डा. रामचन्द्र सिंह
इस धरापर जो भी रचना या क्रिया दिखती है, उसके पीछे एक युगल होता है, जिसमें आपसी समानता, मौलिक विषमता एवं समायोजनका स्वभाव होता है। जैसे यह धरा, दो असमान धु्रवोंके समायोजनका प्रतिफल है। मनुष्य भी एक ऐसी ही प्रवृत्तिकी रचना है। मनुष्य स्वयं एक मन बुद्धि युक्त बिन्दु रूप चेतन आत्मा एवं जड़ शरीरकी प्रवृत्तीय अभिव्यक्तिी है। अतिनाशी, आत्मा, गर्भस्थ शिशुके पाचवें माहमें उत्मांगमें प्रवेश कर अवस्थित होती है। आत्माके प्रवेश कालकी, मांकी अनभिज्ञतासे आत्माका परमाणु स्वरूप प्रमाणित होता है, मां पूर्णतया अवगत होती है। अचिन्त्य रूपं, सच्चिदानन्द शिवका यह कहना है कि समस्त भूत कल्पक्षयपर मेरी निराकारी, बिन्दु रूपकी प्रकृतिको प्राप्त होती है, से भी आत्माका परमाणु रूप प्रमाणित होता है। आध्यात्मिक भाषामें आकाररहित बिन्दु रूप आत्माको निकराकार कहा जाता है। इसे दो भागोंमें विभक्त नहीं किया जा सकता और अग्निसे निष्प्रभावित है। इसीलिए समस्त आत्माएं अविनाशी एवं अभौतिक हैं। पांच जड़ तत्वोंसे निर्मित, इस जीव शरीरके तत्वोंका मौलिक रूप भी परमाणु स्वरूप है, तभी तो विज्ञानके अनुसार पदार्थ अविनाशी हैं। आत्मा एवं पदार्थके मौलिक परमाणविक रूपसे समानता है, किन्तु आत्मा, मन, बुद्धि युक्त चेतन एवं पदार्थ जड़ है। इस प्रकार आत्मा एवं शरीरमें मौलिक विषमता होनेके बावजूद आपसी समायोजनका स्वभाव अद्वितीय है। देखिया न, अविनाशी आत्मा अपनेको विनाशी शरीर ही समझती है। इस प्रकार सृष्टिकी समस्त देहअभिनी मनुष्यात्माओंको कब्रदाखिल कहनेमें कुछ भी अटपटा नहीं लगना चाहिए। यह वर्तमान कल्पक्षय और ईश्वरके अवतरणका संकेत देनेमें समर्थ लगता है क्योंकि भगवानुवाच ‘परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम॥‘ के आयोलनोंमें किसी सन्देहकी गुंजाइश नहीं दिखती। सृष्टिï चक्रसे अति परे, फिर भी सबके नियन्ता एवं धारण पोषण करनेवाले सच्चिदानन्द शिव कल्पक्षयके साधारण मनुष्य तनधारी, रथी महेशके तनका आश्रय विश्वकल्याणके लिए लेते हैं, तभी तो शिवका नाम केवल महेशके साथ जुड़ जाता है। एकमात्र अभोक्ता शिवकी सृष्टिïके महाभोक्ता विश्वनाथकी प्रवृत्ति भी पूर्णतया शाश्वत विद्याका अंगीकरण है, जिससे आदिकी रचना होती है।