लखनऊ: पिछले साल गिरफ्तारी के बाद गैंगस्टर विकास दुबे की हत्या में उत्तर प्रदेश पुलिस के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। एक जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जनता, मीडिया और अपराधी के परिवार ने पुलिस के खिलाफ कोई भी सबूत पेश नहीं किए, जिसमें यह कहा जा सके कि यह फर्जी एनकाउंटर था।
विकास दुबे और उनके पांच सहयोगियों को यूपी पुलिस ने जुलाई में मार गिराया था। गैंगस्टर ने एक घात लगाकर पुलिस पर हमला किया था, जिसमें आठ पुलिसकर्मी मारे गए थे।
विकास दुबे को पुलिस के काफिले में वापस यूपी लाया जा रहा था, जब उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने कहा कि जिस कार में दुबे यात्रा कर रहे थे, वह फिसल गई और उसने एक पुलिसकर्मी की बंदूक छीन ली और पुलिस वालों पर गोलियां चलाई। जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं।
मुठभेड़ के पुलिस संस्करण का खंडन करने के लिए “कोई सबूत” नहीं है, लेकिन इसका समर्थन करने के लिए “पर्याप्त सामग्री” है। तीन सदस्यीय जांच पैनल ने यूपी सरकार और सुप्रीम कोर्ट को सौंपी एक रिपोर्ट में कहा है।
न्यायिक पैनल की स्थापना सुप्रीम कोर्ट ने मुठभेड़ की जांच के लिए दायर याचिकाओं के बाद की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि यह पुलिस द्वारा एक सोची-समझी साजिश है।
सूत्रों का कहना है कि न्यायमूर्ति बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले जांच आयोग ने कहा है कि कोई भी पुलिस के खिलाफ कोई सबूत नहीं दे पाया है।
पैनल की रिपोर्ट में बताया, “हमने सबूत इकट्ठा करने के लिए अपनी पूरी कोशिश की। जनता और मीडिया को अपना वर्जन देने के लिए कहा। मीडिया ने यूपी पुलिस के खिलाफ कई कहानियां बनाई, लेकिन किसी ने कोई सबूत नहीं दिया।”