पटना। : बिहार में महागठबंधन के दलों के बीच सीटों के बंटवारे का मामला दिलचस्प मोड़ पर पहुंच गया है। जदयू ने साफ कह दिया है कि वह अपनी जीती हुई 16 सीटें नहीं छोड़ेगा। बची हुई 24 सीटों का बंटवारा राजद अपने सहयोगी दलों-वाम और कांग्रेस के बीच कर ले। यह राजद के लिए सिरदर्द बन गया है।
कांग्रेस और वाम दल में खींचतान
वाम दलों ने नौ सीटों की मांग कर दी है तो कांग्रेस (Congress) 10 सीटों की सूची लेकर खड़ी है। अगर सहयोगी दलों की मांगें मान ली जाएं तो राजद के लिए सिर्फ पांच सीटें बचेंगी। महागठबंधन या राष्ट्रीय स्तर पर जदयू को आइएनडीआइए में रखना है तो उसकी सीटों से छेड़छाड़ करने से बचना होगा।
सीटों की मांग और आपूर्ति के बीच बड़ी खाई को देखकर ही जदयू ने इस प्रक्रिया से स्वयं को अलग कर लिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में आरा और बेगूसराय में वाम दलों को दूसरा स्थान मिला था। अन्य सीटों पर वाम उम्मीदवार तीसरे-चौथे नम्बर पर थे।
भाकपा ने ये तीन महत्वपूर्ण सीट पर ठोका दावा
भाकपा ने बेगूसराय (Begusarai), मधुबनी (Madhubani) और बांका (Banka) सीटों की मांग की है। बांका अभी जदयू के पास है। पिछले चुनाव में भाकपा यहां से चुनाव नहीं लड़ी थी। बेगूसराय भाकपा की परम्परागत सीट मानी जाती है। 2019 में भाकपा के चर्चित उम्मीदवार कन्हैया कुमार दूसरे नम्बर पर रहे थे।
माले की सूची में शामिल कटिहार और जहानाबाद ऐसी सीटें हैं, जो इस समय जदयू के पास हैं और उन पर राजद-कांग्रेस की भी नजर है। माकपा की किसी सीट पर जीतने की स्थिति नहीं है, फिर भी सांंकेतिक रूप से कुछ सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है।
वाम दलों का इतिहास बताता है कि मनमाफिक सीटें न मिलने की स्थिति में गठबंधन के बाद भी दोस्ताना मुकाबला के नाम पर कई सीटों पर उम्मीदवार दे देते हैं। पिछले चुनाव में भी राजद ने आरा की सीट भाकपा माले के लिए छोड़ दी थी, फिर भी सिवान में उसने राजद के विरूद्ध अपना उम्मीदवार दे दिया था।