हिन्दू धर्म में कई बार भगवान् की प्रकृति या किसी विशेष गुण के कारण उनका स्वरुप या उनकी छवि ऐसी बनाई जाती है, जो उनके उस गुण को प्रदर्शित कर सके। इसलिए, हर भगवान की छवि की एक खासियत होती है, जो उन्हें एक-दूसरे से अलग बनाती है। भगवान विष्णु का स्वरुप भगवान् जगन्नाथ की तस्वीर या मूर्ति आपने जो देखी होगी, तो ध्यान दिया होगा कि उनकी आँखें बड़ी-बड़ी दिखाई गयी है और मूर्ति के हाथ और पैर नहीं है। तो, इन बड़ी-बड़ी आँखों के पीछे रहस्य क्या है और बाकी मूर्ति का रहस्य क्या है… उनकी आँखों से जुड़ी कुछ पौराणिक कथाएं हैं। एक अन्य कथा के अनुसार, जब भगवान जगन्नाथ इंद्रद्युम्न नामक राजा के राज्य में गए थे, तो वहां के लोग उनकी भव्यता देखकर दंग रह गए थे। उनकी आंखें आश्चर्य से बड़ी हो गयीं। भगवान जगन्नाथ ने उनकी भक्ति को स्वीकार करते हुए अपनी आंखें भी बड़ी कर ली थीं। एक और कथा इससे जुड़ी है, जिसके अनुसार, जब भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका में रहने लगे थे, तो वृंदावन से नंद बाबा, यशोदा माता और रोहिणी मां उनसे मिलने आए थे। द्वारका में एक दिन रोहिणी माता द्वारकावासियों को भगवान श्रीकृष्ण के वृंदावन में की गई रासलीला सुना रही थी। जब भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला की कथाओं में द्वारकावासी डूबे हुए थे, तो दरवाजे पर सुभद्रा और उनके भाई बलभद्र और श्री कृष्ण भी उनके पास खड़े होकर छुपकर कथा सुन रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण की अनोखी कथाएं सुनकर तीनों की आँखे हैरानी से बड़ी थी। उसी समय नारद मुनि भी धरती पर आये और उन्होंने तीनों भाई-बहन को इस स्वरूप में देखकर भावविभोर हो उठे। उनकी विनती थी कि सभी भक्त भगवान श्रीकृष्ण और उनके भाई-बहन के इस अनोखे रूप के दर्शन कर सकें। यह भी माना जाता है कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर के प्रसिद्ध मूर्तिकारों और कारीगरों ने भक्तों के बीच विस्मय और श्रद्धा की भावना पैदा करने के लिए उनकी आँखे ऐसी बनाई है। भक्तों का मानना है कि भगवान जगन्नाथ की बड़ी आंखें नेत्र रोगों से पीड़ित लोगों के लिए आशीर्वाद का प्रतीक हैं। भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम की मूर्ति में हाथ-पैर क्यों नहीं है? पौराणिक कथा के अनुसार, राजा इंद्रद्युम्न के कहने पर भगवान् जगन्नाथ की मूर्तियों का निर्माण खुद विश्वकर्मा जी कर रहे थे लेकिन उन्होंने एक शर्त रखी थी कि जब तक मूर्तियों का निर्माण पूरा नहीं हो जाता, तब तक उस कमरे में कोई भी प्रवेश नहीं करेगा। कुछ दिनों तक कमरे से मूर्ति बनाने की आवाज आती रही लेकिन कुछ दिन बाद यह आवाज बंद हो गयी, जिस कारण राजा को लगा कि मूर्ति का निर्माण कार्य पूरा हो गया है और वो कमरे में प्रवेश कर गए। शर्त पूरी न होने के कारण विश्वकर्मा जी ने उन मूर्तियों का निर्माण कार्य अधूरा ही छोड़ दिया और मूर्ति वैसे ही यानि बिना हाथ-पैर के ही स्थापित कर दी गयी।
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