मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले में श्रीलंका सोमवार को जेनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में एक मुश्किल प्रस्ताव का सामना करेगा। आपको बता दें कि इस प्रस्ताव में जाफना प्रायद्वीप में लिट्टे के खिलाफ कार्रवाई के पीड़ितों को न्याय न मिलने और उनका पुनर्वास न कर पाने में सरकार की विफलता का उल्लेख शामिल है और इस मामले में भारत एक बार फिर दुविधा में फंस गया है क्योंकि या तो संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) में श्रीलंका का समर्थन करे या वह तमिल अल्पसंख्यकों की रक्षा करे। हाल के दिनों में श्रीलंका ने भारत से खुलकर समर्थन मांगा है।
आपको बता दें कि इसके लिए उसने चीन और पाकिस्तान को नाराज करते हुए कोलंबो पोर्ट के वेस्टर्न कंटेनर टर्मिनल के विकास का ठेका भी भारत को दिया गया है। ऐसे में भारत की कूटनीति के समक्ष सबसे बड़ी दुविधा है। दूसरे शब्दों में कहें तो भारतीय विदेश नीति की परीक्षा की घड़ी है।
बता दें कि इस समय श्रीलंका संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के सत्र में उसके खिलाफ लाए जाने वाले प्रस्ताव से चिंतित और डरा हुआ है। इस प्रस्ताव में युद्ध अपराधों के लिए श्रीलंका की आलोचना की गई है। इतना ही नहीं श्री लंका को अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में लाने की भी धमकी दी गई है। इसके अलावा मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कठोर बंदिशें लगाने की बात कही गई है। इसलिए श्रीलंका को उम्मीद है कि भारत उसका साथ दे। इसी श्री लंका के विदेश सचिव की ओर से यह भी कहा गया है कि भारत के साथ साथ पाकिस्तान, नेपाल और भूटान हमारा समर्थन करेंगे