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भारत-रूस शिखर बैठक ने दिखाई दिया दोनों की दोस्ती का नायाब उदाहरण


डा. सुधीर सिंह। हाल में संपन्न भारत-रूस शिखर बैठक ने दोनों देशों की दोस्ती का नायाब उदाहरण पेश किया। इसमें भाग लेने के लिए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन खासतौर से दिल्ली आए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हैदराबाद हाउस में उनकी अगुआई की। दिनभर चली बैठकों में प्रधानमंत्री मोदी ने जहां भारत-रूस दोस्ती को अनूठी और एक-दूसरे की संवेदनाओं का ध्यान रखने वाली बताया, वहीं राष्ट्रपति पुतिन ने भारत को बड़ी शक्ति और विश्वसनीय दोस्त करार दिया।

बैठकों में द्विपक्षीय रक्षा संबंधों, अफगानिस्तान, आतंकवाद, एशिया प्रशांत और कोरोना महामारी की चुनौतियों से लेकर अंतरिक्ष एवं विज्ञान के क्षेत्र में नए सहयोग के मुद्दे पर बातचीत हुई। साथ ही दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में 28 समझौतों पर हस्ताक्षर भी किए गए। इससे पहले दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों की अलग-अलग बैठकें हुईं। उसके बाद इन चारों की टू प्लस टू व्यवस्था के तहत पहली संयुक्त बैठक हुई। अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती रणनीतिक साङोदारी और चीन के साथ रूस के लगातार मजबूत होते सामंजस्य के बावजूद मोदी और पुतिन ने इस शिखर बैठक के जरिये वैश्विक स्तर पर एक मजबूत राजनीतिक संकेत दिया।

शीत युद्ध के बाद वैश्विक राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन आया है। पुराने दोस्त सामान्य दोस्त रह गए हैं और पुराने प्रतिद्वंद्वी भी कई मामलों में अच्छे मित्र बन गए हैं। शीत युद्ध की समाप्ति तक रूस भारत का सबसे विश्वसनीय सहयोगी रहा। शीत युद्धोत्तर काल में इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि कोरोना कालखंड के पिछले दो वर्षो में राष्ट्रपति पुतिन की यह दूसरी विदेश यात्रा थी। जून 2021 में वह अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन के साथ शिखर बैठक करने के लिए स्विट्जरलैंड गए थे। उनका भारत आना इसलिए भी अहम है, क्योंकि उन्होंने चीन का भी अपना दौरा कोरोना महामारी के कारण रद कर दिया था। साफ है कि भारत आकर उन्होंने चीन को भी संदेश दिया।