मुंबई। बीते दिनों जब फरहाद सामजी निर्देशित वेब शो पॉप कौन? की तीखी आलोचना हुई थी तो उनके द्वारा निर्देशित और सलमान खान अभिनीत फिल्म किसी का भाई किसी की जान को लेकर भी आशंका व्यक्त की गई थीं कि यह फिल्म डगमगा सकती है।
यह आशंका निर्मूल साबित नहीं हुई है। फिल्म में बड़े-बड़े सेट हैं। सलमान का स्वैग है। ईद को देखते हुए तड़कते-भड़कते गाने हैं, लेकिन सबसे जरूरी अंग कहानी पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। उसकी वजह से भाई के होने के बावजूद फिल्म बेजान लगती है।
किसी का भाई किसी की जान की कहानी
दिल्ली की एक बस्ती में अपने तीन भाइयों संग रहने वाले भाईजान (सलमान खान) की है। भाईजान अपना परिचय भी देते हैं, वैसे मेरा कोई नाम नहीं, पर मैं भाईजान के नाम से जाना जाता हूं। दरअसल, अपने भाइयों की परवरिश की खातिर भाईजान ने शादी नहीं की होती है।
उन्हें अपनी जिंदगी में कोई ऐसा नहीं चाहिए, जो भाइयों का बंधन तोड़े। हालांकि, उनके तीनों भाई अपना दिल दे बैठते हैं। इस दौरान उन्हें पता चलता है कि उनके भाईजान भाग्या (भाग्य श्री) से प्रेम करते थे। उन्हें लगता है कि भाग्या ने भी शादी नहीं की होगी, पर उन्हें निराशा हाथ लगती है।
भाईजान की बस्ती पर एमएलए महावीर (विजेंद्र सिंह) कब्जा करना चाहता है। उसी दौरान बस्ती में हैदराबाद से आई भाग्या (पूजा हेगड़े) रहने आती है। वह भाईजान को पहली नजर में अपना दिल दे बैठती है। वह भाईजान को मनाती है, ताकि उनके तीनों भाई अपनी प्रेमिकाओं से शादी कर सकें।
उधर, पूजा के पीछे कुछ राउड़ी पड़े हैं। भाईजान तय करते हैं, वह उन राउड़ी से भाग्या और उसके परिवार की रक्षा करेंगे। वह हैदराबाद में भाग्या के भाई (वेंकटेश), भाभी (भूमिका चावला) और मां (रोहिणी हट्टंगड़ी) से मिलने जाते हैं। भाग्या का भाई अहिंसावादी है। वह कैसे भाईजान को स्वीकार करगा? भाईजान कैसे भाग्या और अपने बस्ती की रक्षा करते हैं कहानी इस संबंध में है।
मसालों की असमान मात्रा से कहानी हुई बेस्वाद
पिछले कुछ वर्षों से सलमान खान की फिल्में ईद पर प्रशंसकों के लिए खास सौगात होती हैं, क्योंकि फिल्म में एक्शन, रोमांस, ड्रामा और कॉमेडी का तड़का होता है। यह सभी मसाले तभी स्वाद दे पाते हैं, जब उन्हें सही मात्रा में मिलाकर बनाया जाए। हालांकि, यह फिल्म साल 2014 में प्रदर्शित अजित कुमार की फिल्म ‘वीरम’ से प्रेरित है, लेकिन यहां पर किसी लॉजिक की उम्मीद ना करें।
इंटरवल के बाद कहानी दक्षिण भारत आती है। साउथ की लोकेशंस को फिल्म में एक्सप्लोर नहीं किया गया है। सलमान के पात्र का नाम क्यों नहीं है, यह भी बताने की जरूरत नहीं समझी गई। दिल्ली जैसे मेट्रो शहर में रहने के बावजूद उन्हें भैया या दादा ना बुलाकर भाईजान बुलाने की वजह भी स्पष्ट नहीं है।
भाईजान की बस्ती भी बड़ी अजीबोगरीब है। भाईजान कैसे ‘रॉबिनहुड’ बने उसका भी कहानी में कोई जिक्र नहीं है। दिल्ली की मेट्रो रेल सेवा में सुरक्षा के जबरदस्त इंतजाम हैं। उसमें दर्जनभर से ज्यादा हथियारबंद लोगों का भाईजान पर हमले का सीन कदापि पचता नहीं है।
फिल्म में सलमान की बतौर मुख्य हीरो पहली फिल्म मैंने प्यार किया की क्लिप भी है। उसमें उनका प्यार रहीं भाग्य श्री अपने रियल पति हिमालय और बेटे अभिमन्यु दसानी साथ मेहमान भूमिका में हैं। उन्हें देखकर सीटियां जरूर बजती हैं। यह फिल्म पिछली सदी के आठवें दशक की याद दिलाती है, जब हीरो वनमैन आर्मी होता था और दुश्मनों को एक वार में चित कर देता था।
घिसे-पिटे दृश्यों ने फिल्म को बनाया बोझिल
क्लाइमैक्स में दुश्मन से पिटने के बाद उसे जगाने के लिए पूरा परिवार और मुहल्ला एकजुट होता था, जिससे उसमें जोश आता है और उठ खड़ा होता है और दुश्मन को मार गिराता है। यहां पर भी सब कुछ वैसा ही है, लेकिन उसमें कोई चार्म नहीं है।
करियर के इस मुकाम पर सलमान को अपनी फिल्मों के चयन को लेकर बहुत सावधानी बरतने की जरूरत है। उन्हें कहानी पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। फिल्म में वह एक्शन करते हुए अच्छे लगते हैं, लेकिन इमोशनल सीन में बेहद कमजोर नजर आते हैं।
इंटरवल के बाद वह कटे बालों और क्लीन शेव में अपनी उम्र से कम नजर आते हैं। पूजा हेगड़े हिंदी में एक अदद हिट फिल्म की तलाश में हैं। पिछले साल रिलीज सर्कस में वह रणवीर सिंह के साथ नजर आई थीं। फिल्म बॉक्स आफिस पर बुरी तरह पिटी थी। अब वह सलमान के साथ आई हैं। वह फिल्म में बेहद खूबसूरत दिखी हैं।
उम्र में इतना अंतर होने के बावजूद उन्हें भाईजान में क्या दिखता है, जिसकी वजह से पहली नजर में दिल दे बैठती हैं, आखिर तक समझ नहीं आता। भाइयों के किरदार में सिद्धार्थ निगम, राघव जुआल और जस्सी गिल के हिस्से में कुछ खास नहीं आया है। उनके किरदार अधपके हैं। भाइयों के बीच बॉन्डिंग भी दिलचस्प नहीं बन पाई है।
वहीं, तीन भाइयों की प्रेमिकाओं के तौर पर नजर आई शहनाज गिल, पलक तिवारी और विनाली भटनागर शो पीस भर हैं। वे कहां से आई हैं, उनका बैकग्रांउड क्या है, कुछ पता नहीं। वेंकटेश और सलमान को एक फ्रेम में देखना जरूर अच्छा लगता है।
दक्षिण भारतीय अभिनेता जगपति बाबू ने इस फिल्म से हिंदी सिनेमा में पदार्पण किया है। लेखन स्तर पर खलनायक का उनका पात्र दमदार नहीं बन पाया है। फरहाद सामजी के कमजोर निर्देशन ने उसे फीका कर दिया है। हालांकि, उन्होंने अपने अभिनय से उसे साधने का भरपूर प्रयास किया है।
सुखबीर द्वारा गाया गाना बिल्ली बिल्ली, विशाल डडलानी और पायल देव द्वारा स्वरबद्ध येनतम्मा, हनी सिंह के गानों ने भले ही एंटरटेन किया है, लेकिन कहानी के साथ सुसंगत नहीं लगते। संवाद भी प्रभावी नहीं बन पाए हैं।
कलाकार: सलमान खान, वेंकटेश दग्गूबटी, पूजा हेगड़े, जगपति बाबू, भूमिका चावला, विजेंदर सिंह, अभिमन्यु सिंह, राघव जुयाल, सिद्धार्थ निगम, जस्सी गिल आदि।
निर्देशक: फरहाद सामजी
अवधि: 144 मिनट
स्टार: **