हिंदी संस्करण की बाक्स आफिस पर 95 करोड़ रुपए कमाई ने इस बात को पुष्ट किया कि दक्षिण भारतीय फिल्में हिंदी दर्शकों के बीच जबरदस्त जगह बना चुकी हैं। आगामी दिनों में ‘केजीएफ चैप्टर 2, ‘आरआरआर’ , ‘राधे श्याम’ , ‘आदिपुरुष’, ‘लाइगर’ , ‘सालार’ जैसी दक्षिण भारतीय फिल्में हिंदी में रिलीज होंगी। इनकी कहानी, निर्माण का अंदाज, संस्कृति हिंदी फिल्मों से अलग है, पर दर्शक इनका इंतजार कर रहे हैं। क्या वजह है कि बढ़ती जा रही है इनकी स्वीकार्यता?
ऐसी फिल्मों को अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। हमें उनसे इस संबंध में सीखने की जरूरत है कि वे दर्शकों की रुचि को किस प्रकार समझकर बड़े बजट की फिल्मों को आकार दे रहे हैं।’
अपनी जमीन पर पकड़ रखें:
कहानियां वही पसंद आती हैं, जिनकी भावनाएं वैश्विक हों। वे कहानियां हमारे आसपास की हों या फिर ऐसी दुनिया गढ़ी गई हो जो काल्पनिक होने के बावजूद आकर्षक लगे। दक्षिण भारतीय फिल्में दर्शकों के बीच जमीन से जुड़ी कहानियां ला रही हैं। दक्षिण भारतीय फिल्मों की बढ़ती पैठ को लेकर फिल्ममेकर तिग्मांशु धूलिया कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि अब हमें कमर कसनी चाहिए। हालीवुड की फिल्में यहां पर बहुत चलती हैं। साउथ की फिल्में भी अच्छा कंटेंट लाती हैं और पसंद की जाती हैं। कन्नड़ सिनेमा तेजी से आगे बढ़ रहा है। मलयालम सिनेमा शुरुआत से अच्छा रहा है। भले ही आप उसे आर्ट सिनेमा कहें, लेकिन अब वो दूरी भी खत्म हो गई है। उनकी फिल्में बहुत अच्छी बन रही हैं, इसलिए अच्छा बिजनेस भी कर रही हैं। हमारी इंडस्ट्री को भी कमर कसनी चाहिए। साउथ की फिल्मों के किरदार जमीन से जुड़े होते हैं। हमें दोबारा अपने समाज को समझकर फिर से लिखना पड़ेगा। हालीवुड की नकल करके लाभ नहीं मिलेगा।’