Latest News राष्ट्रीय सम्पादकीय

नालन्दा फिर जीवन्त


पूरे विश्वमें शिक्षाके प्रमुख केन्द्रके रूपमें प्रतिष्ठिïत बिहारके राजगीरके निकट स्थित नालन्दा विश्वविद्यालय आठ सौ वर्षोंके बाद पुन: जीवन्त हो उठा है। १७ देशोंके सहयोगसे भारत सरकारने नालन्दा विश्वविद्यालयके नये परिवारका निर्माण कराया है, जिसका प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीने बुधवारको एक भव्य समारोहमें लोकार्पण कर पूरी दुनियाको नया सन्देश भी दिया है। नालन्दा विश्वविद्यालयका नया परिसर अनेक विशिष्टïताओंसे सुसज्जित है। प्रधान मंत्री मोदीने इसके निर्माणमें सभी सहयोगी देशोंका आभार व्यक्त करते हुए कहा कि नालन्दा सिर्फ भारतका पुनर्जागरण नहीं है अपितु इससे कई देशोंकी विरासत भी जुड़ी हुई है। नालन्दाके ध्वंसको याद करते हुए प्रधान मंत्री मोदीका यह कथन भी विशेष रूपसे महत्वपूर्ण है कि आगकी लपटें ज्ञान नहीं मिटा सकती हैं। नालन्दा एक पहचान है, एक सम्मान है। नालन्दा एक मूल्य है, मंत्र है, गौरव है, गाथा है। नालन्दा उद्ïघोष है इस सत्यका कि आगकी लपटोंमें पुस्तकें भले जल जायें लेकिन आगकी लपटें ज्ञानको कदापि नहीं मिटा सकती हैं। उन्होंने कहा कि अपने प्राचीन अवशेषोंके समीप नालन्दाका नवजागरण विश्वको भारतके सामर्थ्यका परिचय देगा। नालन्दा यह भी बतायेगा कि जो राष्टï्र मजबूत मानवीय मूल्योंपर खड़े होते हैं, वह राष्टï्र इतिहासको पुनर्जीवित करके बेहतर भविष्यकी नींव रखना जानते हैं। विश्वके कई देशोंके विद्यार्थी यहां आने लगे हैं। यह वसुधैव कुटुम्बकम्ïकी भावनाका सुन्दर प्रतीक है। नालन्दा विश्वविद्यालयका नया परिसर १७४९ करोड़की लागतसे बना है। नालन्दा विश्वविद्यालयका समृद्ध इतिहास है और शिक्षाके क्षेत्रमें छह सौ वर्षोंतक इसका डंका बजता रहा लेकिन १३वीं सदीमें तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजीने आक्रमण कर इस विश्वविद्यालयको बर्बाद कर दिया। इस परिसरकी सबसे बड़ी पहचान इसका विशाल पुस्तकालय था। नौ मंजिले पुस्तकालयमें करीब तीन लाखसे अधिक पुस्तकें थीं। इन पुस्तकोंको आगके हवाले कर दिया गया था। लेकिन यह अत्यन्त ही संतोष और गर्वका विषय है कि भारत सरकार और १७ देशोंके सहयोगसे प्राचीन नालन्दा विश्वविद्यालय फिरसे जीवित हो उठा है। ऐसा विश्वास है कि नया परिसर पुन: अपने प्राचीन गौरवको प्राप्त करेगा। इसमें सभीका सहयोग भी अपेक्षित है।