नई दिल्ली, । देश में लगातार वैवाहिक दुष्कर्म के मामले बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे कई मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुके हैं। इसी बीच, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि वह वैवाहिक दुष्कर्म के मुद्दे पर याचिकाओं को अक्टूबर के मध्य में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करेगा।
याचिका में कानूनी सवाल उठाया गया है कि क्या पति अपनी पत्नी के मर्जी के बिना यदि संबंध बनाता है, तो उसे दुष्कर्म के श्रेणी में रखा जाना चाहिए या नहीं।
संविधान पीठ की सुनवाई पूरी होने के बाद होगा सूचीबद्ध
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने वकील करुणा नंदी की दलीलों पर ध्यान दिया कि याचिकाओं पर सुनवाई की जरूरत है। पीठ ने कहा, “हम संविधान पीठ की सुनवाई के बीच में हैं। संविधान पीठ के मामले समाप्त होने के बाद हम इसे सूचीबद्ध कर सकते हैं।” साथ ही पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अन्य वकीलों से पूछा कि उन्हें अपनी दलीलें आगे बढ़ाने में कितना समय लगेगा।
अक्टूबर मध्य में होगी सुनवाई
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “मुझे दो दिन लगेंगे, क्योंकि मुद्दे के सामाजिक प्रभाव हैं।” याचिकाकर्ताओं के एक वकील ने कहा कि वे तीन दिनों तक बहस करना चाहेंगे। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने चुटकी लेते हुए कहा, “तो फिर इसे अगले साल अप्रैल में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जा सकता है।”
हालांकि, बाद में पीठ ने स्पष्ट करते हुए कहा कि याचिकाएं अक्टूबर के मध्य में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की जाएंगी।
तत्काल सुनवाई के लिए याचिका का उल्लेख
इससे पहले, वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने तत्काल सुनवाई के लिए याचिका का उल्लेख किया था। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 (दुष्कर्म) के एक अपवाद खंड की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, क्योंकि इसमें कहा गया है कि यदि पति और पत्नी व्यस्क हैं, तो यह पति के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा चलाने से छूट देता है यानी उस स्थिति को अपराध की श्रेणी में रखा जाता है।
केंद्र से मांगा था जवाब
पीठ ने कहा, “हमें वैवाहिक दुष्कर्म से संबंधित मामलों को सुलझाना होगा।” मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि इन मामलों की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की जाएगी और पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा कुछ सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई समाप्त करने के बाद इन्हें सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने 16 जनवरी को वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने और उस पर आईपीसी प्रावधान से संबंधित याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था।
शीर्ष अदालत की ओर से फैसले की आवश्यकता
मेहता द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए केंद्र ने कहा था कि इस मुद्दे के कानूनी और सामाजिक निहितार्थ हैं और सरकार याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करना चाहेगी। इस मुद्दे पर 11 मई, 2022 के दिल्ली उच्च न्यायालय के खंडित फैसले के संबंध में एक याचिका दायर की गई है।
न्यायमूर्ति राजीव शकधर और सी हरि शंकर ने याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की अनुमति का प्रमाण पत्र देने पर सहमति व्यक्त की थी, क्योंकि इस मामले में कई महत्वपूर्ण प्रश्न शामिल थे, जिसके लिए शीर्ष अदालत की ओर से सुनाए गए फैसले काफी जरूरी हैं।
कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती
एक याचिका एक व्यक्ति ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर की गई है। कर्नाटक हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता की पत्नी के साथ कथित तौर पर दुष्कर्म करने के लिए उसके खिलाफ मुकदमा चलाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पिछले साल 23 मार्च को कहा था कि पति को अपनी पत्नी के साथ दुष्कर्म और अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोपों से छूट देना संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के खिलाफ है।