नई दिल्ली, । गड्ढों में तब्दील हो चुकी सड़कें जानलेवा साबित हो रही हैं। सड़क पर गड्ढों और खराबी की वजह से हर साल हजारों लोगों की जान चली जाती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, सड़क पर गड्ढों के कारण 2020 में रोजाना दस लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार, 2020 में सड़क पर हो गड्ढों से हो रहे हादसों की संख्या 3564 थी। वहीं 2019 में यह आंकड़ा 4775 था।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार, सड़क गड्ढों के अलावा हादसे के अन्य कारण भी होते हैं। इनमें तेज गति, मोबाइल फोन का उपयोग करना, शराब के नशे में गाड़ी चलाना, नशीले पदार्थों का सेवन, अतिभार, वाहनों की स्थिति, खराब रोशनी की स्थिति, रेड लाइट नियम तोड़ना, ओवरटेक करना, नगर निकायों की उपेक्षा, मौसम की स्थिति, चालक की गलती, गलत साइड से गाड़ी चलाना, सड़क की स्थिति में खराबी, मोटर वाहन की स्थिति में खराबी आदि कारण होते हैं।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के मुताबिक, भारत में सड़क दुर्घटना में 415 लोग रोज मारे जा रहे हैं। अगर हम 2030 तक राह देखते रहेंगे, तो 6-7 लाख लोग इसमें मर जाएंगे। 2025 तक हम सबके सहयोग से सड़क दुर्घटना से होने वाली मौतें और दुर्घटनाएं 50 फीसद से नीचे कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि हमारी इच्छा पिछड़े क्षेत्रों में ड्राइविंग स्कूल खोलने की है। इससे 22 लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। ठीक से प्रशिक्षित करेंगे तो लोगों की जान बचेगी। पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों में कौशल विकास मंत्रालय और हमारा मंत्रालय मिलकर ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल का काम कर रहे हैं।
सड़कों पर गड्ढे होने के ये कारण
ड्रेनेज व्यवस्था में खामी से टूटती है सड़कें : केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) के ट्रांसपोटेशन, प्लानिंग एंड एनवॉयरनमेंट डिवीजन के सीनियर प्रिंसिपल साइंटिस्ट डा. रवींद्र कुमार कहते हैं कि हाइवे या सड़क से गड्ढे होने के कई कारण है। अगर सड़क पर पानी लगता है, सही से ड्रेनेज की व्यवस्था नहीं है, तो सड़क टूटना तय है। भारी बारिश से कई बार जब जमीन धंसने से भी सड़क टूटती है।
डिजायनिंग में खामी भी है कारण : डा. रवींद्र कुमार कहते हैं कि कई बार डिजायनिंग में कमी से भी सड़क टूट जाती है और उसमें गड्ढे हो जाते हैं। आईआईटी बीएचयू के सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डा. अंकित गुप्ता भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। वह कहते हैं कि अगर सड़कों की डिजाइनिंग बेहतर होगी, तो समान्य स्थितियों में सड़कों पर गड्ढे नहीं होंगे। वह कहते हैं कि विडंबना यह है कि कागजों पर तो ऐसा होता है, लेकिन कई जगहों पर पूर्ण तौर पर लागू नहीं हो पाता।
रोशनी और ओवर स्पीड : डा. अंकित गुप्ता कहते हैं कि खराब रोशनी और ओवरस्पीड गड्ढों के हादसों को और दुश्वार बना देती है। ओवरस्पीड में आ रहा चालक का गड्ढों में नियंत्रण गड़बड़ाना लाजिमी है।
स्टेट या नेशनल हाईवे में ये हो जाती है दिक्कत
केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआई) के डा. वेलुमुर्गन का कहना है कि देश में जितने भी स्टेट या नेशन हाईवे बने हैं, उनमें से 90% डामर से बने हैं। डामर की सड़क पर कहीं भी 24 घंटे से ज्यादा पानी रुकता है, तो सड़क टूटने लगेगी और गड्ढा हो जाएगा। भारी गाड़ी गुजरने पर गड्ढे और बड़े हो जाते हैं। इन गड्ढों को रिपेयर करने में काफी समय लगता है, जिससे हादसों का खतरा बढ़ जाता है।
राष्ट्रीय राजमार्गों पर होती है ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं
राष्ट्रीय राजमार्गों पर राज्यीय राजमार्गों के मुकाबले अधिक सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। संसद में 2017 से 2019 तक के पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2019 में जहां कुल सड़क दुर्घटनाओं में राष्ट्रीय राजमार्गों पर हुई सड़क दुर्घटनाओं का प्रतिशत 30.5 था। वहीं, 2019 में राज्यीय राजमार्गों पर सड़क दुर्घटनाओं का प्रतिशत 24.3 रहा।
आंकड़ों के अनुसार, 2017 में जहां कुल सड़क दुर्घटनाएं 4,64,910 हुईं, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्गों पर 1,41,466 सड़क दुर्घटनाएं हुई। वहीं, राज्यीय राजमार्ग पर 116158 सड़क दुर्घटनाएं हुईं। 2018 में जहां 4,67,044 कुल सड़क दुर्घटनाएं हुई जिसमें राष्ट्रीय राजमार्गों पर 1,40,843सड़क दुर्घटनाएं हुई जबकि राज्यीय राजमार्गों पर 117570 लोग दुर्घटना में शिकार हुए। 2019 में कुल 4,49,002 सड़क दुर्घटनाओं में 1,37,191 राष्ट्रीय राजमार्गों पर जबकि 108976 राज्यीय राजमार्गों पर हुई। दी गई जानकारी के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं के मुख्य कारणों में अति तेज गति से वाहन चलाना, शराब पीकर/नशे में वाहन चलाना, लेन अनुशासनहीनता, मोटर वाहन चालक का दोष, वाहन चलाते समय मोबाइल फोन का प्रयोग आदि प्रमुख होते हैं।
इन राज्यों से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्गों पर अधिक सड़क दुर्घटनाएं
देशभर में तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक ऐसे राज्य हैं, जहां सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। तमिलनाडु में साल 2019 में 17633, उत्तर प्रदेश में 16181 और कर्नाटक में 13363 दुर्घटनाएं राष्ट्रीय राजमार्गों पर हुईं। केरल, मध्य प्रदेश के राष्ट्रीय राजमार्गों पर क्रमश: 9459 और 10440 सड़क दुर्घटनाएं हुईं। राज्यीय राजमार्गों पर दुर्घटनाओं के मामले में तमिलनाडु 2019 में शीर्ष पर रहा। यहां पर 2019 में 19279 सड़क दुर्घटनाएं हुईं। उत्तर प्रदेश में राज्यीय राजमार्गों पर 13402 सड़क दुर्घटनाएं हुईं। वहीं मध्य प्रदेश के राज्यीय राजमार्ग पर 13166 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, तो कर्नाटक के राज्यीय राजमार्ग पर 10446 लोग सड़क दुर्घटनाओं को शिकार हुए।
दुर्घटना में लगातार बढ़ रहीं दोपहिया वाहन चालकों की संख्या
देशभर के 2016 से 2019 तक के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, जहां 2016 में कुल दुर्घटनाओं में दोपहिया वाहन चालकों की 29.4 फीसद मौत हुई थी, तो 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 37.1 प्रतिशत हो गया। 2016 में जहां भारत में कुल 480,652 सड़क दुर्घटनाएं हुई थीं, जिनमें दो पहिया वाहनों से जुड़ी दुर्घटनाएं 162280 थीं। 2017, 2018 और 2019 में भारत में सड़क दुर्घटनाओं का आंकड़ा क्रमश: 464,910 , 467,044 और 4,49,002 था, जिसमें दोपहिया वाहनों से जुड़ी दुर्घटनाएं क्रमश: 157723, 164313 और 167184 थीं। वहीं, 2016 में सड़क दुर्घटनाओं में कुल 150,785 व्यक्तियों की मौत हुई थीं, जिसमें 44366 दोपहिया वाहन सवार थे। 2019 में सड़क दुर्घटनाओं में कुल 151,113 व्यक्तियों की मौत हुई थीं जिसमें 56136 दोपहिया चालक थे।
दोपहिया हादसों के कारण
डा. रवींद्र कुमार कहते हैं कि बाइक का बैलेंस या स्टेबिलिटी कम होती है। छोटा सा गड्ढा पड़ने पर भी बाइक डिसबैलेंस हो जाती है। जिससे हादसे होते हैं। बाइक में लोड फैक्टर भी कम करता है हल्की बाइक हो या सिर्फ एक आदमी बाइक पर हो तो गड्ढा पड़ने पर गाड़ी जल्दी डिसबैलेंस हो जाएगी। इसी वजह से बाइक चलाने वालों की हादसों की संख्या ज्यादा होती है। बाइक गड्ढे पर पड़ने पर बहुत जल्दी बैलेंस खो देती है। साथ ही बाइक सवार ज्यादातर आगे चल रही बड़ी गाड़ी से दूरी कम रखते है। इसकी वजह से भी बड़े हादसों का शिकार ज्यादा होते हैं। आईआईटी बीएचयू के सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डा. अंकित गुप्ता कहते हैं कि टू व्हीलर को हेलमेट अनिवार्य तौर पर पहनना चाहिए। कई हादसों में यह देखने में आता है कि दोपहिया वाहन चालकों की मौत इसलिए हुई क्योंकि उन्होंने हेलमेट नहीं पहना था। हेलमेट को सख्त तौर पर पहनाने से हादसे कम किए जा सकते हैं।
ये कहते हैं एनसीआरबी के आंकड़े
एनसीआरबी के आंकड़ों का अगर हम विश्लेषण करें तो पाते हैं कि देश में हर घंटे 18 लोग सड़क हादसों में जान गंवा रहे हैं जबकि 48 दुर्घटनाएं हर 60 मिनट में रही है। एनसीआरबी के आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि ओवर स्पीडिंग का रोमांच मौत का सौदा बन रहा है. 2019 में कुल सड़क दुर्घटनाओं में 59.6 हादसे तेज गति से वाहन चलाने की वजह से हुए हैं. इसकी वजह से 365 दिनों में 86,241 लोगों की मौत हुई है जबकि 2 लाख 71 हजार 581 लोग घायल हो गए।
ये कहती है सड़क दुर्घटनाओं पर आई हालिय रिपोर्ट
विश्व बैंक द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सड़क दुर्घटनाओं में हताहत होने वाले लोगों में सबसे ज्यादा भारत के होते हैं। भारत में दुनिया के सिर्फ एक फीसदी वाहन हैं, लेकिन सड़क दुर्घटनाओं में दुनिया भर में होने वाली मौतों में भारत का हिस्सा 11 प्रतिशत है। देश में हर घंटे 53 सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं और हर चार मिनट में एक मौत होती है।
रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में भारतीय सड़कों पर 13 लाख लोगों की मौत हुई है और इनके अलावा 50 लाख लोग घायल हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं के चलते 5.96 लाख करोड़ रुपये यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.14 प्रतिशत के बराबर नुकसान होता है।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के द्वारा हाल ही में किये गये एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं से 1,47,114 करोड़ रुपये की सामाजिक व आर्थिक क्षति होती है, जो जीडीपी के 0.77 प्रतिशत के बराबर है। मंत्रालय के अनुसार, सड़क दुर्घटनाओं का शिकार लोगों में 76.2 प्रतिशत ऐसे हैं, जिनकी उम्र 18 से 45 साल के बीच है यानी ये लोग काजी आयु वर्ग के हैं।