केंद्र सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन छोटी बचत पर मिल रहे ब्याज दरों को कम करने का फ़ैसला किया, लेकिन इसके अगले दिन गुरुवार को ही यानी नए वित्तीय वर्ष के पहले दिन इस फ़ैसले को वापस ले लिया गया.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ट्वीट के ज़रिए इसकी जानकारी दी. उन्होंने लिखा, “छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरें 2020-21 की अंतिम तिमाही की दरें जितनी बनी रहेंगी.” उन्होंने यह भी लिखा कि भूलवश ब्याज दरों में कमी का आदेश जारी हो गया था. इसे वापस लिया जा रहा है.
यानी अब डाकघर की स्मॉल सेविंग्स स्कीम्स समेत पीपीएफ़, सुकन्या समृद्धि, सीनियर सिटीजन सेविंग्स स्कीम्स जैसी योजनाओं में जमा धन पर अप्रैल-जून 2021 के दौरान भी उसी दर से ब्याज मिलेगा, जो जनवरी-मार्च 2021 तिमाही के लिए थी.
क्या बोला विपक्ष?
महज 24 घंटे के भीतर इन कटौतियों को वापस लेने के सरकार के फ़ैसले पर विपक्षी दलों के नेताओं ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और सरकार की जमकर खिंचाई की.
टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने ट्वीट किया, ”एक बार फिर शर्मिंदगी. क्योंकि मो-शा (मोदी शाह) चुनावी रैलियों में ट्रकों से पंखुड़ियां फेंकने, अप्रैल फूल के चुटकुलों वाले झूठे वादे करने में व्यस्त हैं.”
तो काँग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा ने ट्वीट किया, ”क्या वाक़ई सरकार की स्कीम पर ब्याज दरें घटाने का फैसला भूल से हुआ? या फ़ैसला वापस लेने की बुद्धि क्या चुनाव के कारण आई है?”
तृणमूल काँग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर कटाक्ष करते हुए ट्वीट किया, “यहाँ सबसे बड़ा अप्रैल फूल जोक क्या है? यह कि अब छोटी बचत दर में कटौती भूलवश जारी की गई थी? या कि निर्मला सीतारमण इस देश की वित्त मंत्री हैं?”
राहुल गांधी ने लिखा, “मध्यवर्ग की बचत पर फिर से ब्याज कम करके लूट की जाएगी.”
काँग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने सवाल किया, ”माननीय वित्त मंत्री जी, आप सर्कस चला रही हैं या सरकार? लोग अर्थव्यवस्था का हाल समझ सकते हैं, जब करोड़ों लोगों को प्रभावित करने वाला फ़ैसला भूल से लिया जाता है. बतौर वित्त मंत्री आप पद पर बने रहने का अधिकार खो चुकी हैं.”
वहीं आईएएस अधिकारी अशोक खेमका लिखते हैं, “निजी क्षेत्र में बचत सुरक्षित नहीं. अल्प बचत वाले जाएँ तो जाएँ कहाँ?”
छोटी बचत योजनाओं में जमा रक़म का सुरक्षित होना, कम से कम जमा रक़म करने की सुविधा होना और अच्छा रिटर्न मिलने की वजह से यह आम लोगों के बीच काफ़ी लोकप्रिय रहता है. वित्त मंत्री ने जिन योजनाओं पर ब्याज दरों को घटाने की घोषणा की थी, उसमें सबसे अधिक चर्चा में रही पब्लिक प्रॉविडेंट फंड यानी पीपीएफ़ और सीनियर सिटीजन सेविंग्स स्कीम्स की.
निर्मला सीतारमणसरकार ने ब्याज दरों पर फ़ैसला वापस क्यों लिया?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ब्याज दरें नीचे जा रही हैं. अमेरिका जैसे विकसित देशों में ब्याज दर ज़ीरो या उसके आसपास रहेंगी. छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज देना सरकार की देनदारी होती है.
पर्सनल फाइनेंस एक्सपर्ट शरद कोहली कहते हैं, “सरकार के ख़र्च के तहत यह रकम आती है. क्योंकि इस फ़ंड का इस्तेमाल सरकार ही करती है. कंसोलिडेटेड फंड (समेकित निधि) में लेकर इसका इस्तेमाल कर रही है और इस पर ब्याज भी दे रही है.”
वे कहते हैं, “कोरोना वायरस महामारी के दौरान न आयकर और न ही जीएसटी से राजस्व की कमाई पूरी हुई. यानी राजस्व के लिहाज से बीता वित्तीय वर्ष सरकार के लिए ख़राब था, तो ऐसे में वो अपने ख़र्चों को कम करने की कोशिश में लगी है. जो रक़म ब्याज के रूप में इन छोटी बचत योजनाओं पर सरकार दे रही है, वो बहुत बड़ी रकम है. तो सरकार इसे कम करके अपने ख़र्चों में कमी लाना चाहती है.”
“लेकिन पाँच राज्यों में चुनाव हैं और वहाँ बड़ी संख्या में 60 साल के अधिक उम्र के सेवानिवृत बुज़ुर्ग रहते हैं, जिनका जीवन पीपीएफ़, बुज़ुर्गों के लिए बचत योजना और अन्य छोटी बचत योजनाओं से होने वाली आमदनी पर टिका होता है. इसमें बड़ी संख्या में बुज़ुर्ग महिलाएँ और पूर्व सैनिकों की विधवाएँ भी शामिल हैं. तो जब ऐसे लोग वोट देने जाते, तो उनके दिमाग में यह कटौती रहती और इसके अनुसार वो वोट करते. तो राजनीतिक दृष्टि से बहुत बढ़िया क़दम नहीं था लिहाजा सरकार ने इसे फ़िलहाल वापस ले लिया है.”
क्या इन ब्याज दरों को टाला जा सकता है?
टैक्स एक्सपर्ट धीरेंद्र कुमार कहते हैं कि जब एक तरफ़ बैंकों से मिलने वाले कर्ज़ पर ब्याज दरें कम हो रही हैं, तो जो धन लोग बैंकों या डाक घरों में जमा कर रहे हैं, उसकी दरों में भी कमी आना स्वाभाविक है.
शरद कोहली कहते हैं कि जब सस्ता लोन लेना चाहते हैं, तो डिपॉजिट पर भी कम ब्याज दर लेने की आदत डालनी होगी. गाड़ी, मकान, टीवी जैसी ख़रीद पर उपभोक्ताओं को सस्ता लोन चाहिए, तो डिपॉजिट पर अधिक ब्याज कैसे संभव होगा. घाटे में कौन बिजनेस करना चाहेगा. न सरकार करेगी, न बैंक करेंगे.
वे कहते हैं कि अगर देश को तरक्की करनी है, तो ब्याज दरों को नीचे आना ही होगा. विकासशील से विकसित देश की तरफ बढ़ना है, तो ब्याज दरों को भी उनकी तरह ही होना पड़ेगा. आने वाले वक्त में लोगों को डिपॉजिट पर कम ब्याज लेने की आदत डालनी पड़ेगी.”
बुज़ुर्गों को सबसे अधिक नुकसान
टैक्स एक्सपर्ट और शेयर बाज़ार के जानकार धीरेंद्र कुमार कहते हैं, “छोटी बचत योजनाओं की दरें अब हर तीन महीने पर बदलती हैं. इस बार जब बदला गया तो यह गिरावट कहीं अधिक थी, जिसे सरकार ने वापस लेने का फ़ैसला किया.”
धीरेंद्र कुमार कहते हैं, “इकॉनमी में बैंकिंग सिस्टम के ज़रिए बड़ी संख्या में लोग कर्ज़ लेते हैं और विभिन्न बचत योजनाओं में अपनी पूंजी निवेश करते हैं. तो जो व्यक्ति इसमें निवेश से हुई कमाई पर निर्भर है, बीते कुछ सालों में उसकी आमदनी में तेज़ी से गिरावट देखी गई है. वह बुजुर्ग जिसने जीवनभर कुछ लाख रुपये इकट्ठा कर बैंकों में निवेश किए हैं और उससे हुई कमाई पर वो आश्रित हैं, तो बीते चार सालों में उनकी कमाई बहुत गिरी है.”
वे कहते हैं, “चार-पाँच साल पहले तक इस तरह की बचत योजनाओं में एक करोड़ की पूँजी निवेश पर क़रीब 10 लाख रुपए सालाना कमाई होती थी, जो अब घट कर क़रीब छह लाख रुपए सालाना हो चुकी है. देखने में तो लगता है कि ब्याज दर सवा नौ प्रतिशत से घटकर यह सवा छह प्रतिशत हो गया है लेकिन बुजुर्गों की आमदनी क़रीब एक तिहाई कम हो गई. लिहाजा सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम पर ब्याज दरों में कोई कमी नहीं की जानी चाहिए.”
पीपीएफ़ पर असर
पीपीएफ़ पर ब्याज दरों को 7.1 फ़ीसदी से घटाकर 6.4 फ़ीसदी कर दिया गया था, जो 1974 के बाद सबसे कम दर है.
पीपीएफ़ उन गिने-चुने निवेशों में से है, जिसमें तीन तरह से टैक्स में छूट पाने प्रावधान है. इसमें निवेश के वक्त जमा की जाने वाली रक़म पर टैक्स में छूट तो मिलती ही है. इसकी निकासी के वक्त भी न तो इसकी रकम और न ही ब्याज से हुई कमाई टैक्स के दायरे में आती है. साथ ही इसमें निवेश पर ब्याज दर भी अन्य बचत योजनाओं से कहीं अधिक है.
ब्याज दर में गिरावट का गणित
जिन नए ब्याज दरों की घोषणा बुधवार की शाम की गई थी, उसके तहत सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम की ब्याज दरों को 7.4 से घटाकर 6.5 कर दिया गया था. देखने में तो यह 0.9 फ़ीसद की कमी दिखती है, लेकिन अगर साधारण गणित से देखें, तो नए ब्याज दर से होने वाली कमाई में यह 12.16 फ़ीसदी की गिरावट है.
इसे इस उदाहरण से समझते हैं कि किसी बुजुर्ग ने इस योजना में 10 लाख रुपए निवेश किए. तो पाँच साल में उन्हें इससे 3.70 लाख रुपए की आमदनी होगी. लेकिन इस योजना पर जो दर (6.5 फ़ीसदी) घोषित की गई थी, उससे उनकी कमाई क़रीब 45 हज़ार रुपए कम हो जाती.
इसे ऐसे भी समझें कि बीते चार सालों में एक नौकरी पेशा व्यक्ति के बैंकों से कर्ज़ लेने की दर में गिरावट आई है. चाहे वह पर्सनल लोन हो या होम लोन. भविष्य में यह और कम भी हो सकता है. यानी कर्ज़ लेने पर उसे जो ब्याज देना पड़ता है, उसमें कमी आ रही है. लेकिन वहीं एक बुज़ुर्ग, जो अपने जीवन भर की कमाई निवेश कर रहा है, उसे कम ब्याज दर मिल रहा है जो उसी ब्याज दर से होने वाली आमदनी पर आश्रित है.
धीरेंद्र कुमार कहते हैं, “इकॉनमी में मोमेंटम लाने के लिए ब्याज दरों में कमी किया जाना ज़रूरी है, लेकिन सरकार का ये भी उद्देश्य होना चाहिए कि वो एक ख़ास तबके (बुज़ुर्गों) को इसमें राहत दे, क्योंकि वो अपने निवेश की आमदनी पर ही आश्रित हैं.”
साथ ही वे कहते हैं कि सरकार को इस योजना के तहत निवेश की अधिकतम सीमा को 15 लाख से बढ़ाकर 50 लाख रुपए कर देनी चाहिए, ये रक़म वो एक लंबे समय तक सरकार के पास रख रहा है, जिसका सरकार कई तरह की योजनाओं में इस्तेमाल करेगी.
सरकार को ब्याज दरों में गिरावट का लाभ कैसे?
ब्याज दरें कम करने का सबसे अधिक फ़ायदा सरकार को ही होता है, क्योंकि वही सबसे अधिक उधार लेती है.
धीरेंद्र कुमार बताते हैं कि, “सरकार चाहे बैंक से कर्ज़ ले या एसएलआर के तहत ले या रिजर्व बैंक के बॉन्ड के ज़रिए. भारत सरकार का बॉन्ड सबसे बड़ा आउटस्टैंडिंग डेब्ट है. तो ब्याज दरें कम होने का सबसे बड़ा लाभ सरकार को मिलता है, उसे कम से कम ब्याज दरों का भुगतान करना पड़ता है.”
ब्याज दरें कम करने से और किसे लाभ?
हालाँकि धीरेंद्र कुमार कहते हैं कि ब्याज दरों को कम किए जाने की ज़रूरत है. वे कहते हैं कि दुनिया भर में ब्याज दरें कम हैं. जबकि भारत में कहीं ज़्यादा है. इसका सीधा असर कारोबार पर पड़ता है, क्योंकि इससे इसकी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता पर असर पड़ता है.
इसे फिर एक उदाहरण से समझें कि भारत में एक कारोबारी 10 फ़ीसदी दर पर कर्ज़ लेता है, अमेरिका में यह दर 2 फ़ीसदी है. अगर यह कारोबारी एक करोड़ रुपए की पूँजी कर्ज़ लेकर एक फ़ैक्टरी लगाता है, तो उसे 10 लाख से अधिक रुपए ब्याज के रूप में देने पड़ रहे हैं, वहीं अमेरिका में कारोबारी को इतनी ही रकम पर क़रीब 2 लाख रुपए ही ब्याज देने होंगे. तो भारतीय कारोबारी की तुलना में वो अपना सामान ज़्यादा सस्ता बेच पाएगा.
कोरोना वायरस महामारी से चरमराई भारत की वित्तीय स्थितिसरकार की वित्तीय स्थिति
सरकार की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है. राजकोषीय घाटा 10 से 11 प्रतिशत के बीच पहुँच चुका है. 2003 में लागू हुए फिस्कल रेस्पॉन्सिबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट (एफआरबीएम) एक्ट के तहत सरकार राजकोषीय घाटे को कम करने का लक्ष्य तय करती है. इसके तहत अगर साढ़े तीन फ़ीसदी से अधिक राजकोषीय घाटा होता है, तो संसद की इजाज़त के बग़ैर कंसोलिडेटेड फंड (समेकित निधि) से पैसे नहीं निकाले जा सकते.
शरद कोहली कहते हैं, “कोरोना वायरस महामारी की वजह से सरकार ने इस एफआरबीएम में ढील दी है और यह क़रीब 9 से 11 फ़ीसदी के बीच है. सरकार की वित्तीय हालत बहुत अच्छी नहीं है. लेकिन पहली अप्रैल (गुरुवार) से शुरू हुए वित्तीय वर्ष में ग्रोथ के आकलन अच्छे दिए जा रहे हैं. रिज़र्व बैंक, आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक के साथ जितनी भी अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी हैं, सबने देश के ग्रोथ का आकलन 10 फ़ीसदी से अधिक रखा है.”