News सम्पादकीय

मध्यम वर्गकी बढ़ती मुश्किलें


संदेह देशका मध्यम वर्ग एक बार फिर जहां कोरोनाकी दूसरी घातक लहरके कारण अपने उद्योग-कारोबार, रोजगार और आमदनी संबंधी चिंताओंसे ग्रसित है, वहीं बड़ी संख्यामें कोरोनासे पीड़ित मध्यमवर्गीय परिवारोंके बजट बिगड़ गये हैं। यद्यपि एक अप्रैल २०२१ से लागू हुए वर्ष २०२१-२२ के बजटमें वित्तमंत्री निर्मला सीतारमणने स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचा और शेयर बाजारको प्रोत्साहन देनेके लिए जो चमकीले प्रोत्साहन सुनिश्चित किये हैं, उसका लाभ अप्रत्यक्ष रूपसे मध्यम वर्गको अवश्य मिलेगा, लेकिन इस बजटमें छोटे आयकरदाताओं और मध्यम वर्गकी उम्मीदें पूरी नहीं हुई हैं। यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि कोरोनाके कारण पैदा हुए आर्थिक हालातका मुकाबला करनेके लिए आत्मनिर्भर भारत अभियानके तहत मध्यम वर्गको कोई विशेष राहत नहीं मिली है। गौरतलब है कि देशका सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (एमएसएमई) फिर हिचकोले खा रहा है। एक बार फिरसे जहां देशके कई राज्योंमें लॉकडाउन जैसी सख्त पाबंदियां और नाइट कर्फ्यूका परिदृश्य निर्मित होते हुए दिखाई दे रहा है, वहीं लॉकडाउनके कारण कहीं बड़े शहरोंसे एक बार फिर प्रवासी मजदूरोंका पलायन दिखाई दे रहा है। उद्योग-कारोबार भी इसलिए चिंतित हैं क्योंकि देशमें कोविड-१९ संक्रमणका आंकड़ा प्रतिदिन दो लाखको पार कर गया है। ऐसेमें देशकी विनिर्माण गतिविधियों और सर्विस सेक्टरकी रफ्तार सुस्त पड़ गयी है।
उद्योग और बाजारके ऐसे चिंताजनक परिदृश्यने मध्यम वर्गकी नींद उड़ा दी है। उल्लेखनीय है कि अमेरिकाके प्यू रिसर्च सेंटरके द्वारा प्रकाशित भारतके मध्यम वर्गकी संख्यामें कमी आनेसे संबंधित रिपोर्टके मुताबिक कोविड-१९ महामारीके कारण आये आर्थिक संकटसे एक सालके दौरान भारतमें मध्यम वर्गके लोगोंकी संख्या करीब ९.९ करोड़से घटकर करीब ६.६ करोड़ रह गयी है। रिपोर्टके मुताबिक प्रतिदिन दस डॉलरसे बीस डॉलर (यानी करीब ७०० से १५०० रुपये प्रतिदिन) के बीच कमानेवालेको मध्यम वर्गमें शामिल किया गया है। रिपोर्टमें यह भी कहा गया है कि चीनमें कोरोना संक्रमणके कारण पिछले एक वर्षमें मध्यम आय वर्गकी संख्या करीब एक करोड़ ही घटी है। जहां कोविड-१९ के कारण देशमें मध्यम वर्गके लोगोंकी संख्या कम हुई है, वहीं भारतीय परिवारोंपर कर्जका बोझ बढ़ा है। विभिन्न अध्ययन रिपोर्टोंमें कहा गया है कि कोरोना महामारीकी वजहसे बड़ी संख्यामें लोगोंकी रोजगार मुश्किलें बढ़ी हैं। जहां वर्क फ्रॉम होमकी वजहसे टैक्समें छूटके कुछ माध्यम कम हो गये, वहीं बड़ी संख्यामें लोगोंके लिए डिजिटल तकनीक, ब्रॉडबैंड, बिजलीका बिल जैसे खर्चोंके भुगतान बढ़नेसे आमदनी घट गयी है। मध्यम वर्गकी स्तरीय शैक्षणिक सुविधाओं संबंधी कठिनाइयां बढ़ती जा रही हैं। चाहे सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन स्तरके लिए मध्यम वर्गके द्वारा हाउसिंग लोन, ऑटो लोन, कंज्यूमर लोन लिये गये हैं, लेकिन इस समय मध्यम वर्गके करोड़ों लोगोंके चेहरेपर महंगी, बच्चोंकी शिक्षा, रोजगार, कर्जपर बढ़ता ब्याज जैसी कई चिंताएं साफ दिखाई दे रही हैं। उल्लेखनीय है कि कोरोनाकी पहली लहर बड़ी संख्यामें मध्यम वर्गकी आमदनी घटा चुकी है और मध्यम वर्गके बैंकोंमें बचत खातोंको बहुत कुछ खाली कर चुकी है। देशमें निजी और विभिन्न सरकारी सेवाओंमें काम करनेवाले लाखों मध्यम वर्गीय लोग कोरोनाकी दूसरी लहरके बाद निजी क्षेत्रके महंगे स्वास्थ्य संबंधी खर्चकी वजहसे गरीब वर्गमें शामिल होनेसे सिर्फ एक कदम दूर हैं। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि पिछले एक वर्षमें देशमें मध्यम वर्गके सामने एक बड़ी चिंता उनकी बचत योजनाओं और बैंकोंमें स्थायी जमा (एफडी) पर ब्याज दर घटने संबंधी भी रही है।
यद्यपि सरकारने एक अप्रैल २०२१ से कई बचत स्कीमोंपर ब्याज दर और घटा दी थी, लेकिन फिर शीघ्र ही कुछ ही घंटोंमें यूटर्न लेते हुए यह निर्णय वापस ले लिया। सरकारके द्वारा यह कहा गया था कि बचत स्कीमोंपर बैंक अब चारके बजाय ३.५ फीसदी सालाना ब्याज देंगे। सीनियर सिटीजनके लिए बचत स्कीमोंपर देय ब्याज ७.४ फीसदीसे घटाकर ६.५ फीसदी कर दिया गया है। नेशनल सेविंग सर्टिफिकेटपर देय ब्याज ६.८ फीसदीसे घटाकर ५.९ फीसदी तथा पब्लिक प्रोविडेंट फंड स्कीमपर देय ब्याज ७.१ फीसदीसे घटाकर ६.४ फीसदी कर दिया गया है। वास्तवमें सरकारके द्वारा इस निर्णयपर यूटर्नसे देशके मध्यम वर्गके बचतसे भविष्यकी जीवन संबंधी योजनाओंपर निर्भर करोड़ों मध्यम वर्गीय लोगोंको राहत मिली है। अब एमएसएमईके तहत कोरोना संक्रमणको रोकनेके लिए ४५ वर्षसे कम उम्रके उन लोगोंका टीकाकरण करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जो संक्रमणके उच्च जोखिममें हैं। उन लोगोंकी रक्षा करना भी महत्वपूर्ण है जिन्हें कामके लिए घरोंसे बाहर निकलना पड़ता है। ऐसेमें खुदरा और ट्रेड जैसे क्षेत्रोंमें काम कर रहे लोगोंकी कोरोना वायरससे सुरक्षा जरूरी है। हम उम्मीद करें कि सरकार चालू वित्त वर्ष २०२१-२२ में कोरोना महामारी और विभिन्न आर्थिक मुश्किलोंके कारण मध्यम वर्गकी परेशानियोंको कम करने हेतु, मध्यम वर्गको संतोषप्रद वित्तीय राहत और प्रोत्साहन देनेकी डगरपर आगे बढ़ेगी।
इसके साथ उद्योग-कारोबारसे जुड़े मध्यम वर्गकी मुश्किलें कम करनेके लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की पेंचीदगियां कम की जानी होंगी। एमएसएमईको संभालनेके लिए एक बार फिरसे सरकारके द्वारा ब्याज राहतकी डगरपर आगे बढ़ना होगा। एक बार फिरसे रिजर्व बैंकके द्वारा छोटे कर्जधारकोंके लिए मोरेटोरियम योजनापर तुरंत विचार करना होगा। हम उम्मीद करें कि मध्यम वर्ग भी कोरोना संक्रमणके बचावके लिए दवाई भी और कड़ाईके मंत्रका परिपालन करेगा। हम उम्मीद करें कि इस समय स्वास्थ्य क्षेत्रपर जो सावर्जनिक व्यय जीडीपीका करीब एक फीसदी है, उसे बढ़ाकर करीब ढाई फीसदीतक किया जाये। इससे मध्यम वर्गको स्वास्थ्य संबंधी खर्चोंमें बचतकी बड़ी राहत मिलेगी। अब यह उपयुक्त होगा कि कोरोनाकी दूसरी लहरके रुकनेतक एफडी और छोटी बचत योजनाओंपर ब्याज दर न घटायी जाय। इससे मध्यम वर्गकी क्रय शक्ति बढ़ेगी, नयी मांगका निर्माण होगा और विकास दर बढ़ायी जा सकेगी।