मार्च का आया महीना ,
माथे से टपकने लगा पसीना ,
हर तरफ है डर का एहसास ,
पता नहीं कब आ जाये कोई खबर ख़ास |
जान है तो जहान ,
क्यों नहीं सब रखते है इसका ध्यान ?
मास्क , सेनिटाइज़र का हर जगह है प्रचार ,
इस्तेमाल करने का कहीं नहीं है आसार |
याद करो बीता हुआ साल ,
कोरोना के डर से सब थे बेहाल ,
कारोबार , ऑफिस , पार्टी , शादी सब पर था रोक ,
किसी के देहांत का भी नहीं कर सकते थे शोक़ |
जब कभी कोई बीमार होता था ,
तो खैरियत पूछने जाते थे ,
दुःख तकलीफ सबकी मिल कर सुलझाते थे |
कोरोना की ऐसी चली हवा ,
जिसकी नहीं थी कोई दवा ,
और सब अपनों से होने लगे जुदा |
घर कहलाने लगा स्वर्ग ,
महत्त्व घरवालों की आने लगी समझ ,
और होने लगा उन सब पर गर्व |
घर में बनते थे नए नए पकवान ,
सेहत का सब रखते थे ध्यान ,
अपने स्वस्थ लाइफस्टाइल की बनाई एक नयी पहचान |
इतना कुछ किया किस के लिए ?
जान सब को बचानी थी इसलिए |
आज फिर कयूँ हो रहे है हम सब लापरवाह ?
क्या कोरोना से हो गए सब बेपरवाह ?
सतर्कता हटी ,
दुर्घटना घटी ,
ना समझो इस कोरोना को मामूली,
एतिहात मानों पूरी ,
इधर उधर संभल कर रखो कदम ,
आज भी है कोरोना में है उतना ही दम |
अपनों को खोया है इस कोरोना से , पिछले साल ,
अपने घर को बचा कर रखें इस साल ,
क्यूंकि फिर आया मार्च का महीना
माथे से टपकने लगा पसीना |
– Bhawna Shah, Kolkata