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- स्वास्थ्य निरीक्षक परमानंद प्रसाद ने ही दी थी पीपीई किट और शव ठिकाना लगाने का निर्देश और इसके बदले में उन्होंने हीं की थी पैसे की डील
- माल खाया स्वास्थ्य निरीक्षक और प्राथमिकी हुई वार्ड पार्षद पर
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बिहारशरीफ (आससे)। नगर निगम के वार्ड संख्या 8 में किराये पर रहने वाले एक युवक की कोरोना से हुई संदिग्ध मौत के बाद शव को जलाने और फिर वहां तक उसे कूड़ा ढोने वाले ठेला से ले जाने के मामले में कार्रवाई की बड़ी गाज गिरी है, लेकिन जांच दल के लोगों ने इस घटना के सबसे बड़े सूत्रधार को बचाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा है। जो इस घटना का सूत्रधार है उसे मात्र निलंबित कर रस्म अदायगी की गयी है ताकि आगे चलकर फिर उसका निलंबन वापस लिया जा सके। सूत्रधार पर प्राथमिकी ही नहीं हुई।
बताते चले कि दो दिन पूर्व एक युवक की मौत हुई थी, जिसमें कोरोना का लक्षण था। हालांकि ऐसी कोई पुष्टि नहीं हुई थी। इसके बाद संबंधित वार्ड पार्षद सुशील कुमार मिट्ठू के यहां मोहल्ले के लोगों ने संपर्क किया और उन्होंने इसके लिए नगर निगम के कर्मियों से वार्ता की। वार्ड पार्षद की मानें तो उन्होंने मोहल्ले के लोगों के सामने हीं स्पीकर ऑन कर नगर निगम के स्वास्थ्य निरीक्षक परमानंद प्रसाद से बात की, जिन्होंने कहा कि नगर निगम में कोरोना से मौत के मामले के दाह संस्कार का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन उन्होंने जोड़कर 22000 रुपया का खर्च बताया और कहा कि इतनी राशि दे देता है तो अनऑफिशियल रूप से कर्मी जाकर शव का अंतिम संस्कार कर देगा। निगम पार्षद ने कहा कि हमने सिर्फ यही कहा कि गरीब आदमी है आपलोग देख लें और उसके बाद परमानंद प्रसाद ने हीं इस मामले को 16500 रुपये में सेटल किया।
सूत्रों की मानें तो पैसा लेने के बाद स्वास्थ्य निरीक्षक परमानंद प्रसाद ने ही सफाई कर्मियों को नगर निगम से पीपीई किट दिया और फिर ठेला ले जाकर शव को मुक्तिधाम तक ले जाकर उनका अंतिम संस्कार करने को कहा। इस आलोक में आगे की कार्रवाई हुई। आखिर जब निगम की ओर से प्रावधान नहीं था तो फिर किस परिस्थिति में सरकारी पीपीई किट दिया गया और फिर नगर निगम के ठले से शव ले जाया गया।
सूत्रों की मानें तो इसका मामले का सूत्रधार नगर निगम का स्वास्थ्य निरीक्षक ही है, जिन्होंने पैसे के लाचल में पूरी टीम खड़ा की। सफाई कर्मचारियों को किट दिया और ठेला पर शव ले जाकर अंतिम संस्कार करने का निर्देश दिया। मजे की बात तो यह है कि पूरे मामले की जानकारी स्वास्थ्य निरीक्षक ने ना सिटी मैनेजर को दिया, ना उप नगर आयुक्त को और ना नगर आयुक्त को।
स्वास्थ्य निरीक्षक के निहित स्वार्थ के कारण न केवल नगर निगम प्रशासन बल्कि जिला प्रशासन और राज्य सरकार की भी इस मामले में फजीहत हुई, लेकिन दिलचस्प बात तो यह है कि जांच दल के लोगों ने परमानंद प्रसाद को निलंबित कर औपचारिकता निभा दी। आखिर परमानंद प्रसाद को निलंबित किया गया तो निश्चित रूप से उनके विरुद्ध आरोप पाये गये होंगे। और जब आरोप पाया गया तो फिर प्राथमिकी क्यों नहीं हुई। यह भी सच है कि पीपीई किट परमानंद प्रसाद ने ही दी।
निश्चित तौर पर इस मामले में जितना दोषी और लोग है उससे कहीं अधिक दोषी स्वास्थ्य निरीक्षक है। वार्ड पार्षद का दोष यह है कि मोहल्लेवाले के कहने पर उन्होंने स्वास्थ्य निरीक्षक और पीड़ित परिवार के बीच मध्यस्थता की भूमिका निभाई जबकि निगम के अन्य कर्मचारियों का रोल यह रहा कि स्वास्थ्य निरीक्षक के निर्देश पर लोगों ने काम किया, लेकिन यह भी सच है कि वसूल की गयी राशि में सबकी हिस्सेदारी रही है।