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बक्‍सर सेंट्रल जेल में लगा मेला, गंगा-ठोरा के संगम पर स्‍नान कर पहुंचे लोग; भगवान वामन का मना जन्‍मोत्‍सव


बक्सर। जेल एक संवेदनशील क्षेत्र होता है। इसमें भी केंद्रीय जेल हो, तो फिर क्‍या कहना। लेकिन, बिहार में एक ऐसी सेंट्रल जेल, जिसके अंदर मेला लगता है। यह जेल गंगा और ठोरा नदी के संगम पर है। बक्‍सर की सेंट्रल जेल में हर वामन द्वादशी के मौके पर मेला लगता है। हजारों महिलाएं और पुरुष जेल परिसर में पहुंचते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। 

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रामेश्‍वर नाथ मंदिर से निकाली गई शोभायात्रा

वामन द्वादशी पर बुधवार को केंद्रीय कारा परिसर स्थित वामनेश्वर मंदिर में दर्शन पूजन को श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा। इन दर्शनार्थियों में मुख्यालय समेत दूरदराज ग्रामीण इलाकों से श्रद्धालु पहुंचे। वहीं, सुबह में प्रसिद्ध रामरेखाघाट स्थित प्राचीन श्री रामेश्वर नाथ मंदिर से भगवान बटुक वामन की एक शोभा यात्रा निकाली गई।

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संगम में स्‍नान के बाद श्रद्धालुओं की की पूजा 

इधर, मेले में पहुंचे श्रद्धालुओं ने प्रसिद्ध रामरेखाघाट व संगमेश्वर मंदिर स्थित गंगा के संगम स्थल पर पहले स्नान किया और वामनेश्वर मंदिर पहुंचकर श्रद्धा भाव से भगवान बटुक वामन का दर्शन पूजन किए। यहां बता दें कि भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष द्वादशी को वामन द्वादशी के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन श्रवण नक्षत्र के अभिजीत मुहूर्त में भगवान श्री हरि विष्णु ने भगवान वामन के रूप में अवतार लिया था।

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दोपहर 12 बजे मनाया गया जन्‍मोत्‍सव 

मंदिर के पुजारी सत्येंद्र चौबे बताते हैं कि इस दिन व्रत एवं पूजन से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं तथा भक्तों की समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। वामन भगवान के दर्शन पूजन को लेकर सैकड़ों श्रद्धालु एक दिन पूर्व ही यहां शरण लिए हुए थे। जिन्होंने एकादशी का व्रत रख कर स्थानीय रामरेखाघाट पर स्नान कर वामनाश्रम को पहुंचे। जहां पहुंचकर अल सुबह स्नान, दान, पूजा-अर्चना की। वहीं, तयशुदा कार्यक्रम के तहत दोपहर बारह बजे अभिजीत मुहूर्त में भगवान वामन का जन्मोत्सव मनाया गया। इस दौरान मंदिर में विशेष पूजा व आरती का आयोजन किया गया।

केंद्रीय जेल परिसर में स्थापित है मंदिर

स्‍थानीय मान्‍यताओं के मुताब‍िक भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से एक अदिति के पुत्र के रूप में बटुक वामन का अवतार बक्सर (सिद्धाश्रम) में हुआ था। भगवान वामन द्वारा स्थापित शिवलिंग आज भी केंद्रीय कारा परिसर (बाह्य क्षेत्र) में विद्यमान है। इसे श्रद्धालु वामनेश्वरनाथ शिव के नाम से जानते हैं। माना जाता है कि यह मंदिर बेहद पुराना है। अंग्रेजी हुकूमत के दौरान यहां सेंट्रल जेल बनी, तो मंदिर का परिसर भी इसके अंदर चला गया।

भादो शुक्‍ल पक्ष की द्वादशी को लगता है मेला 

यहां प्रत्येक वर्ष भादो महीने की शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि में वामन जयंती मनाई जाती है। आचार्य रणधीर ओझा बताते हैं कि बिना अस्त्र शस्त्र के दैत्यों के आतंक से निजात दिलाने की यह पहली घटना थी जिसमें भगवान वामन ने तीन डगों से तीन लोकों को मापकर राजा बलि को परास्त कर दिए थे और इसके माध्यम से अहिंसा का सन्देश दिए।

धर्म ग्रन्थों में मिलता है उल्लेख

तकरीबन 35 लाख वर्ष पूर्व हिरण्यकशिपु के कुल में जन्मे बलि ने देवताओं को पराजित कर तीनों लोकों पर आधिपत्य जमा लिया था। इसके बाद दैत्यों का अत्याचार बढ़ने लगा। तीनों लोकों में असत्य व दुराचार का बोलबाला बढ़ गया। ऋषि, ब्राह्मण, गौ व महिलाओं पर ज़ुल्म बढ़ गया। जिससे देवताओं में हाहाकार मच गया। तत्पश्चात्, भक्तों के शोक को हरने के लिए ब्रह्मा के निवेदन पर श्रीहरि विष्णु वामन के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिए। श्री वामन पुराण के अलावा श्रीमद्भागवत महापुराण, भविष्यत पुराण, वाल्मीकि रामायण आदि  ग्रन्थों में मिले दृष्टांत के अनुसार ब्राम्हण दंपति कश्यप व अदिति के पुत्र के रूप में प्रभु का अवतरण हुआ।

व्रती महिलाओं को प्रसाद का किया गया वितरण

इस दौरान भगवान वामन चेतना मंच की तले वामन द्वादशी पर रामरेखाघाट स्थित श्री रामेश्वर नाथ मंदिर से भगवान वामन स्वरूप की एक मनोरम झांकी के साथ शोभायात्रा निकाली गई। कार्यक्रम में हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्त मौजूद थे। इस दौरान निकाली गई शोभा यात्रा की दर्शन हेतु जगह-जगह सड़क के दोनों किनारे श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी हुई थी।

जहां, लोगों ने वामन भगवान के ऊपर पुष्प की बरसा की तथा भगवान की आरती उतारी। शोभा यात्रा जलेश्वरनाथ मंदिर पहुंचने के बाद संपन्न हो गई। इसके उपरांत, महाप्रसाद वितरण की शुरुआत श्री कृष्णानंद शास्त्री, पंडित छविनाथ त्रिपाठी व आचार्य रणधीर ओझा के द्वारा संयुक्त रूप से भगवान वामन का वैदिक मंत्रोच्चारण से विधिवत पूजन-अर्चन पश्चात किया गया। मौके पर विद्वतजनों ने कहा कि नर की सेवा ही नारायण की सेवा है।

कार्यक्रम में श्रद्धालुओं के लिए शुद्ध जल एवं प्रसाद (साबुदाना की खीर) की व्यवस्था की गई थी। इस दौरान संजय ओझा, मनोज तिवारी, मृत्युंजय तिवारी, दयानंद उपाध्याय, आशुतोष चतुर्वेदी, कपिल त्रिगुण, चंद्रभूषण ओझा, अभिषेक ओझा, शिक्षक नेता धनंजय मिश्रा, प्रकाश पांडेय, अवधेश चौबे, संजय चौबे, ललित नारायण मिश्रा, राघवेंद्र दुबे, संतोष पांडेय, प्रमोद कुमार चौबे, सोनू चौबे, शिवानंद उपाध्याय आदि काफी सक्रिय थे।