राष्ट्रीय

समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग


गे कपल्स ने समलैंगिक विवाह को स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत कानूनी मान्यता देने की मांग के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस पर शुक्रवार को CJI चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच में सुनवाई हुई। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और भारत के अटॉर्नी जनरल को नोटिस जारी किया। इस पर जवाब दाखिल करने के लिए 4 हफ्ते का समय दिया है। पहली जनहित याचिका सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग ने दायर की है। वे लगभग 10 सालों से एक साथ रह रहे हैं। कोरोना महामारी के दौरान दोनों नजदीक आए। दूसरी लहर में दोनों COVID पॉजिटिव हो गए। जब ठीक हुए, तो उन्होंने परिवार के साथ अपने रिश्ते का जश्न मनाने के लिए मैरिज कम कमिटमेंट सेरेमनी आयोजित करने का फैसला किया।अब, वे चाहते हैं कि उनकी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत मान्यता दी जाए। दूसरी जनहित याचिका पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज आनंद ने दायर की है, जो पिछले 17 सालों से एक-दूसरे के साथ रिलेशनशिप में हैं। उनका दावा है कि वे दो बच्चों की परवरिश एक साथ कर रहे हैं, लेकिन कानूनी रूप से उनकी शादी पूरी नहीं हुई है। इसके चलते ऐसी स्थिति पैदा हो गई है, जहां वे अपने बच्चों के साथ कानूनी संबंध नहीं रख सकते हैं। स्पेशल मैरिज एक्ट, फॉरेन मैरिज एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट और केरल हाईकोर्ट में 9 याचिकाएं दायर हैं। याचिकाकर्ताओं के वकील ने बेंच को केरल हाईकोर्ट में दिए गए केंद्र के बयान के बारे में बताया कि वह सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने के लिए कदम उठा रहा है। याचिकाकर्ताओं के वकील ने बताया कि यह मुद्दा समलैंगिक जोड़ों के ग्रेच्युटी, गोद लेने, सरोगेसी जैसे मूल अधिकारों को प्रभावित करता है। यहां तक ​​कि उन्हें ज्वाइंट अकाउंट खोलने में भी मुश्किल होती है। याचिका में कहा गया है कि स्पेशल मैरिज एक्ट का सेक्शन 4 किसी भी दो व्यक्तियों को विवाह करने की इजाजत देता है, लेकिन सब-सेक्शन (C) की शर्तें सिर्फ पुरुषों और महिलाओं के लिए इसके आवेदन को प्रतिबंधित करती हैं। उनकी कोर्ट से मांग है कि कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाया जाए।