24 जून को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के सभी दलों की बैठक बुलाई है। इस बैठक से पहले श्रीनगर में गुपकार नेताओं की बैठक पर सभी की नजर टिकी थी कि वो एक सुर में क्या फैसला लेते हैं। पीडीपी मुखिया जो पहले सर्वदलीय बैठक में शामिल होने से गुरेज कर रही थीं उन्होंने कहा कि वो बैठक में शामिल होंगी। वो केंद्र से वार्ता के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उनके एजेंडे में अनुच्छेद 370 की बहाली 35ए की वापसी है। महबूबा मुफ्ती ने कहा कि 370 पाकिस्तान या चीन ने तो दिया नहीं था। इस मुल्क की आइन ने दिया था। अगर कांग्रेस इस विषय पर हम लोगों का समर्थन करती है तो खुशी होगी। इसके साथ ही उन्होंने कहा अगर बातचीत तालिबान से की जा सकती है तो पाकिस्तान से क्या दिक्कत है।
सर्वदलीय बैठक पर गुपकार नेता राजी
गुपकार बैठक में फारुक अब्दुल्ला ने कहा कि हमें जम्मू-कश्मीर के मूल विषय को सोचना होगा उसके बगैर कोई भी वार्ता तार्किक नतीजे पर नहीं पहुंच सकती। अपने सभी नेताओं को हिरासत में छोड़ने की मांग करता है। जम्मू-कश्मीर के दलों ने शब्बीर शाह की रिहाई की मांग की। गुपकार के एक और नेता तारिगामी से जब पूछा गया कि जब आपलोग पहले से उन मुद्दों को लेकर दिल्ली जाएंगे जो अब अस्तित्व में नहीं हैं तो बातचीत की प्रासंगिकता क्या होगी। इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हम तो पहले से कहते रहे हैं कि कोई भी चीज जम्मू-कश्मीर पर थोपी नहीं जा सकती है।
क्या कहते हैं जानकार
अब सवाल यह है कि जब गुपकार के नेता इस मनोदशा के साथ आएंगे कि उन्हें अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली चाहिए तो क्या बात बनेगी या सिर्फ केंद्र सरकार की कोशिश सिर्फ कोशिश मात्र ही रह जाएगी। इस बार में जानकार क्या कहते हैं उसे भी समझना जरूरी है। जानकार कहते हैं कि आप इसे दो तरह से समझ सकते हैं, पांच अगस्त 2019 को जब केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर लद्दाख को दो अलग अलग प्रशासकीय क्षेत्र बना दिया तो यह जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों के लिए वज्रपात की तरह था। उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि इतना बड़ा इतनी जल्दी लिया जा सकता है। जम्मू-कश्मीर के बंटवारे के बाद जिस तरह से बड़े बड़े राजनीतिक दलों के नेताओं को हाउस अरेस्ट किया गया उससे केंद्र ने ये संदेश दिया कि अब आपको नए रूप में जम्मू-कश्मीर को स्वीकार करना होगा. हालांकि इसके साथ ये भी कहा गया कि समय आने पर जम्मू-कश्मीर की राज्य का दर्जा बहाल कर दिया जाएगा।
जम्मू-कश्मीर में जिस तरह से लोकल बॉडी चुनाव संपन्न हुए और वो लोग जो कभी भी पीडीपी या नेशनल कांफ्रेस की राज में आगे नहीं बढ़ सके उन्हें मौका मिला। इसे देखते हुए स्थापित दलों के नीति नियंताओं को लगा कि अगर वो जमीनी राजनीति को ऐसे ही छोड़ देंगे तो आने वाले समय में उनकी राह मुश्किल हो जाएगी। लिहाजा जब केंद्र सरकार की तरफ से बातचीत की पेशकश की गई तो कुछ बिंदुओं को सामने रखते हुए सर्वदलीय बैठक के लिए हामी भर दी।लेकिन 370 और 35ए का मसला इतनी आसानी से वो नहीं छोड़ सकते हैं क्योंकि सभी दलों की राजनीति का आधार यहीं दो विषय रहे हैं। गुुुपकार नेता अगर सर्वदलीय बैठक का हिस्सा नहीं बनते तो शायद इतिहास में वो खलनायक के तौर पर दर्द होते क्योंकि केंद्र सरकार यह कहती कि वो तो जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए प्रतिबद्ध थी ।लेकिन राज्य के नेताओं की दिलचस्पी नहीं थी।