Latest News नयी दिल्ली महाराष्ट्र सम्पादकीय

व्यूहरचनामें कमजोर रहे ठाकरे


उद्धव ठाकरेने त्यागपत्रके बाद कहा कि उन्होंने जिन लोगोंको सड़कसे उठाकर विधायक और मंत्री बनाया उन्होंने ही उन्हें धोखा दिया और अब मैं विधान भवनमें ऐसे लोगोंसे आमना-सामना नहीं करना चाहता। यहां यह ध्यान देनेकी बात है कि शिवसेनाके जिन ३९ विधायकोंने बगावत की और अपने नेताका साथ छोड़ा उन्होंने उद्धव ठाकरेपर एक भी आरोप नहीं लगाया। उद्धव ठाकरेपर विपक्षी भाजपाके नेता देवेन्द्र फड़णवीसने भी आजतक कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं लगाया है। फिर भी दल-बदलका खेल तो इस देशमें केन्द्र और राज्य स्तरोंपर लगातार चलता आ रहा है। इस दल-बदलसे केन्द्रमें वीपी सिंहकी भी सरकार गिरी और अब महाराष्टï्रमें उद्धव ठाकरेकी सरकार भी गिर गयी। इस सिलसिलेका चलते रहना न केवल लोकतंत्रके लिए, बल्कि इस देशके लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। हर दल-बदलके साथ जनताका विश्वास टूटता है और राजनीतिका स्तर और भी गिरता है। देशमें अबतक जितनी भी सरकारें गिरी या नयी सरकारें बनीं, उसमें महाराष्टï्रका यह दल-बदल अनोखा है। शिवसेनाके ५५ मेंसे ३९ विधायक जिनमें नौ मंत्री भी हैं। महाराष्टï्रकी राजधानी मुम्बई छोड़कर गुवाहाटी चले गये थे। इन विधायकोंने पार्टीके नेताके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लानेके बदले राज्यपालसे सदनमें बहुमत साबित करनेकी मांग कर दी। शिवसेनाके नेता और मंत्री उद्धव ठाकरे सार्वजनिक रूपसे इन विधायकोंसे मुम्बई वापस आनेकी अपील लगातार करते रहे। किन्तु यह विधायक मुम्बई आनेको तैयार नहीं हुए।
इस बीच विधानसभाके उपाध्यक्षने इन विधायकोंके विरुद्ध नोटिस जारी कर दिया और उनसे जवाब मांगा तो वे सीधे सुप्रीम कोर्ट चले गये। सुप्रीम कोर्टने मामलेमें १५ दिनका समय और देने और तबतक कोई काररवाई न करनेका निर्देश विधानसभाके उपाध्यक्षको दे दिया। लगा कि यह मामला लम्बा खिंचेगा किन्तु अगले ही दिन भाजपा नेता और पूर्व मुख्य मंत्री देवेन्द्र फड़णवीस राज्यपालसे मिले और उन्होंने सदनकी बैठक बुलाकर बहुमतका परीक्षण करानेका मांग कर दी। राज्यपालने अगले ही दिन विधानसभाके सदस्योंकी बैठक बुलानेका आदेश दे दिया। लग रहा था कि सब कुछ बहुत जल्दीबाजीमें हो रहा है उसी दिन रातको मुख्य मंत्री सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये और सुप्रीम कोर्टने राज्यपालके आदेशमें दखल देनेसे इन्तजार कर दिया। मुख्य मंत्रीके वकीलने जब सुप्रीम कोर्टका ध्यान इस तथ्यकी ओर दिलाया कि इसी अदालतने विधानपरिषद उपाध्यक्षको काररवाईके लिए ११ जुलाईके बादका समय दिया है तो उन्होंने इसे संज्ञानमें लेनेसे क्यों इनकार कर दिया। इससे स्पष्टï है कि जब सदनमें फैसला हो ही जायगा तो फिर उपाध्यक्षके लिए कोई काररवाई करनेका मौका मिलेगा या नहीं मिलेगा यह कहना मुश्किल है।
इस पूरी काररवाईमें भाजपा बड़ी सावधानीसे चल रही थी। लेकिन इतना तो स्पष्टï है कि शिवसेनाके विधायकोंको मुम्बईसे सूरत और फिर गुवाहाटी ले जानेमें उसीकी प्रमुख भूमिका दिखती है, क्योंकि गुजरात और असम दोनों ही राज्योंमें भाजपाकी ही सरकारें हैं। वैसे इतना तो स्पष्टï है यह पूरी व्यूहरचना राज्यसभाके चुनावके समय लिखी जा चुकी थी। राज्यसभाकी छठीं सीटपर भाजपा और शिवसेनाकी उम्मीदवारोंके बीच कांटेकी टक्कर थी लेकिन शिवसेनाके एक दर्जन विधायकों द्वारा भाजपाके उम्मीदवारका समर्थन कर देनेसे भाजपाका उम्मीदवार जीत गया। दोनों पक्ष यह समझ गये थे कि इस सरकारपर खतरा उपस्थित हो गया है। लेकिन शिवसेनाने विरोधी उम्मीदवारको वोट देनेवाले अपने विधायकोंके विरुद्ध कोई काररवाई नहीं की। इसका मतलब यह नहीं हुआ कि शिवसेना कभी भी कोई काररवाई नहीं कर सकती। विधानपरिषदके उपाध्यक्ष उसके अपने आदमी हैं और वह कभी भी सम्बन्धित विधायकोंकी सदस्यताको समाप्त करनेकी पहल कर सकती है। शिवसेना यहीं चूक गयी और उसने देर कर दी। यह काररवाई उसने समयसे कर दी होती तो उसका ज्यादा नुकसान नहीं होता।
इसी बीच शिवसेनाके एक प्रमुख मंत्री एकनाथ शिन्दे प्रकट हुए और उन्हींके नेतृत्वमें बागी विधायकोंकी संख्या बढ़ने लगी। हालांकि शिवसेनाके वरिष्ठï नेताओंने बागी विधायकोंको समझानेकी बहुत कोशिश की लेकिन इसका उनपर कोई असर नहीं पड़ा। एक समय तो ऐसा आया कि शिवसेना नेता और मुख्य मंत्री उद्धव ठाकरेने अपने विधायकोंसे अपील की कि वे अपना पद छोड़नेको तैयार हैं और विधायक जिसको पसन्द करेंगे वे उनको मुख्य मंत्री बना देंगे। इस भावुक अपीलके बाद भी शिवसेनाके बागी सांसद वापस नहीं लौटे। यहां यह याद रखना चाहिए कि शिवसेनाके संस्थापक बाल ठाकरे कभी भी मुख्य मंत्री नहीं बनें, जबकि उनकी पार्टीके मुख्य मंत्री कई बार बनते रहे। महाराष्टï्रमें भाजपा और शिवसेनाकी जब भी मिलीजुली सरकार बनी सिर्फ एक बार छोड़कर शिवसेनाका ही मुख्य मंत्री होता था। वर्तमान सरकारके पूर्व जब देवेन्द्र फड़णवीस मुख्य मंत्री थे तो शिवसेना उसमें सहयोगी पार्टीके रूपमें शामिल हुई थी। लेकिन पिछली बार उद्धव ठाकरेको मुख्य मंत्री बनानेमें राष्टï्रवादी कांग्रेसके नेता शरद पवारकी अहम भूमिका रही और उन्होंने कांग्रेसको भी शिवसेनाका समर्थन करनेके लिए राजी कर लिया। उद्धव ठाकरे अब मुख्य मंत्री पदसे त्यागपत्र दे चुके हैं। दल-बदलके कारण अच्छी सरकारें भी गिरती हैं। दल-बदल रोकनेके लिए कई कानून बनें किन्तु यह रुकेगा कैसे इसपर देशमें फिर भी चिन्तन होना चाहिए।