ज्ञानेंद्र रावत। आज एशिया की जल निधि के रूप में विख्यात हिमालयी पर्वत श्रृंखला का अस्तित्व खतरे में है। यह उस हालत में है जब भारत, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान की जलवायु, जैवविविधता और पारिस्थितिकी के मामले में एशिया की इस जल निधि पर निर्भरता है। गौरतलब है कि इस पर्वत श्रृंखला पर इन देशों की लगभग 24 करोड़ से भी अधिक आबादी की आजीविका निर्भर है। और तो और लगभग 19 करोड़ से ज्यादा आबादी को यह पर्वत श्रृंखला पानी और मिट्टी जैसी मूलभूत प्राकृतिक संपदा से संपृक्त करती है, लेकिन विडंबना है कि इस सबके बावजूद इस क्षेत्र में खाद्य और पोषण संबंधी अपर्याप्तता एक गंभीर चुनौती बनी हुई है।
यह इलाका पारिस्थितिकी का दुनिया का सबसे बड़ा भंडार है, लेकिन बीते कुछेक बरसों से इतनी संपदाओं-विशिष्टताओं वाला यह इलाका जैवविविधता, आजीविका, ऊर्जा, भोजन और पानी के संकट से जूझ रहा है। इस संकट में मानवीय हस्तक्षेप की अहम भूमिका है। इस इलाके की तबाही के कारणों में अहम है इस पर्वतीय श्रृंखला के पठारी, तीखे तथा खड़े ढाल वाले पहाड़ी इलाकों के जंगलों की बेतहाशा कटाई और बाहरी लोगों द्वारा स्थानीय संसाधनों का बेदर्दी से इस्तेमाल। इसके चलते पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हुआ और आजीविका के संकट के कारण लोग पलायन को विवश हुए। चिंता की बात यह है कि खाद्य असुरक्षा और बढ़ते कुपोषण के चलते अब यह संकट लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इसलिए जरूरी है कि विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन से पहले बहुत ही बारीकी से परीक्षण किया जाए।