- उस काली रात को यादकर आज भी सिहर उठते हैं सेनारी के लोग
- नब्बे के दशक में जातीय हिंसा में गयी थी सैकड़ो जानें
जहानाबाद। 90 में दशक में बिहार जातीय हिंसा से जूझ रहा था। जहानाबाद जिला का कई गांव उस वक़्त इसकी चपेट में था। लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे थे और एक के बाद एक, कई नरसंहार हो रहे थे। इसी दौर में जहानाबाद (वर्तमान में अरवल) जिले के सेनारी गांव में हुआ हत्याकांड, चर्चित नरसंहारों में से एक है। सेनारी में हुए इस नरसंहार में 34 लोगों की हत्या कर दी गई थी। भेड़-बकरियों की तरह लोगों की गर्दनें काटी गयी थी। एक की कटने के बाद दूसरा अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। कातिल धारदार हथियार से एक-एक कर युवकों की गर्दन रेतकर जमीन पर गिरा रहे थे और वहीं तड़प-तड़पकर सभी कुछ पलों में वे हमेशा के लिए शांत हो जा रहे थे।
सेनारी गांव की वो ‘काली रात’
बता दें कि 90 के दशक में बिहार जातीय संघर्ष से जूझ रहा था। सवर्ण और दलित जातियों में खूनी जंग चल रहा था। जमीन-जायदाद को लेकर एक-दूसरे के खून के प्यासे थे। लोगों का मानना है कि एक को रणवीर सेना नाम के संगठन का साथ मिला था तो दूसरे को माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर का। बताया जाता है कि 18 मार्च 1999 की उस रात को सेनारी गांव में कातिलों ने 34 लोगों को बांधकर उनका गला रेत दिया था।
इस कांड में प्रतिबंधित नक्सली संगठन माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) को शामिल माना गया था। कहा जाता है कि एमसीसी के सैकड़ों लोगों ने गांव की घेराबंदी कर सवर्ण जाति के पुरुषों को घर से बाहर निकाला था। घर से निकालने के बाद उन्हें गांव के ही एक मंदिर के पास ले जाया गया और हाथ-पैर बांधकर सभी की गला रेतकर हत्या कर दी। उस नरसंहार के शिकार लोग आज भी उस काली रात को याद कर सिहर उठते हैं।
हत्याकांड के पीछे क्या थी वजह
कहा जाता है कि ये हत्याकांड यूं ही नहीं हो गया था। इसके पीछे डेढ़ साल पहले हुए एक नरसंहार को वजह बताया गया। दरअसल डेढ़ वर्ष पूर्व एक दिसंबर 1997 को जहानाबाद के ही लक्ष्मणपुर-बाथे के शंकरबिगहा गांव में 58 लोगों को हत्या कर दी गयी थी। वहीं ठीक इसके दो माह बाद दस फरवरी 1998 को नारायणपुर गांव में 12 लोगों को काट दिया गया था। दोनों ही हत्याकांड में मरने वाले सारे लोग दलित परिवार के थे। कहा जाता है कि इस नरसंहार के प्रतिशोध में सेनारी हत्याकांड को अंजाम दिया गया था।
हाई कोर्ट ने सबों को रिहा करने का दिया आदेश
इस घटना के बाईस साल बाद पटना हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। शुक्रवार को कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रदद् करते हुए 13 दोषियों को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया है। इस मामले में जिला अदालत ने दस दोषियों को फांसी और तीन को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। पटना हाईकोर्ट ने इसी फैसले को रद्द कर दिया है। पटना हाइकोर्ट के न्यायाधीश अश्विनी कुमार सिंह व अरविंद श्रीवास्तव की खंडपीठ ने बहुचर्चित सेनारी नरसंहार मामले में यह फैसला सुनाया है।
निचली अदालत ने सुनाई थी सजा
2016 में इस नरसंहार की सुनवाई करते हुए जिला अदालत ने 17 साल बाद फैसला सुनाते हुए 10 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी। 34 लोगों के इस बहुचर्चित नरसंहार कांड के तीन दोषियों को उम्रकैद की सजा दी गई थी और उन पर एक-एक लाख रुपए जुर्माना लगाया गया था। उस फैसले के वक्त इस केस में दो दोषी फरार भी थे। तब निचली अदाल ने फैसले में इस नरसंहार में मारे गए लोगों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया था। बता दें कि इस केस के कुल 70 आरोपियों में से 4 की मौत हो चुकी है। वहीं 2016 में निचली अदालत पहले ही 20 आरोपियों को बरी कर चुकी थी।
(फ़ाइल फ़ोटो 01 वो मंदिर जिसके आगे लोगों को मौत के घाट उतारा गया था)
(फ़ाइल फ़ोटो 02 कोर्ट में पेशी के दौरान आरोपी)
(फ़ाइल फ़ोटो 03 हत्याकांड के बाद गांव में पहुंची पुलिस)