सम्पादकीय

प्रियजनोंके बिछडऩेके दर्दने झकझोरा


प्रो. सुरेश शर्मा
इक्कीसवीं शताब्दीका वर्ष २०२० पूरी दुनियाको असहनीय दु:ख तथा अपनोंके बिछडऩेका गम दे गया। इस वर्ष कोरोना जैसा महादानव वैश्विक महामारीके रूपमें पैदा होकर विश्वके सभी देशों, राज्यों, महानगरों, गांवों तथा घर-घरमें पहुंचा। इस मनहूस अप्रत्याशित बीमारीने करोड़ों लोगोंको वायरस संक्रमणका शिकार बनाकर लाखों लोगोंके जीवनको असमय मृत्युके आगोशमें समा दिया। अपने प्रियजनोंके बिछडऩेके दर्द तथा चीखो-चिल्लाहटने मनुष्यको झकझोर कर रख दिया। दुनियाके इतिहासमें यह अप्रत्याशित, अभूतपूर्व, अकल्पनीय एवं अविश्वसनीय घटना है। वर्ष २०२० वैश्विक लॉकडाउन, कोरोना कफ्र्यू, जनता कफ्र्यू, कोरोना टैस्ट, पॉजिटिव, नेगेटिव, क्वारंटाइन, कण्टेनमेंट एरिया, सोशल डिस्टैंसिंग, मास्क, सेनेटाइजर, गाइड लाइन्स, प्रोटोकॉल, थाली बजाओ, दीप जलाओ, एसओपी, ऑनलाइन, वर्चुअल मीटिंग, गूगल मीट, जूम मीटिंग, वैश्विक आर्थिक मंदी, रोजगारसे छुट्टी, वेतनमें कटौती, आंदोलन, धरना-प्रदर्शन, वुहान और चीन आदिकी शब्दावली एवं चर्चाओंमें बीत गया। कोरोनाने समाचार प्रस्तुतिकरण, डिजिटल मीडिया, समाचारपत्रोंकी संपूर्ण कार्यप्रणालीको पूर्ण रूपसे बदलकर रख दिया। शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत, लोक कलाकारोंने फेसबुक तथा यू-ट्यूब चैनलोंका रुख किया।
कविता पाठ, मुशायरे, विभिन्न विषयोंपर चर्चा, सेमिनार, वर्चुअल मीटिंग, रैलियां शिक्षण-प्रशिक्षण तथा दुनियाभरका ज्ञान ऑनलाइन माध्यमोंसे बांटा गया। कोरोनाने मनुष्यकी पूरी जीवनशैली तथा रंग-ढंगको बदल दिया। मानवीय इतिहासमें इस वैश्विक महामारीके महादानवके भय एवं आतंकके कारण लोग अपनी जान बचानेके लिए अपने-अपने घरोंमें दुबक कर बैठ गये। दुनियाकी सभी हवाई सेवाएं, रेलगाडिय़ां, परिवहन तथा सभी छोटे वाहन बंद हो जाना, सभी उद्योग-धंधे, कारोबार, पर्यटन, शिक्षण संस्थान तथा सभी तरहकी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं सृजनात्मक गतिविधियोंका पूरी तरहसे ठप हो जाना विश्वके इतिहासकी कोई सामान्य घटना नहीं है।
इस क्रूर घटनाने सभी मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर, गुरुद्वारे तथा सभी धार्मिक संस्थान बंद करवा दिये। शिक्षाके सरस्वती मंदिर कहे जानेवाले शिक्षण संस्थानोंपर ताले लटक गये। इस महामारीसे दुनियाकी कई बड़ी-बड़ी राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक हस्तियोंको मौतके आगोशमें समा लिया। इस संक्रमणसे लाखों लोगोंकी अप्रत्याशित मृत्युने उनके करोड़ों परिजनोंको पीड़ा एवं वेदना दी। कभी भी न भूलनेवाली इस दुखद त्रासदीने शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थियों, जीवनकी उड़ान भर रहे युवाओंके रास्तेमें रोड़े अटका कर विघ्न पैदा करनेकी कोशिश की है। इस मनहूस कोरोनाके कारण बैंकोंका लोन लेकर अनेकों कारोबार चलानेवाले उद्यमियों, शिक्षा ग्रहण करनेवाले विद्यार्थियों, परिवहन चालकों तथा छोटा-मोटा, व्यापार, उद्योग चलानेवाले लोगोंको बर्बाद करनेकी कोशिश की है।
कोरोनाने कई मानसिक अवसादों, शारीरिक रोगों, चिंताओं तथा आशंकाओंको दावत दी है। इस प्राकृतिक आपदाने दुनियाके प्रकृतिप्रेमियों, पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों, चिकित्सकों तथा शिक्षाविदों तथा राजनीतिज्ञोंको दहला कर आत्मचिंतनके लिए विवश कर दिया है। कोरोना वायरस संक्रमणकी घटना विश्वके मानवीय इतिहासकी सबसे दुखद एवं पीड़ादायक घटना है। इस त्रासदीने यह सोचनेपर मजबूर किया है कि जीवनके सभी प्रिय संबंध भौतिक, क्षणिक, लेन-देनके व्यवहार तथा स्वार्थपर आधारित हैं। कोरोनासे असमय हुई मौतोंने अपने बिलखते प्रियजनोंको स्पर्श, अंतिम दर्शनों, अंतिम रस्मों, दाह संस्कार, अस्थि-विसर्जन, क्रिया कर्मोंसे भी महरूम होते हुए देखा है। माता-पिता, भाई-बहन, सगे-संबंधी, मित्र तथा दुनियावी संबंधोंकी इस सांसारिक यात्रामें मनुष्यको पहली बार अकेले ही जीवन विचरण करनेका अहसास हुआ है। यह घटना मानव इतिहासमें कोई सामान्य और साधारण घटना नहीं है। कोरोना संक्रमण कालने मनुष्यको बहुत कुछ सोचने-समझने एवं आत्मचिंतनके लिए मजबूर किया है। जीवन निरंतर चलता रहेगा, लेकिन बुद्धिके स्वामी तथा सर्वश्रेष्ठ मनुष्यको यह सोचना चाहिए कि कोरोना जैसी अकल्पनीय घटनाके लिए कौन दोषी है। कहीं इसके पीछे हमारी स्वार्थी मनोवृत्तियां तथा मानसिक विकृतियां दोषी तो नहीं हैं। क्या यह मनुष्य जनित परिस्थिति है या एक प्राकृतिक आपदा है। क्या यह ईश्वरके द्वारा लोभी और स्वार्थी मनुष्यके लिए सजा है। क्या मनुष्यके जीव-जंतुओंको उपयोग और भोगका माध्यम समझनेके कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ चुका है। क्या यह प्राकृतिक वनस्पति एवं जीव-जंतुओंके शोषणकी घोर एवं भीषण प्रतिक्रिया है। क्या मनुष्य भी भौतिकवादी विकृतियोंका शिकार होकर दानव बन चुका है। वैसे तो ३० दिसबर २०१९ को चीनके वुहानसे पैदा हुए कोरोनारूपी महादानवकी बरसी भी है, लेकिन असमय एवं अकाल मृत्यु वर्षके अंतमें सभी जीवित सौभाग्यशाली मनुष्योंके लिए अब समय आ गया है कि वह इस कोरोना कालका सामूहिक दाह संस्कार कर अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित करें। ईश्वरसे प्रार्थना है कि वह दिवंगत क्रूर कोरोना वर्षको शांति प्रदान कर अपने चरणोंमें स्थान दें। निश्चित रूपसे २०२० को कोरोना वायरस वर्षके रूपमें ही याद रखा जायगा। जहां इस वर्षने लोगोंको तकलीफ, पीड़ा तथा वेदना दी, वहींपर सभी क्षेत्रोंमें नये अवसरों, नयी संभावनाओंके द्वार भी खुले। यह वर्ष मनुष्यके लिए बहुतसे प्रश्न छोड़ रहा है जिसपर हमें गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा अन्यथा भविष्यमें भी हमें कोरोना वायरस जैसे दानवोंकी चुनौतियोंसे आशंकित रहना होगा। आशा है कि नव वर्ष २०२१ का नव सूर्योदय पिछले साल द्वारा दिये गये सभी दुखोंको मिटाकर मरहम लगानेकी कोशिश करेगा। कामनाके सिवाय कुछ कर भी नहीं सकते।