सम्पादकीय

महामारीको भुनाते मानवताके दुश्मन


डा. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा  

आज सारी दुनिया कोरोनाकी दूसरी लहरसे ग्रसित है। भारतमें कोरोनाकी दूसरी लहरके चलते हो रहे हालातोंको देखते हुए दुनियाके देश सहायताके लिए आगे आ रहे हैं वहीं देशमें ही कुछ लोग मानवताको शर्मसार करनेमें कोई कमी नहीं छोड़ रहे हैं। देशके कोने-कोनेसे यह समाचार आम है कि आक्सीजन सिलेण्डर नहीं मिल रहे हैं तो आक्सीजन सिलेण्डरोंकी कालाबाजारी यहांतक कि समाचार-पत्रोंमें प्रकाशित खबरोंकी माने तो सिलेण्डर ५० से ६० हजार रुपयेतकमें ब्लेक करनेके समाचार आम हो गये हैं। जयपुरमें ही पुलिस द्वारा जमाखोरों द्वारा आक्सीजन सिलेण्डर जब्त करने और फिर सरकारसे अनुमति लेकर इन सिलेण्डरोंका उपयोग जरूरतमंद लोगोंको उपलब्ध कराकर कई जिन्दगियां बचानेके समाचार आम है। आज समूचा देश आक्सीजनकी कमीसे जूझ रहा है। यहांतक कि सुप्रीम कोर्टतकको दखल देनी पड़ रही है।

बात केवल आक्सीजन सिलेण्डरतक ही सीमित नहीं हैं अपितु कोरोना संक्रमणकी गम्भीर स्थितिमें उपयोगमें आनेवाला रेमडिसेवर इंजेक्शनकी जमकर कालाबाजारी हो रही है। सरकार द्वारा निर्धारित दरसे कई गुणा अधिक पैसे लेकर जरुरतमंद लोगोंको उनकी मजबूरीका फायदा उठाते हुए रेमडिसेवर इंजेक्शन उपलब्ध कराया जा रहा है। बात यहांतक ही नहीं, कोविडके इस दौरमें जरूरतका खास उपकरण आक्सीमीटर जो दो-ढाई सौसे दो-ढाई हजारकी रेंजमें आसानीसे उपलब्ध था बाजारसे गायब हो गया है। यही हाल स्पेरोमीटर एवं अन्य उपकरण और दवाओंका हो गया है। साधारण चाइनीज मेड आक्सीमीटर डेढ़ हजारसे तीन हजारतक जो जंचे उस राशिमें चोरी-छिपे बेचा जा रहा है। रेमडिसेवर तो दूरकी बात कोरोनामें उपयोगमें आनेवाली दूसरी दवाएं भी बाजारसे गायब हैं या उनकी मुंहमांगे दाम वसूले जा रहे हैं। मजेकी बात तो यहांतक है कि रेमडिसेवर जैसे इंजेक्शनोंके मनमाने दाम निजी अस्पतालों द्वारा लिये जानेकी शिकायते आम है। ऐसेमें सरकारको दोष दिया जाना किसी भी तरहसे उचित नहीं कहा जा सकता।

देशमें कोरोना संक्रमितोंकी संख्या तीन लाखको पार कर गयी है। हालांकि संतोष इस बातपर किया जा सकता है कि कोरोना संक्रमितोंमेंसे ठीक होनेवालोंका आंकड़ा भी थोड़ा सुधरने लगा है। रिकवरी रेट जो कभी ९० प्रतिशतसे अधिक रहती थी वह ८१ प्रतिशतसे कुछ अधिक रह गयी है। गंभीर चिंताका विषय है। सारा देश सन्नाटेमें हैं और इसका कारण कोरोना संक्रमितोंके लगातार मामलोंमें वृद्धि और मृत्युदरमें वृद्धि चिंताका कारण बनती जा रही है। सरकारी तो सरकारी अब तो हालात यह हो गये है कि प्राइवेट अस्पतालोंमें भी जगह नहीं मिल रही है। वेंटीलेटर तो दूरकी बात आक्सीजन बेड मिलना ही मुश्किलभरा होता जा रहा है। आक्सीजनकी कमीके कारण मौतसे संघर्ष करते लोगोंको देखकर दिल दहल जाता है। ऐसेमें केन्द्र एवं राज्य सरकारें अपने स्तरपर बेहतर प्रबंधन कर रही है क्योंकि कोई सरकार नहीं चाहती कि उनके राज्यमें हालात बिगड़े। परन्तु इस सबके बावजूद आक्सीजनकी कमी कमी और दवाओंकी कालाबाजारी आम होती जा रही है। यह तो कुछ उदाहरण मात्र है। सरकार अपने स्तरपर छापे मारकर कालाबाजारी एवं जमाखोरी करनेवालोंको पकड़ भी रही है परन्तु यह सब एक सीमातक ही संभव है।

कोरोनाकी इस महामारीमें एक और दानदाता और यहांतक कि अन्य देशोंकी सरकारें भी सहायताके लिए आगे आ रही हैं वहीं देशमें ही जो कुछ लोग जमाखोरी और कालाबाजारी कर रहे हैं यह मानवताको शर्मसार करनेवाली स्थिति है। जमाखोरी और कालाबाजारी करके ठीक है कोई दो पैसा अधिक बना लेगा परन्तु उसका यह कृत्य किसी भी हालतमें क्षम्य नहीं हो सकता। आखिर ऐसे समयमें हमें सबकुछ भुलाकर पीडि़त मानवताके लिए आगे आना चाहिए उपलब्ध संसाधनोंसे पीडि़त संक्रमितोंको बचाना चाहिए। हमारे दो कदम पीडि़त संक्रमितके जीवन बचानेमें सहायक हो सकते हैं। यह हमें सोचकर चलना होगा। दुर्भाग्यकी बात यह है कि कुछ चिकित्सा संस्थानोंमें भी इस तरहकी घटनाएं आम होती जा रही है। होना यह चाहिए कि जो वस्तु या साधन हमारें पास है वह खुले दिलसे जरूरतमंद लोगोंतक पहुंचानेंके प्रयास किये जायं। आज हम जिस महामारीके दौरसे गुजर रहे हैं उसमें सबका दायित्व एक-दूसरेकी सहायता करनेका हो जाता है। सरकारको भी इस संकटके दौरमें जो लोग मानवताको शर्मसार कर रहे हैं उनके खिलाफ कड़ी काररवाई करनी चाहिए। सख्तसे सख्त सजाके प्रावधान होने चाहिए। परन्तु सोचनेकी बात यह है कि इस तरहकी करतूत करनेवाले हमारे आसपास ही है। उन्हें समझना यह होगा कि इस समय वह कालाबाजारी या जमाखोरी कर किसीकी जानसे खेल कर दो पैसा अधिक कमा लेंगे परन्तु आनेवाली पीढ़ी और यदि उनमें जमीर नामकी कोई चीज होगी तो वह कभी माफ नहीं करेगी और कचोटती रहेगी।