लखनऊ । अभी विधानसभा चुनाव जीता ही है कि भाजपाई रणनीतिकारों के दिमागी घोड़े अगला विजय रथ खींचने के लिए तैयार हो गए। गृहमंत्री अमित शाह को उत्तर प्रदेश का पर्यवेक्षक बनाए जाने के पीछे उद्देश्य ही यह है कि वह योगी आदित्यनाथ के नए मंत्रिमंडल का गठन कराते हुए ऐसी बिसात बिछाएं, जिस पर भाजपा मजबूती से शह-मात का खेल खेल सके। प्रदेश की राजनीति को करीब से देखते हुए पर्याप्त समय गुजार चुके अमित शाह ताजा चुनाव परिणामों से और भी अच्छे से कच्ची-पक्की जमीन का आकलन कर चुके होंगे।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में 255 सीटों पर भाजपा की विजय का परिणाम आते ही यह चर्चा शुरू हो गई थी कि नए मंत्रिमंडल का गठन 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा। इस पर अपने-अपने तर्कों के साथ संगठन पदाधिकारी भी बहस छेड़े हैं कि कितने उपमुख्यमंत्री होंगे, किस क्षेत्र या जाति को प्राथमिकता मिलेगी और किन-किन नेताओं का कदम बढ़ेगा।
इस बीच भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने यह सारा जिम्मा सौंपते हुए गृहमंत्री अमित शाह को यूपी का पर्यवेक्षक और उनके साथ झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास को सह-पर्यवेक्षक बना दिया। अब होली के बाद उनका लखनऊ आना प्रस्तावित है। शाह के प्रदेश और केंद्रीय संगठन के साथ विमर्श के बाद किन-किन नामों पर सहमति बनती है, यह बाद में पता चलेगा, लेकिन यह तय है कि मंत्रिमंडल का गठन शतरंज की उस बिसात की तरह होगा, जिस पर मंत्रिमंडल का एक-एक सदस्य 2024 के चुनावी खेल का मोहरा होगा।
दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में जब भाजपा ने प्रदेश की 80 में से 73 लोकसभा सीटें जीतीं, तब प्रदेश प्रभारी के रूप में मोर्चा अमित शाह ने ही संभाला था। उन्होंने सूबे की सूखी धरती की निराई-गुड़ाई अपने रणनीतिक अस्त्रों से कर यहां कमल खिलाया था।
इसके बाद वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिए गए, लेकिन फिर 2017 का विधानसभा चुनाव हो या 2019 को लोकसभा चुनाव, यूपी की रणनीति की कमान शाह ने अपने हाथ में ही रखी। परिणाम सामने आए। संगठन का आत्मविश्वास बढ़ा और 2017 में सपा-कांग्रेस गठबंधन तो 2019 में सपा-बसपा के चुनौतीपूर्ण गठबंधन को भी भाजपा के रणबांकुरों ने धूल चटा दी।





