Latest News नयी दिल्ली राष्ट्रीय

ये कानून खत्म हो गया तो बदल जाएगा कई धार्मिक स्थलों का मूल स्वरूप, पढ़ें क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट


 नई दिल्ली। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पिछले कुछ दिनों से चर्चा में है। ज्ञानवापी मामले में अदालत के फैसले के बाद इस पर बहस शुरू हो गई है। बीजेपी सांसद हरनाथ सिंह यादव ने तो सालों पुराने इस एक्ट को खत्म करने की मांग तक कर डाली है। क्या आपको पता है कि आखिर ये कानून है क्या और इसे क्यों लाया गया था।

 

क्या है प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट?

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को साल 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार लेकर आई थी। उस वक्त हुए राम मंदिर आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार इस कानून को लाने में सक्रिय हुई थी। इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 से बने किसी भी धार्मिक स्थल को दूसरे धार्मिक स्थल में नहीं बदला जा सकता है।

कैद और जुर्माने का प्रावधान

धार्मिक स्थल से छेड़छाड़ के लिए इसमें कैद और जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है। अगर कोई शख्स धार्मिक स्थल के साथ छेड़छाड़ करता है तो उसे तीन साल की कैद और जुर्माना दोनों हो सकता है।

वर्शिप एक्ट से क्यों अलग रखा गया अयोध्या विवाद

अयोध्या मामले को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट से अलग रखा गया था। इसके पीछे तर्क दिया गया था कि ये मामला देश की आजादी से पहले से अदालत में चल रहा था। लिहाजा, इसे वर्शिप एक्ट से अलगा रखा जाए।

क्यों हो रही एक्ट को खत्म करने की मांग?

बीजेपी के राज्यसभा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने इस कानून को खत्म करने की मांग की है। बजट सत्र के दौरान राज्यसभा में बहस के दौरान उन्होंने इस कानून को तत्काल प्रभाव से रद्द करने की मांग की। हरनाथ ने कहा कि ये कानून संविधान के तहत हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध समाज के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। उन्होंने इसे असंवैधानिक भी बताया है।