- दिल्ली में राजनेताओं और मददगारों के पास किल्लत के वक्त दवाइयां और ऑक्सीजन भारी मात्रा में पहुंच रही थी. दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि मुमकिन है कि इन लोगों की नीयत और मकसद सही रही हो लेकिन अगर सही नीयत और मकसद से भी किया गया काम कानून के खिलाफ है तो वहां पर कार्रवाई बनती है.
देश भर में कोरोना की दूसरी लहर के वक्त ऐसा भी समय देखने को मिला जब मरीजों ने दवाइंयों और ऑक्सीजन की किल्लत के चलते दम तोड़ दिया. वहीं ऐसी स्थिति में दिल्ली में राजनेताओं और मददगारों तक दवाइयां और ऑक्सीजन पहुंच रही थी. दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि मुमकिन है कि इन लोगों की नीयत और मकसद सही रही हो लेकिन अगर सही नीयत और मकसद से भी किया गया काम कानून के खिलाफ है तो वहां पर कार्रवाई बनती है.
कोर्ट ने बीजेपी सांसद गौतम गंभीर, और आप विधायक प्रीति तोमर और प्रवीण कुमार से जुड़े हुए मामलों पर सुनवाई करते हुए कहा कि जब दिल्ली में लोगों को जरूरी दवाइयां और ऑक्सीजन नहीं मिल रही थी तो आखिर इन लोगों के पास वह कैसे उपलब्ध थी इस बात की जांच होना जरूरी है.
कोर्ट ने बीजेपी सांसद गौतम गंभीर समेत आप विधायकों पर उठे सवाल
दिल्ली हाईकोर्ट में राजनेताओं और मददगारों द्वारा बांटी जा रही दवाइयों और ऑक्सीजन के मुद्दे पर सुनवाई के दौरान सबसे पहले केस से जुड़े हुए वकील ने गौतम गंभीर के बारे में जानकारी कोर्ट के सामने रखी. वकील ने कोर्ट को बताया कि गौतम गंभीर ने 21 अप्रैल को अखबारों में एक मुफ्त में दवा देने को लेकर एक विज्ञापन जारी किया था. लेकिन सवाल यह है कि आखिर गंभीर के पास में दवाइयां पहुंची कैसे.
दलील देते हुये कहा पुलिस से पूछताछ के दौरान गौतम गंभीर ने कहा कि उनको यह दवाइयां अपने फाउंडेशन की मदद से मिली थी लेकिन पुलिस ने यह नहीं पता लगाया कि आखिर उनके फाउंडेशन को यह दवाइयां कैसे मिल गई जबकि आम जनता को यह दवाइयां मिल नहीं रही थी. वकील ने कहा कि इस तरीके से नेताओं ने जमाखोरी की और इसकी वजह से लोगों को जरूरत के वक्त दवाइयां नहीं मिल पाई जिसके चलते कई लोगों की जान तक चली गई.
वकील बताया कि गौतम गंभीर ने अपने घर पर लोगों को बुलाया टोकन बांटे और उसके आधार पर लोगों को दवा बांट दी. इस दौरान कोई मेडिकल कैंप भी आयोजित नहीं किया गया. वकील ने कहा कि इस पूरी गतिविधि में 4 डॉक्टर भी शामिल थे. यह राजनेता और डॉक्टरों के गठजोड़ को दिखाता है. इतना ही नहीं गौतम गंभीर फाउंडेशन की तरफ से इन दवा को खरीदने को लेकर कोई इनवॉइस भी नहीं पेश की गई और अब जब मामला अदालत में आ गया तो इधर उधर से इंतजाम कर दस्तावेज तैयार करने की कोशिश की जा रही है यह धोखाधड़ी का भी मामला है.
ये देखना होगा कि क्या वाकई में इन लोगों ने जमाखोरी की थी- कोर्ट
कोर्ट ने कहा यह कहना ठीक नहीं की एक बड़ी साजिश का हिस्सा है लेकिन याचिकाकर्ता ने एक मामला कोर्ट के सामने उठाया है जिसकी पड़ताल की जाएगी. याचिकाकर्ता वकील ने कहा कि दवा कोई रेलवे स्टेशन का टिकट नहीं कि जिसके लिए वीआईपी अपने अपने लोगों को उपलब्ध करवाएं फिर चाहे वह आम आदमी पार्टी के हो या कांग्रेस के. कोर्ट ने कहा कि हमको यह भी देखना होगा कि क्या वाकई में इन लोगों ने जमाखोरी की थी जैसे की याचिका में आरोप लगाए गए हैं क्योंकि इस मामले में अब तक कोई शिकायतकर्ता तो सामने नहीं आया है.