फुलवारी शरीफ। राजधानी पटना समेत राज्य भर में रविवार को ईद उल अजहा के चांद के दीदार हो गए। जिल्हिज्जा का चांद नजर आने के बाद अब बकरीद का त्यौहार 21 जुलाई को मनाया जाएगा। ईद उल जुहा या बकरीद, ईद उल फित्र के दो महीने नौ दिन बाद मनाई जाती है।
बिहार झारखण्ड उड़ीसा के मुसलमानों की सबसे बड़ी एदारा इमारत शरिया के कार्यवाहक नाजिम मौलाना शिबली अल कासमी और प्रसिद्व ख़ानक़ाह ए मुजिबिया के प्रबंधक हजरत सय्यद शाह मौलाना मिन्हाजुद्दीन मुजीबी कादरी ने बताया कि देश के कई हिस्सों व बिहार प्रदेश के पटना समेत अलग-अलग शहरों में चांद नजर आ गया है। लिहाजा बकरीद का त्यौहार पूरे अकीदत के साथ 21 जुलाई को मनाया जाएगा।
धार्मिक एदारो ने लोगो से बकरीद की नमाज अदा करने के लिए सरकारी गाईड लाईन का ख्याल रखने की अपील करते हुए पर्व मनाने की अपील की है। इमारत शरिया और ख़ानक़ाह ए मुजिबिया ने तमाम लोगों को कुर्बानी का पर्व बकरीद की मुबारकबाद भी पेश की है।
बता दे की बकरीद को ईद-उल-अजहा, ईद-उल-जुहा, बकरा ईद, के नाम से भी जाना जाता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार हर साल बकरीद 12वें महीने की 10 तारीख को मनाई जाती है। यह रमजान माह के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाती है।
बकरीद पर कुर्बानी देने की प्रथा है। बकरीद पर मुस्लिम समुदाय के लोग साफ-पाक होकर नमाज पढ़ते हैं। नमाज के बाद कुर्बानी दी जाती है। ईद के मौके पर लोग अपने रिश्तेदारों और करीबों लोगों को ईद की मुबारकबाद देते हैं। ईद की नमाज में लोग अपने लोगों की सलामती की दुआ करते हैं। एक-दुसरे से गले मिलकर भाईचारे और शांति का संदेश देते हैं। बकरीद के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरे हिस्से को गरीब लोगों में बांटने का रिवाज है।
इस्लाम मजहब की मान्यता के अनुसार, कहा जाता है अल्लाह ने हजरत इब्राहिम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी मांगी थी। हजरत इब्राहिम अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे, लिहाजा उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। अल्लाह के हुक्म की फरमानी करते हुए हजरत इब्राहिम ने जैसे ही अपने बेटे की कुर्बानी देनी चाही तो अल्लाह ने एक बकरे की कुर्बानी दिलवा दी। कहते हैं तभी से बकरीद का त्योहार मनाया जाने लगा। इसलिए ईद-उल-अजहा यानी बकरीद हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में ही मनाया जाता है।