मुरादाबाद। भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशियों की पहली सूची में मुरादाबाद का नाम नहीं होने के बाद से चर्चाओं का जोर तेज हो गया है। माना जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व मुरादाबाद की सीट को लेकर सतर्कता बरत रहा है। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी भी मान चुके हैं प्रदेश में सबसे कठिन मुकाबला मुरादाबाद में ही है।
पार्टी 80 सीटों पर जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है। ऐसे में मुरादाबाद जैसी प्रमुख सीट पर जीत की संभावना वाले प्रत्याशी पर ही दांव लगाया जाएगा। ऐसे में पुराने आजमाए हुए फार्मूले और जातीय समीकरण को दरकिनार करते हुए प्रत्याशी का चयन होगा। हालांकि, बताया जा रहा है कि पिछली बैठक में मुरादाबाद की सीट पर चर्चा ही नहीं हुई। छह मार्च को फिर से भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक होनी है। इसमें मुरादाबाद के प्रत्याशी को लेकर शुरुआती दौर में ही चर्चा होने की संभावना जताई जा रही है।
भाजपा के लिए हमेशा चुनौती रहा है मुरादाबाद मंडल
भाजपा पदाधिकारियों की माने तो केंद्रीय नेतृत्व प्रत्याशी चयन में स्थितियों और संभावनाओं को लेकर चर्चा करते हैं। मुरादाबाद मंडल भाजपा के लिए हमेशा से चुनौती रहा है। मुरादाबाद सीट पर दो बार जनसंघ के प्रत्याशी जीत दर्ज कर चुके हैं।
केंद्र में एनडीए की पहली सरकार बनने के दौरान मुरादाबाद में भाजपा खाली हाथ रही थी। 1999 में चंद्र विजय सिंह बेबी राजा लोकतांत्रिक कांग्रेस के टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे थे, हालांकि वह बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे। 1952 से अभी तक मुरादाबाद सीट पर भाजपा केवल एक ही बार जीत दर्ज कर पाई है। 2014 में सर्वेश सिंह सांसद चुने गए थे, जबकि 2019 में पार्टी ने उन पर भरोसा जताया, लेकिन वह पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा पाए। इस बार भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व फूंक-फूंककर कदम रख रहा है।
क्लस्टर बनाकर घोषित हो रहे प्रत्याशी
भाजपा प्रत्याशी चयन में क्लस्टर का भी ध्यान रख रही है। जैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वाराणसी सीट से प्रत्याशी है। इसके माध्यम से पूर्वांचल को साधा जाता है। इसी प्रकार से एक प्रमुख सीट पर केंद्र बनाकर उसके आस पास की पांच से छह सीटों का क्लस्टर बनाया जाता है।
केंद्र में किसी बड़े चेहरे को उम्मीदवार के तौर पेश किया जाता है, ताकि उसका लाभ आस पास की सीटों पर हो। 2019 में पार्टी को मुरादाबाद मंडल की एक भी सीट पर जीत नहीं मिल पाई थी। हालांकि, उसका वोट प्रतिशत 2014 की तुलना में घटा नहीं था। 2014 में उतने ही वोट पाकर पार्टी ने सभी सीटों पर जीत दर्ज की थी। अंतर सपा और बसपा गठबंधन के कारण हुआ था। पार्टी को उम्मीद है कि उसके वोट प्रतिशत में कमी नहीं आने वाली है। ऐसे में मुरादाबाद में ऐसे प्रत्याशी को उतारना है, जिसका प्रभाव न केवल मुरादाबाद बल्कि आस पास की सीटों पर भी रहे। यही कारण है कि किसी बड़े नाम को मुरादाबाद से प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा चल रही है।
वर्ष पार्टी विजेता
1952 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस राम सरन
1957 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस राम सरन
1962 निर्दलीय सैयद मुजफ्फर हुसैन
1967 जनसंघ ओमप्रकाश त्यागी
1971 जनसंघ वीरेंद्र अग्रवाल
1977 जनता पार्टी गुलाम मुहम्मद खान
1980 जनता पार्टी गुलाम मुहम्मद खान
1984 कांग्रेस हाफिज मोहम्मद सिद्दीक
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1989 कांग्रेस गुलाम मुहम्मद खान
1991 जनता दल गुलाम मुहम्मद खान
1996 सपा शफीकुर्रहमान बर्क
1999 लोकतांत्रिक कांग्रेस चंद्र विजय सिंह
2004 सपा शफीकुर्रहमान बर्क
2009 कांग्रेस मोहम्मद अजहरुद्दीन
2014 भाजपा कुंवर सर्वेश सिंह
2019 सपा डा. एसटी हसन