जम्मू, : ‘सच में… जनरल बिपिन रावत यारों के यार थे। नेशनल डिफेंस अकादमी से चीफ आफ डिफेंस स्टाफ बनने तक जनरल रावत बिल्कुल नहीं बदले। उन्होंने अपने पुराने दोस्तों को हमेशा दिल के करीब रखा। जब भी मुलाकात हुई, वही बेबाकी, जिंदादिली और दिलेरी से हुई।’
जनरल रावत के पुराने दोस्तों में से एक सेवानिवृत ब्रिगेडियर डीके बडोला ने दैनिक जागरण के साथ बातचीत में कहा कि मैं उनके साथ युवा अधिकारी के रूप में बिताए दिनों को कभी नहीं भूल सकता हूं। दोस्तों की हमेशा मदद करने में आगे रहने वाले रावत एनडीए के दिनों में फिजिकल टेस्ट में कुछ पीछे रह गए। उन्होंने हार नहीं मानी और कठिन परिश्रम से खुद को मजबूत कर इंडियन मिलिट्री अकादमी (आइएमए) में गोल्ड मेडल जीत लिया। बडोला ने कहा कि मैं उन्हें अपना प्रेरणास्रोत मानता हूं। वह अपने काबलियत के सहारे सेना में आगे बढ़ते गए। हम नेशनल डिफेंस अकादमी में साथ थे।
वह वर्ष 1975 के बैच के कैडेट थे। हम दोनों पहाड़ी थे, वह पौढ़ी गढ़वाल के थे और मैं देहरादून का था। ऐसे में हमारी खास बनती थी। बडोला ने बताया कि जनरल रावत के पिता भी सेना में लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर थे, बावजूद इसके वह बहुत सादे स्वभाव के थे।
मेजर के रूप में भी रहे साथ : बडोला ने बताया कि नेशनल डिफेंस अकादमी व उसके बाद इंडियन मिलिट्री अकादमी से पास होने के बाद कभी कभार ही मिलने का मौका मिला। लेकिन वर्ष 1990 में सेना के मेजर के रूप में हम एक बार फिर वैलींगटन में डिफेंस स्टाफ कालेज में साथ थे। ऐसे में कालेज में हमें एनडीए के पुराने दिनों को याद करने का खूब मौका मिला। इसके बाद हमारी कई बार फोन पर बात हुई।
कहते थे, जब भी आओ मुझे मिले बिना नहीं जाना : बडोला ने बताया कि जब रावत सेना की दक्षिण कमान के आर्मी कमांडर बने तो जोधपुर में भेंट के दौरान उन्होंने उसी बेबाकी के साथ मुझे अपनी पत्नी से मिलाकर पुरानी यादों का पिटारा खोल दिया। उन्होंने मुझसे बैच के अन्य अधिकारियों के बारे में भी पूछा। उस समय वह लेफ्टिनेंट जनरल थे और मैं ब्रिगेडियर था। मुझे उस समय यह अहसास हुआ कि वह बिल्कुल नहीं बदले। जनरल रावत ने मुझसे कहा कि जब भी आओ मुझे मिले बिना नहीं जाना। आज वह इस दुनिया से गए हैं तो पुराने दिन याद कर बहुत दुख हो रहा है।