो रहा है। कल १७ अप्रैल शनिवार को शोभन योग में व्रती पूरे दिन निराहार रहकर संध्या में खरना का पूजा कर प्रसाद ग्रहण करेंगी। खरना के पूजा के बाद व्रतियों का ३६ घंटे का निर्जला उपवास शुरू होगा जो प्रात:कालीन अर्ध्य पूजा के बाद संपन्न होगा। रविवार १८ अप्रैल को रवियोग में भगवान भाष्कर को सायंकालीन अर्ध्य तथा सुकर्मा योग में व्रती प्रात:कालीन अर्ध्य देकर व्रती पूरे तप और निष्ठा के साथ इस महाव्रत को पूर्ण करेंगी।

प्रसाद से दूर होते कष्ट

पंडित गजाधर झा के अनुसार छठ महापर्व के प्रथम दिन नहाय-खाय में लौकी की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल, आंवला की चासनी के सेवन का खास महत्व है। वैदिक मान्यता है कि इससे पुरे की प्राप्ति होती है वहीं वैज्ञानिक मान्यता है कि गर्भाशय मजबूत होता है। खरना के प्रसाद में ईख के कच्चे रस, गुड़ के सेवन से त्वचा रोग, आंख की पीड़ा समाप्त हो जाते हैं। वहीं इसके प्रसाद से तेजस्विता, निरोगिता व बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है।

स्वस्थ जीवन के लिए जरुरी है छठ

पटना के प्रमुख ज्योतिष विद्वान आचार्य राकेश झा ने कहा कि इस मौसम में शरीर में फास्फोरस की कमी होने के कारण शरीर में रोग (कफ, सर्दी, जुकाम) के लक्षण परिलक्षित होने लगते हैं। प्रकृति में फॉस्फोरस सबसे ज्यादा गुड़ में पाया जाता है। खरना में चीनी की जगह गुड़ का ही प्रयोग किया जाता है। इसके साथ ही ईख, गागर एवं अन्य मौसमी फल प्रसाद के रूप में प्रयोग किया जाता  है।

आरोग्यता व संतान के लिए उत्तम है छठ व्रत

ज्योतिषी झा के अनुसार सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्यता, सौभाग्य व संतान के लिए किया जाता है। यह पर्व पारिवारिक सुख समृद्धि और मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए व्रती पूरे विधि विधान से छठ का व्रत करेंगी। इस पर्व को करने से रोग, शोक, भय आदि से मुक्ति मिलती है। छठ व्रत करने की परंपरा ऋग्वैदिक काल से ही चला आ रहा है। स्कंद पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। भगवान भाष्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है। वर्षकृत्यम में भी छठ की चर्चा है।

सूर्य के तेज में वायरस को नष्ट करने की है क्षमता

चैती छठ के व्रती को भगवान भाष्कर की उपासना से कोरोना जैसी महामारी के प्रकोप से लडऩे की क्षमता मिलेगी। क्योंकि सूर्य की रोशनी से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है इससे व्रती को इस चार दिवसीय अनुष्ठान में उनका ज्यादा समय सूर्य की रोशनी में ही बीतेगा। जैसे-गेहूं सूखने से लेकर प्रसाद आदि बनाने में। सूर्य के तेज में खतरनाक वायरस, विषाणु एवं हानिकारक जीवाणु को नष्ट करने की क्षमता विद्यमान है। मान्यता भी है कि छठ महापर्व के दौरान इनके तेज में कई गुणा वृद्धि हो जाती है। इससे व्रती के साथ सभी श्रद्धालुओं को इस वैश्विक महामारी कोरोना से लडऩे का बल मिलेगा।