सम्पादकीय

वास्तविक ज्ञान


वी.के.जायसवाल

व्यक्ति दो तरहसे ज्ञान प्राप्त करता है जिसमें एक ज्ञान ऐसा होता है जो मनको ज्ञानसे तो भर देता है लेकिन हृदयको शून्य नहीं करता, इसलिए इस प्रकारके ज्ञानके लिए यह कहा जा सकता है कि इस प्रकारका ज्ञान सिर्फ सीखनेसे मिलता है। दूसरी ओर एक ज्ञान ऐसा भी है जो मनको कदापि नहीं भरता, बल्कि इसे खाली करता रहता है। इस प्रकारके ज्ञानके लिए यह कहा जा सकता है कि ऐसा ज्ञान बिना कुछ सीखे ही मस्तिष्कमें प्रवेश करता है। यही ऐसा ज्ञान होता है जो हृदयमें शून्यताको विकसित करनेमें अहम भूमिका अदा करता है। इसीसे हृदय एक मंदिरके समान एकदम शुद्ध हो जाता है। कहा भी गया है कि दिल एक मंदिर है जो और कुछ नहीं, बल्कि मनमें उतरा हुआ ऐसा ज्ञान है जो उसमें भरे हुए अनावश्यक विचारों रूपी बोझको वहांसे निकालकर हृदयको हल्का करके एकदम पवित्र कर देता है। इसीसे व्यक्तिका हृदय प्रफुल्लित हो उठता है। वस्तुत: सीखनेसे जो ज्ञान प्राप्त होता है वह स्वयंके ज्ञानकी कमीके कारण हृदयकी गहराइयोंमें नहीं उतर पाता है इसी कारण इस प्रकारका ज्ञान मस्तिष्कपर बोझ बनता जाता है जो उस समयतक बोझ बना रहता है जबतक यह हृदयकी गहराइयोंमें नहीं उतर जाता। इसके विपरीत जो ज्ञान बिना सीखे मस्तिष्कमें उतरता है वह स्वयं ही हृदयकी गहराइयोंमें उतरता जाता है। क्योंकि यह ज्ञान स्वयंमें पूर्ण होता है। इस प्रकारका ज्ञान हृदयपर बोझ न बनकर उसे आनन्दसे परिपूर्ण करता है। सन्देह नहीं कि कुछ सीखनेके लिए बाहरसे मनके भीतर विभिन्न तरहकी ज्ञानरूपी बातोंको प्रवेश कराया जाता है लेकिन जो ज्ञान स्वत: प्रवेश पाता है वह हमारे हृदयके भीतर पहलेसे ही छिपी हुई अवस्थामें था। इसलिए दूसरोंके ज्ञानको जानने और अपने भीतर प्रवेश करानेके पहले अपने अंदर छिपे हुए ज्ञानको खोजनेकी आवश्यकता है। इसे खोजनेके बाद ही दूसरोंका केवल वह ज्ञान हमारे भीतर प्रवेश करके जगह बना सकेगा जिसे हमारे द्वारा अपने भीतर खोजा गया ज्ञान स्वीकार करेगा। इसलिए इस दशामें दूसरोंसे प्राप्त ज्ञान हमारे अपने स्वयंके ज्ञानके साथ घुल-मिलकर इसे परिष्कृत ही करेगा अन्यथाकी प्रत्येक स्थितिमें बाहरी ज्ञान अन्दर तो जा सकता है लेकिन हृदयकी गहराइयोंमें न उतर पानेके कारण यह एक बोझके रूपमें ही इक_ा होता जायगा जो सुखद अनुभव कदापि नहीं प्रदान करेगा। शब्दोंके समूह रूपी ज्ञानको हम जितना ही प्राप्त भरते जायंगे उतना ही हम इसमें बंधते चले जायंगे और यही हमारे लिए ऐसी बेडिय़ां बन जायगा जो हमारे पैरसे कभी भी बाहर नहीं निकल सकेंगी।